कन्या पूजन में नवदुर्गा का प्रत्येक रूप है खास, जानें कंजक पूजन का महत्व और लाभ
नवरात्रि भारत का प्रमुख धार्मिक पर्व है जो शक्ति की उपासना को समर्पित है। इस पर्व के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि के अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। इसे कंजक पूजन भी कहा जाता है। इस परंपरा में छोटी-छोटी कन्याओं और एक छोटे बालक (लांगुरिया/भैरव) को आमंत्रित कर उन्हें भोजन कराया जाता है और उनका पूजन किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, कन्याएं स्वयं मां दुर्गा का ही रूप मानी जाती हैं। देवी भागवत में वर्णन है कि “जहां कन्याओं का पूजन होता है, वहां मां दुर्गा स्वयं प्रसन्न होकर वास करती हैं।” नवरात्रि के दौरान जब साधक नौ दिनों तक व्रत, भक्ति और अनुष्ठान करते हैं, तो कन्या पूजन को उस साधना का पूर्ण फल माना जाता है। माना जाता है कि जब कन्याओं को श्रद्धा और भक्ति से पूजन कर भोजन कराया जाता है, तो मां दुर्गा साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं।
नवदुर्गा का प्रत्येक रूप
देवी भागवत में नौ कन्याओं को नवदुर्गा का प्रत्यक्ष विग्रह बताया गया है। उसके अनुसार नवकुमारियां भगवती के नवस्वरूपों की जीवंत मूर्तियां है। इसके लिए दो से दस वर्ष तक की कन्याओं का चयन किया जाता है।
दो वर्ष की कन्या ‘कुमारिका’ कहलाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है।
तीन वर्ष की कन्या ‘त्रिमूर्ति’ कही जाती है। इसके पूजन से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
चार वर्ष की कन्या ‘कल्याणी’ के पूजन से विवाह आदि मंगल कार्य संपन्न होते हैं।
पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ की पूजा से स्वास्थ्य लाभ होता है।
छह वर्ष की कन्या ‘कालिका’ के पूजन से शत्रु का दमन होता है।
आठ वर्ष की कन्या ‘शांभवी’ के पूजन से दुःख-दरिद्रता का नाश होता है।
नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ पूजन से असाध्य रोगों का शमन और कठिन कार्य सिद्ध होते हैं।
दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवी भागवत में इन नौ कन्या को कुमारी नवदुर्गा की साक्षात प्रतिमूर्ति माना गया है। दस वर्ष से अधिक आयु की कन्या को कुमारी पूजा में सम्मिलित नहीं करना चाहिए। कन्या पूजन के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होतीं।
नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे करें?
महाअष्टमी या महानवमी के दिन स्नान आदि करने के बाद भगवान गणेश और माता गौरी की पूजा करें।
इसके बाद कन्या पूजन के लिए 9 कन्याओं और एक बालक को भी आमंत्रित करें।
पूजा की शुरुआत कन्याओं के स्वागत से करें।
इसके बाद सभी कन्याओं के साफ पानी से पैर धोएं और साफ कपड़े से पोछकर आसन पर बिठाएं।
फिर कन्याओं के माथे पर कुमकुम और अक्षत का टीका लगाएं।
इसके बाद कन्याओं के हाथ में कलावा या मौली बांधें।
एक थाली के में घी का दीपक जलाकर सभी कन्याओं की आरती उतारें।
आरती उतारने के बाद कन्याओं को भोग में पूड़ी, चना, हलवा और नारियल खिलाएं।
भोजन के बाद उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार भेंट दें।
आखिर में कन्याओं के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद जरूर लें।
अंत में उन्हें अक्षत देकर उनसे थोड़ा अक्षत अपने घर में छिड़कने को कहें।
कन्या पूजन का महत्व
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, कन्या पूजन के लिए दो से दस साल तक की कन्या उपयुक्त होती हैं. दो से दस साल तक की कन्याएं मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इसके अलावा लंगूर के रूप में एक बालक को भी इस पूजा में शामिल किया जाता है, जिसे भैरव बाबा या हनुमान जी का प्रतीक कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अष्टमी और नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनकी कृपा आपके परिवार पर सदा बनी रहती है।


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