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श्रीलंकाई संसद ने पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया शुरू की


 कोलंबो. श्रीलंका के नये राष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए शनिवार को संसद का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया। श्रीलंका में राष्ट्रपति पद की दौड़ में देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे और विपक्ष के नेता साजिथ प्रेमदासा सहित कुल चार नेता शामिल हैं। श्रीलंका में अभूतपूर्व आर्थिक संकट को लेकर व्यापक स्तर पर हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच गोटबाया राजपक्षे के राष्ट्रपति पद से इस्तीफे के कारण 20 जुलाई को राष्ट्रपति चुनाव होगा। 13 मिनट के विशेष सत्र के दौरान संसद के महासचिव धम्मिका दसानायके ने राजपक्षे के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति पद के लिए रिक्ति की घोषणा की। राजपक्षे बुधवार को मालदीव चले गये थे और बृहस्पतिवार को वह सिंगापुर पहुंचे और शुक्रवार को उन्होंने राष्ट्रपति पद से औपचारिक रूप से इस्तीफा दे दिया था। दसानायके ने कहा कि राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन 19 जुलाई को दाखिल किए जाएंगे और अगर एक से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में होते हैं तो सांसद बुधवार को मतदान करेंगे। 225 सदस्यीय श्रीलंकाई संसद में राजपक्षे की सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) पार्टी का वर्चस्व है। कार्यवाहक राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को आधिकारिक तौर पर समर्थन देने की घोषणा करने के बाद एसएलपीपी में आंतरिक स्तर पर विरोध के स्वर भी उठने लगे हैं। पार्टी अध्यक्ष जीएल पेइरिस ने कहा कि एसएलपीपी को अपने सदस्य के अलावा किसी और के पक्ष में मतदान नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पार्टी को एसएलपीपी से अलग हुए नेता अलहप्परुमा का समर्थन करना चाहिए, जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर की है। नया राष्ट्रपति नवंबर 2024 तक राजपक्षे के शेष कार्यकाल के लिए पद पर रहेंगे।
एसएलपीपी ने आधिकारिक तौर पर विक्रमसिंघे के समर्थन की घोषणा की है। प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे ने कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। विक्रमसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) 2020 के संसदीय चुनाव में बुरी तरह से हार गई थी।
राजपक्षे ने अपने त्यागपत्र में खुद का बचाव करते हुए कहा है कि उन्होंने पूरी क्षमता के साथ मातृभूमि की रक्षा की और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे। सिंगापुर से संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्द्धने को भेजे गए राजपक्षे के इस त्यागपत्र को शनिवार को संसद के विशेष सत्र के दौरान पढ़ा गया। संसद के सचिव धम्मिका दसानायके ने उनका त्याग पत्र पढ़ा। राजपक्षे (73) ने अपने त्यागपत्र में श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के गंभीर संकट में पड़ने के लिए कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि उन्होंने आर्थिक मंदी का मुकाबला करने के लिए सर्वदलीय सरकार बनाने की कोशिश करने जैसे बेहतरीन कदम उठाए। राजपक्षे ने त्यागपत्र में लिखा है, ''मैंने पूरी क्षमता के साथ मातृभूमि की रक्षा की और भविष्य में भी ऐसा ही करता रहूंगा।'' उन्होंने कहा कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद तीन महीने के अंदर पूरी दुनिया कोविड-19 की चपेट में आ गई। राजपक्षे ने कहा, ''मैंने उस समय पहले से ही खराब आर्थिक माहौल से विवश होने के बावजूद लोगों को महामारी से बचाने के लिए कार्रवाई की।'' उन्होंने कहा, "2020 और 2021 के दौरान मुझे लॉकडाउन का आदेश देने के लिए मजबूर होना पड़ा और विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगा। मेरे विचार से, मैंने स्थिति से निपटने के लिए एक सर्वदलीय या राष्ट्रीय सरकार बनाने का सुझाव देकर सबसे अच्छा कदम उठाया।" राजपक्षे ने पत्र में कहा, "नौ जुलाई को पार्टी नेताओं की इच्छा के बारे में पता चलने के बाद मैंने इस्तीफा देने का फैसला किया।" वह बुधवार को मालदीव चले गए थे और इसके बाद बृहस्पतिवार को सिंगापुर पहुंच गए। सिंगापुर के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि न तो राजपक्षे ने शरण मांगी है और न ही उन्हें शरण दी गई है तथा उन्हें ''निजी यात्रा'' के लिए प्रवेश की अनुमति दी गई। इस बीच भारत ने श्रीलंका में अभूतपूर्व राजनीतिक संकट और आर्थिक बदहाली के बीच शनिवार को उसे आश्वस्त किया कि वह देश के लोकतंत्र, स्थिरता और आर्थिक बहाली में सहयोग करता रहेगा। श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने को एक मुलाकात में यह आश्वासन दिया। यह मुलाकात ऐसे समय हुई जब एक दिन पहले अभयवर्धने ने गोटबाया राजपक्षे का राष्ट्रपति पद से इस्तीफा मंजूर कर लिया था। भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया कि बैठक में उच्चायुक्त बागले ने ‘‘खासतौर से ऐसे अहम मोड़ पर लोकतंत्र तथा संवैधानिक ढांचे को बनाए रखने में संसद की भूमिका की सराहना की। उन्हें यह बताया कि हम श्रीलंका के लोकतंत्र, स्थिरता और आर्थिक बहाली में सहयोग करते रहेंगे।'' गौरतलब है कि 2.2 करोड़ की आबादी वाला देश श्रीलंका सात दशकों में सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है, जिसके चलते लोग खाद्य पदार्थ, दवा, ईंधन और अन्य जरूरी वस्तुएं खरीदने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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