नेपाल के दलों और वकीलों ने संसद भंग करने के कदम को ‘असंवैधानिक' और ‘मनमाना' करार दिया
काठमांडू. नेपाल के प्रमुख राजनीतिक दलों और वकीलों के शीर्ष निकाय ने राष्ट्रपति के संसद भंग करने के फैसले की कड़ी आलोचना की और इस कदम को ‘‘असंवैधानिक, मनमाना'' तथा लोकतंत्र के लिए एक गंभीर झटका बताया है। यह आलोचना शुक्रवार को अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की अध्यक्षता में पहली कैबिनेट बैठक में प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश किए जाने और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल द्वारा इसे तुरंत मंजूरी दिए जाने के बाद आई। राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, प्रतिनिधि सभा 12 सितंबर, 2025 की रात 11 बजे से भंग हो गई है। इसमें कहा गया कि राष्ट्रपति ने नए संसदीय चुनाव कराने की तारीख 21 मार्च, 2026 तय की है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने संसद भंग करने के इस कदम की निंदा की है।
इस कदम को अस्वीकार करते हुए, देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी, नेपाली कांग्रेस ने चेतावनी दी कि संविधान का उल्लंघन करने वाली कोई भी कार्रवाई अस्वीकार्य होगी। समाचार पोर्टल ‘माय रिपब्लिका' की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को नेपाली कांग्रेस की केंद्रीय कार्यकारी समिति की बैठक में यह निष्कर्ष निकला कि संसद भंग करने के फैसले ने देश की लोकतांत्रिक उपलब्धियों को खतरे में डाल दिया है।'' नेपाली कांग्रेस के महासचिव विश्व प्रकाश शर्मा ने कहा कि संविधान का कोई भी उल्लंघन गंभीर सवाल खड़े करता है। सीपीएन-यूएमएल के महासचिव शंकर पोखरेल ने इस कदम को ‘'चिंताजनक'' बताया।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के नेता के हवाले से समाचार पोर्टल ने कहा, ‘‘अतीत में, संसद को भंग करने के अधिकतर सरकारों के प्रयासों को असंवैधानिक बताकर चुनौती दी गई थी। विडंबना यह है कि वही आवाजें अब संसद को भंग करने का समर्थन कर रही हैं। हमें सतर्क रहना चाहिए।'' सीपीएन (माओवादी केंद्र) ने भी प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले पर असहमति व्यक्त की।
पार्टी प्रवक्ता और उपाध्यक्ष अग्नि प्रसाद सपकोटा ने कहा कि यह फैसला देश के संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है। नेपाल बार एसोसिएशन (एनबीए) ने शुक्रवार देर रात एक बयान में कहा कि ‘‘मनमाने'' तरीके से संसद को भंग करना संवैधानिक सर्वोच्चता को कमजोर करता है और संविधानवाद के मूल पर प्रहार करता है।
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