कजरी तीज... जानें नीमड़ी पूजन का सही तरीका और शुभ मुहूर्त
12 अगस्त को उत्तर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से रचा-बसा एक महत्वपूर्ण पर्व
कजरी तीज उत्तर भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से रचा-बसा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाती हैं। यह त्योहार सावन की रिमझिम फुहारों के बीच सुहागिनों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन वे अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। पारंपरिक वेशभूषा, कजरी गीतों की मधुर धुन और झूला झूलने की परंपरा इस पर्व की सुंदरता को और भी बढ़ा देती है।
कजरी तीज का एक विशेष पक्ष है नीमड़ी पूजन, जिसमें महिलाएं नीम की डाली को देवी रूप में पूजती हैं। नीम को शास्त्रों में रोग नाशक और वातावरण को शुद्ध करने वाला वृक्ष माना गया है। इस पूजा से न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा मिलती है, बल्कि यह प्रकृति से जुड़ाव और स्त्री सशक्तिकरण का भी संदेश देती है। यह पर्व पारिवारिक एकता, प्रेम और सामूहिक उल्लास का प्रतीक है, जो समाज में सकारात्मकता और शांति का संचार करता है।
क्या है कजरी तीज और इसका महत्व?
कजरी तीज उत्तर भारत में मनाया जाने वाला एक पावन पर्व है, जो हरियाली तीज के लगभग पंद्रह दिन बाद आता है। यह त्योहार खासतौर पर विवाहित महिलाओं द्वारा पति की लंबी उम्र, पारिवारिक सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना के लिए मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं, पारंपरिक कजरी गीत गाती हैं और रात को पूजा कर धार्मिक कथा सुनती हैं। कजरी तीज की सबसे खास परंपरा है निमड़ी पूजन, जिसमें नीम को देवी के रूप में पूजने की परंपरा है।
क्या होती है नीमड़ी पूजन की परंपरा?
नीमड़ी पूजन में महिलाएं नीम के पेड़ या उसकी टहनी को प्रतीक रूप में स्थापित करके उसे माता का स्वरूप मानती हैं। कुछ स्थानों पर नीम की पत्तियों के ऊपर मिट्टी से बनी देवी की प्रतिमा रखकर पूजा की जाती है। महिलाएं हल्दी, चूड़ी, सिंदूर, रोली और सुहाग की अन्य सामग्रियों से नीमड़ी माता की पूजा करती हैं। यह पूजन सौभाग्य, संतान सुख और घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने का प्रतीक माना जाता है।
व्रत और पूजन विधि
सुबह महिलाएं स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जल उपवास करती हैं। शाम को नीम की टहनी या उसकी प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है। कजरी माता की कथा सुनी जाती है, जिसमें एक ब्राह्मणी के व्रत और उसकी परीक्षा की कहानी होती है। अंत में चावल और गुड़ का भोग लगाकर सुखद वैवाहिक जीवन और पारिवारिक सुख की प्रार्थना की जाती है।
नीमड़ी पूजन से जुड़ी मान्यता
ऐसा माना जाता है कि नीम में देवी दुर्गा का वास होता है और उसका पूजन करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है। नीम की शीतलता और औषधीय गुण तन और मन दोनों को शुद्ध करने में सहायक होते हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं कजरी गीत गाते हुए नीम के पेड़ के नीचे झूला झूलती हैं और नीमड़ी माता से सुख, समृद्धि और सुरक्षा की कामना करती हैं।
कजरी तीज के पर करें ये उपाय
कजरी तीज के दिन कुछ विशेष और आसान उपाय करके महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को और भी सुखमय बना सकती हैं। इन उपायों से न केवल देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि घर में शांति, प्रेम और समृद्धि भी बनी रहती है।
पूजन के बाद नीम की टहनी पर चूड़ियां, बिंदी, कंघी, सिंदूर जैसी सुहाग की सामग्री चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में मधुरता आती है और आपसी समझ मजबूत होती है।
गाय के दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल को मिलाकर नीम की डाली का अभिषेक करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा आती है और जीवन में पवित्रता बनी रहती है।
कुआं, नदी या तालाब की मिट्टी से शिव और पार्वती की छोटी मूर्ति बनाकर उनका पूजन करना इस दिन बहुत फलदायी होता है। यह उपाय अखंड सौभाग्य बनाए रखने में सहायक होता है।
कजरी तीज की कथा सुनने के बाद किसी सुहागिन महिला को साड़ी, चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर आदि दान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है। इससे घर में चल रहे संकट और तनाव कम होते हैं।
जब रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें, तो मन में यह भाव रखें। "हे चंद्र देव, जैसे आप अपने प्रकाश से पूरे संसार को रोशन करते हैं, वैसे ही मेरे घर को सुख, शांति और सौभाग्य से भर दें।" इस भावना के साथ दिया गया अर्घ्य बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
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