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 ग्रैमी पुरस्कार विजेता बांसुरी वादक राकेश चौरसिया ने कहा, 'वह रात बाकी सब रातों से जुदा थी'
 नयी दिल्ली। लॉस एंजिलिस के क्रिप्टो डॉट कॉम एरिना में विभिन्न शैलियों के विश्व के कुछ सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों के साथ (ग्रैमी समारोह में) शिरकत करने बांसुरी वादक राकेश चौरसिया कहते हैं कि वह रात अब तक की अन्य रातों से जुदा थी और ग्रैमी के लिए दो श्रेणियों में नामांकित होने के बाद भी वह पुरस्कार को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे। हालांकि चौरसिया ने पुरस्कार जीता और वह भी दोनों श्रेणियों में। जबकि विश्व के सबसे प्रतिष्ठित संगीत पुरस्कारों के लिए उन्हें पहली बार नामांकित किया गया था। 52 वर्षीय बांसुरी वादक ने कहा कि यह (नामांकन) उनके लिए पर्याप्त साबित हुआ। राकेश चौरसिया ने  बताया, ''जब मुझे नामांकित किया गया तो मुझे लगा कि चलो ठीक है इतना ही काफी है, क्योंकि जहां मैं बैठा था और जिन लोगों से बातें कर रहा था, उन्हें छह या नौ नामांकन के बाद पुरस्कार मिला था। लेकिन भगवान मुझ पर मेहरबान था कि जिस एल्बम को मैंने 2023 में तैयार किया था उसे उसी वर्ष नामांकित किया गया और फिर पुरस्कृत भी।'' पहला ग्रैमी पुरस्कार 'पश्तो' को सर्वश्रेष्ठ वैश्विक संगीत प्रस्तुति के लिए तबला वादक जाकिर हुसैन, अमेरिकी बैंजो वादक बेला फ्लेक और अमेरिकी बासवादक एडगर मेयरे के समूह को मिला जबकि दूसरा पुरस्कार 'एज वी स्पीक' एल्बम को मिला। 'पश्तो', एल्बम 'एज वी स्पीक' के 12 गानों में से एक है।
 रविवार रात (अमेरिकी समयानुसार) इस भव्य समारोह में साथी संगीतकारों के साथ बात करते हुए राकेश चौरसिया को लगा था कि अभी उनका समय नहीं आया है।  अपने चाचा और दिग्गज बांसुरीवादक हरिप्रसाद चौरसिया की देख-रेख में बड़े हुए राकेश चौरसिया ने संगीत के मार्ग पर चलने के लिए उन्हें प्रेरित करने का श्रेय दो दिग्गजों को दिया, जिनमें से एक मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन भी हैं। तीन ग्रैमी पुरस्कार जीतने वाले हुसैन चौरसिया परिवार की दो पीढ़ियों के साथ अपनी प्रस्तुति देना जारी रखे हुए हैं, जिनमें गुरु व शिष्य के रूप में क्रमशः चाचा और भतीजा शामिल हैं। राकेश चौरसिया ने कहा, ''उनसे (हुसैन से) हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। बचपन से ही मैं उनका प्रशंसक रहा हूं और उनकी प्रस्तुति देखता रहा हूं। वह बाबू जी, मेरे गुरु पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ जुगलबंदी करते थे और जब वे दोनों एक साथ प्रस्तुति दे रहे होते थे तो उन्हें देखना एक अद्भुत अनुभव हुआ करता था। अगर आपको वास्तव में जादू देखना है, तो आपका वहां मौजूद होना जरूरी है।'' हरिप्रसाद चौरसिया जैसी महान शख्सियत की विरासत को आगे ले जाने में कुछ चुनौतियां आईं, लेकिन वह इनसे पार पाने और इनके जरिये अपने काम को बेहतर बनाने में सफल रहे। उन्होंने कहा,'' यह एक सिक्के की तरह है, जिसके दो पहलू हैं। जहां यह बहुत सुहवाना लगता है, वहीं साथ ही चिंता भी होती है क्योंकि आपके कंधों पर इस नाम से जुड़ी बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसका कारण है कि लोग हमेशा चाचा से मेरी तुलना करेंगे। संगीतकार ने कहा, ''तो यह एक तरह से अच्छा है कि मैं हर समय तैयार रहता हूं, अभ्यास करता रहता हूं और बेहतर से बेहतर करने की कोशिश करता हूं।'' उन्होंने कहा कि मैं उस मुकाम तक नहीं पहुंच सकता, जहां वे (हरिप्रसाद चौरसिया ने) बांसुरी को ले गये हैं लेकिन कम से कम मैं परिवार का नाम रोशन कर रहा हूं और इस वाद्ययंत्र को सजीव बनाए हुए हूं।

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