दक्षिण दिशा में मुख करके भोजन करना क्यों वर्जित है?
बालोद से पंडित प्रकाश उपाध्याय
पुरातन काल से यह माना जाता है कि दक्षिण दिशा में मुंह करके भोजन करना इंसान को अकाल मृत्यु की ओर ले जाता है। माना जाता है कि ये दिशा मरे हुए लोगों की है और इस दिशा में ऐसी ही ऊर्जा रहती है। जब आप इस दिशा में खाना खाते हैं तो ये नकारात्मक ऊर्जा आपके खाने में मिल जाती है या फिर आपके खाने का एक भाग इन्हें भी जाने लगता हैफिर लगातार ये काम करना इनके साथ संपर्क बढ़ाता है और मृत्यु की दिशा क्रियाशील हो जाती है और आप या आपका कोई विशेष अचानक से अकाल मृत्यु की ओर चला जाता है।
खाने की सही दिशा क्या है?
भोजन करने की सही दिशा है पूर्व। वास्तव में, इस दिशा में भोजन करना मानसिक तनाव को दूर करता है और इंसान की पाचन क्रिया को सही करता है। इसके अलावा इस दिशा में भोजन करने से आप स्वस्थ्य रहते हैं। इतना ही नहीं इस दिशा में खाना खाने से माता-पिता का भी स्वास्थ्य उत्तम रहता है।
-माना जाता है कि पूर्व की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढ़ती है।
-उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आयु तथा धन की प्राप्ति होती है।
-दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से प्रेतत्व की प्राप्ति होती है।
-पश्चिम की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति रोगी होता है।
भोजन सदा एकान्त में ही करना चाहिये। यदि पत्नी भोजन कर रही हो, तो पति को उसे नहीं देखना चाहिये। बालक और वृद्ध को भोजन करने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें। बिना स्नान, पूजन, हवन किये बिना भोजन न करें।
- बिना स्नान ईख, जल, दूध, फल एवं औषध का सेवन कर सकते हैं।
-किसी के साथ एक बर्तन मे भोजन न करें। पत्नी के साथ तो कदापि नहीं।
-अपना जूठा किसी को ना दें, ना स्वयं किसी का जबठा खायें।
- काँसे के बर्तन में भोजन करने से (रविवार छोडक़र) आयु, बुद्धि, यश और बल की वृद्धि होती है।
सनातन धर्म के अनुसार खाने से पूर्व अन्नपूर्णा माता की स्तुति करके उनका धन्यवाद देते हुये, तथा सभी भूखों को भोजन प्राप्त हो इश्र्वर से ऐसी प्रार्थना करके भोजन करना चाहिये। गृहस्थ के लिये प्रात: और सायं (दो समय) ही भोजन का विधान है। दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख, इन पाँच अंगों को धोकर भोजन करने वाला दीर्घजीवी होता है। भीगे पैर भोजन करने से आयु की वृद्धि होती है।
-वहीं सूखे पैर, जूते पहने हुये, खड़े होकर, सोते हुये, चलते फिरते, बिछावन पर बैठकर, गोद में रखकर, हाथ मे लेकर, टूटे हुये बर्तन में, बायें हाथ से, मंदिर में, संध्या के समय, मध्य रात्रि या अंधेरे में भोजन नहीं करना चाहिये।
- रात्रि में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिये। रात्रि के समय दही, सत्तु एवं तिल का सेवन नहीं करना चाहिये। हँसते हुये, रोते हुये, बोलते हुये, बिना इच्छा के, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन नहीं करना चाहिये।
Leave A Comment