पुराणों में वर्णित सबसे शक्तिशाली धनुष हैं ये...जिसका निर्माण स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने किया था....
हिन्दू धर्म में अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र प्रसिद्ध हैं। सभी अस्त्र-शस्त्रों में जो सबसे अधिक उपयोग किया जाता था वो था धनुष और बाण। हमारे ग्रंथों में ऐसे कई दिव्य धनुषों का वर्णन है जो समय-समय पर अलग-अलग योद्धाओं के पास था। इनमें से दो धनुष बहुत शक्तिशाली माने गए हैं।
पिनाक: महादेव का धनुष। इसे "अजगव" भी कहा जाता है।
श्राङ्ग: भगवान विष्णु का धनुष। इसे "शर्ख" के नाम से भी जाना जाता है।
कहा जाता है कि इन दोनों धनुषों का निर्माण स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने किया था। हालाँकि कुछ स्थानों पर कहा जाता है कि इन दोनों का निर्माण विश्वकर्मा ने किया था तो कुछ ग्रंथों में देवराज इंद्र को इन दोनों का निर्माता बताया गया है। हालाँकि अधिकतर ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है कि इन दोनों को परमपिता ब्रह्मा ने ही बनाया था और इनमें से एक धनुष (श्राङ्ग) उन्होंने नारायण को और दूसरा धनुष (पिनाक) महादेव को दिया। ये दोनो महान धनुष समान शक्तिशाली ही माने जाते हैं। अपने-अपने धनुषों को धारण करने के बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु में इस बात पर वार्तालाप हुआ कि इन दोनों धनुषों में कौन सा श्रेष्ठ है? तब ब्रह्मदेव की मध्यस्थता में दोनों के बीच अपने अपने धनुष से युद्ध आरम्भ हुआ। बहुत देर युद्ध चलता रहा पर कोई निर्णय नही निकला। तब ब्रह्मा जी के अनुरोध पर दोनों ने युद्ध समाप्त किया और उनसे पूछा कि पिनाक और श्राङ्ग में कौन सा धनुष श्रेष्ठ है? तब परमपिता ने कहा - "इन दोनों धनुषों को मैंने अपने सर्वश्रेष्ठ कौशल से बनाया है और इसी कारण इन दोनों के बीच अंतर बता पाना संभव नही है। किंतु युद्ध के बीच मे भगवान शिव श्रीहरि का युद्ध कौशल देखने के लिए कुछ समय के लिए रुक गए थे, इसीलिए उस आधार पर मैं श्राङ्ग को पिनाक से श्रेष्ठ घोषित करता हूँ।"
ये सुनकर महादेव रुष्ट हो गए और उन्होंने पिनाक को त्याग दिया। उन्होंने श्रीहरि से कहा कि अब आप ही इस धनुष को भंग कीजिये। तब भगवान विष्णु ने कहा कि समय आने पर मैं आपकी इच्छा अनुसार अवश्य इसका नाश करूँगा। तब महादेव की आज्ञा से वो धनुष पहले इंद्र ने लिया और बाद में उसे जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। आगे चलकर महादेव के वचन के अनुसार श्रीराम ने माता सीता के स्वयंवर में धनुष-भंग किया। यही वो धनुष था जिससे महादेव ने त्रिपुर संहार किया था।
श्राङ्ग आगे चलकर श्रीकृष्ण को प्राप्त हुआ जिसे "शर्ख" के नाम से जाना गया। भगवान विष्णु ने इसे "गोवर्धन" नाम भी दिया। हालाँकि कई स्थानों पर श्राङ्ग और गोवर्धन को श्रीहरि का दो अलग धनुष बताया गया है। कहते हैं कि महाभारत में श्रीकृष्ण के धनुष को उनके अतिरिक्त केवल परशुराम, भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं अर्जुन ही संभाल सकते थे। श्रीकृष्ण ने कंस की सभा मे एक और महान धनुष को भंग किया था। मान्यता है कि वो धनुष भी भगवान शंकर का ही था। हालांकि उसे केवल "शिव धनुष" ही कहा गया है। उसी प्रकार श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए भगवान परशुराम ने उन्हें अपने धनुष पर प्रत्यञ्चा चढाने को कहा था जिसे रामायण में "वैष्णव धनुष" कहा गया है।
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