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पहांडी अनुष्ठान के बाद भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा रथों पर सवार

पुरी (ओडिशा). पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर में तीन घंटे के ‘पहांडी' अनुष्ठान के सम्पन्न होने के बाद भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा रविवार को अपने-अपने रथों में सवार हो गए। ‘पहांडी' अनुष्ठान पूर्वाह्न करीब सवे 11 बजे आरंभ हुआ और जब भगवान सुदर्शन को सबसे पहले देवी सुभद्रा के रथ ‘दर्पदलन' तक ले जाया गया तो पुरी मंदिर के सिंहद्वार पर घंटियों, शंखों और मंजीरों की ध्वनियों के बीच श्रद्धालुओं ने ‘जय जगन्नाथ' के जयकारे लगाए। भगवान सुदर्शन के पीछे-पीछे भगवान बलभद्र को उनके ‘तालध्वज रथ' पर ले जाया गया। सेवक भगवान जगन्नाथ और भगवान बलभद्र की बहन देवी सुभद्रा को विशेष शोभा यात्रा निकालकर ‘दर्पदलन' रथ तक लाए। अंत में, भगवान जगन्नाथ को घंटियों की ध्वनि के बीच एक पारंपरिक शोभा यात्रा निकालकर ‘नंदीघोष' रथ पर ले जाया गया। देवी-देवताओं को मंदिर से रथों तक ले जाने का ‘पहांडी' अनुष्ठान अपराह्न करीब सवा दो बजे सम्पन्न हुअ।
 भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रत्न जड़ित सिंहासन से उतारकर 22 सीढ़ियों (बैसी पहाचा) के माध्यम से सिंह द्वार से होकर एक विस्तृत शाही अनुष्ठान ‘पहांडी' के जरिए मंदिर से बाहर लाया गया। मंदिर के गर्भगृह से मुख्य देवताओं को बाहर लाने से पहले ‘मंगला आरती' और ‘मैलम' जैसे कई पारंपरिक अनुष्ठान आयोजित किए गए। तीनों भव्य रथ अब मंदिर के सिंहद्वार के सामने गुंडिचा मंदिर की ओर पूर्व की ओर मुख करके खड़े हैं।
 ‘पहांडी' अनुष्ठान पूरा होने के बाद पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती अपने रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन करेंगे। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और कई राज्य मंत्रियों ने शंकराचार्य से मुलाकात की। प्रधान ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के अवसर पर मैं और लाखों भक्त यहां आए हैं। मुझे पुरी के शंकराचार्य से मिलने का अवसर मिला। भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद के साथ पुरी के शंकराचार्य से मार्गदर्शन पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूं।'' मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी बड़ादंडा पहुंचे, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भी शाम चार बजकर 40 मिनट पर मंदिर के बाहर ग्रैंड रोड पर पहुंचने की उम्मीद है। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, गजपति दिव्यसिंह देब चार बजे तक रथों का ‘छेरा पहरा' करेंगे। रथों पर लकड़ी के घोड़े लगाने के बाद उन्हें खींचने का काम शाम पांच बजे से शुरू होगा। भगवान बलभद्र ‘तालध्वज' पर सवार होकर रथ यात्रा का नेतृत्व करेंगे। उनकी बहन देवी सुभद्रा उनके पीछे ‘दर्पदलन' में होंगी और आखिर में भगवान जगन्नाथ ‘नंदीघोष' पर सवार होकर यात्रा करेंगे। गर्मी और उमस के बावजूद रविवार को भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा में शामिल होने के लिए तीर्थ नगरी पुरी में लाखों श्रद्धालु उमड़े। यह 53 साल बाद दो दिवसीय यात्रा होगी। ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार, इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की गई है। आखिरी बार 1971 में दो-दिवसीय यात्रा का आयोजन किया गया था।

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