गणेश चतुर्थी पर ना करें ये 7 गलतियां, पूजा का नहीं मिलेगा पूरा फल
गणेश जी की मूर्ति को गलत दिशा में रखना पूजा के फल को कम करता है। वास्तु के अनुसार, मूर्ति को उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में रखें। दक्षिण दिशा में मूर्ति रखने से बचें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। सही दिशा से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
टूटी या खंडित मूर्ति की पूजा ना करें
गणेश चतुर्थी पर टूटी या खंडित मूर्ति की पूजा करना अशुभ माना जाता है। ऐसी मूर्ति नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करती है। हमेशा सही आकार और सुंदर मूर्ति चुनें। पूजा से पहले मूर्ति की जांच करें और सुनिश्चित करें कि वह पूरी तरह ठीक हो।
चंद्र दर्शन से बचें
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को देखना वर्जित है, क्योंकि इससे मिथ्या दोष लगता है। पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा ने गणेश जी का मजाक उड़ाया था, जिसके कारण यह नियम बना। यदि गलती से चंद्रमा दिख जाए, तो 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जप करें।
गलत प्रसाद का भोग
गणेश जी को तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली या लहसुन-प्याज युक्त भोजन का भोग ना लगाएं। गणपति को मोदक, लड्डू और फल प्रिय हैं। तुलसी पत्र का उपयोग भी न करें, क्योंकि यह गणेश जी को नहीं चढ़ाया जाता। सात्विक भोग से पूजा का फल बढ़ता है।
साफ-सफाई नजरअंदाज ना करें
गणेश चतुर्थी पर पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। गंदा या अव्यवस्थित पूजा स्थान नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। मूर्ति स्थापना से पहले स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। फूल, दीपक और धूपबत्ती सही ढंग से सजाएं ताकि पूजा का प्रभाव बढ़े।
शयनकक्ष में मूर्ति ना रखें
गणेश जी की मूर्ति को शयनकक्ष में रखना वास्तु दोष उत्पन्न करता है। इससे मानसिक तनाव और अशांति हो सकती है। मूर्ति को पूजा घर, ड्रॉइंग रूम या मुख्य द्वार के पास स्थापित करें। यह स्थान सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और पूजा का शुभ फल देता है। शयनकक्ष में पूजा सामग्री रखने से बचें।
गलत समय पर पूजा ना करें
गणेश चतुर्थी पर पूजा और मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त में करें। सुबह का समय या पंचांग के अनुसार निर्धारित समय सबसे उत्तम है। रात में मूर्ति स्थापना या पूजा करने से बचें, क्योंकि यह अशुभ माना जाता है। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से गणपति की कृपा और कार्यों में सफलता मिलती है।
सम्मान के साथ करें विसर्जन
गणेश चतुर्थी के बाद मूर्ति का विसर्जन सम्मानपूर्वक करें। मूर्ति को गंदे पानी या कूड़ेदान में न फेंकें। इसे नदी या समुद्र में प्रवाहित करें या मंदिर में सौंप दें। विसर्जन के समय 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का जप करें। सम्मानजनक विसर्जन से पूजा का पूरा फल मिलता है।
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