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 100 की उम्र में भी अनुशासित जिंदगी जीती थीं हीराबा

 अहमदाबाद।   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबा का शुक्रवार सुबह निधन हो गया। हीराबा को बुधवार को तबीयत बिगड़ने के बाद अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। हीराबा की उम्र 100 साल थी। 100 की उम्र के बावजूद वह काफी सक्रिय रहती थीं। इस उम्र में भी अपना काम वह खुद निपटाने की कोशिश करती थीं। आइए आपको बतातें हैं पीएम मोदी की मां की दिनचर्या से लेकर उनके संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में... 
 हीराबा की संघर्ष की कहानी
हीराबा के लंबे समय तक जीने का राज उनके द्वारा किया गया संघर्ष था। शुरुआती जीवन से लेकर अब तक हीराबा की दिनचर्या काफी अनुशासित रही। पीएम मोदी अभी भी अपनी मां से सीख लेने की कोशिश करते हैं। हीराबा का जन्म पालनपुर में हुआ था, शादी के बाद वह वडनगर शिफ्ट हो गई थीं। हीराबा की उम्र महज 15-16 साल थी, जब उनकी शादी हुई थी। घर की आर्थिक और पारिवारिक स्थिति कमजोर होने के चलते उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिला। लेकिन वह अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए दूसरे के घरों में भी काम करने के लिए तैयार हो गईं। उन्होंने फीस भरने के लिए कभी किसी से उधार पैसे नहीं लिए। हीराबा चाहती थीं कि उनके सभी बच्चे पढ़लिखकर शिक्षित बने।
 बच्चों के बीमार होने पर खुद घरेलू उपचार करती थीं
पीएम मोदी के भाई प्रह्लाद मोदी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि मां हीराबा सभी तरह के घरेलू उपचार जानती थीं। वडनगर के छोटे बच्चों और महिलाओं का इलाज करती थीं। कई महिलाएं अपनी परेशानी दूसरों को बताने के बजाय हीराबा को बताती थीं। मेरी मां जरूर अनपढ़ थीं लेकिन पूरा गांव उन्हें डॉक्टर कहता था।
 दिनभर काम में व्यस्त रहती थीं हीराबा
प्रह्लाद मोदी ने बताया थ कि उनकी मां सुबह और शाम दो बार कुएं से पानी खींचकर लाती थीं। कपड़े धोने के लिए तालाब जाती थीं। उन्होंने अधिकांश समय घर का ही खाना खाया। बाहर के खाने से परहेज किया करती थीं। मां हीराबा को आइसक्रीम काफी पसंद है। वह इसके लिए कभी मना नहीं करतीं। वह हमेशा कामों में व्यस्त रहती थीं। उनकी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरु हो जाती थी। जिसके बाद वह सबसे पहले घर का काम निपटाती थीं। फिर दूसरों के घरों में काम करने जाती थीं। वह बच्चे को पालने के लिए काफी कठिन मेहनत करती थीं।
 हीराबेन ने बचपन में ही मां को खो दिया था
हीराबा के 100वें जन्मदिन पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लॉग में जानकारी देते हिए कहा था कि उनकी मां हीराबेन का जन्म गुजरात के मेहसाणा के विसनगर के पालनपुर में हुआ था, जो वडनगर के काफी करीब है। छोटी सी उम्र में, उसने अपनी मां को स्पेनिश फ्लू महामारी में खो दिया। हीराबेन को अपनी माँ का चेहरा या उनकी गोद का आराम भी याद नहीं है। उसने अपना पूरा बचपन अपनी माँ के बिना बिताया। वह अपनी मां की गोद में हम सब की तरह आराम नहीं कर सकती थी। वह स्कूल भी नहीं जा सकती थी और पढ़ना-लिखना सीख सकती थी। उनका बचपन गरीबी और अभावों में बीता।
 घर का खर्चा चलाने के लिए दूसरे के घरों में बर्तन धोती थीं
उन्होंने उल्लेख किया था कि कैसे उनकी मां न केवल घर के सभी काम खुद करती हैं बल्कि घर की मामूली आय को पूरा करने के लिए भी काम करती हैं। वह  चरखा चलाने के लिए समय निकालती थीं। उन्होंने वडनगर के उस छोटे से घर को याद किया जिसकी छत के लिए मिट्टी की दीवारें और मिट्टी की टाइलें थीं, जहां वे अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ रहते थे। उन्होंने उन असंख्य रोजमर्रा की प्रतिकूलताओं का उल्लेख किया, जिनका सामना उनकी मां ने किया और सफलतापूर्वक उन पर विजय प्राप्त की।

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