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 मां शैलपुत्री के पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होते हैं
 शक्ति उपासना का पर्व नवरात्रि  आज से शुरु हो गया है।  नवरात्र के पहले दिन विधि-विधान के साथ घटस्थापना या कलश स्थापना कर देवी मां की पूजा की जाती है। 
 नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों (मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी, मां सिद्धिदात्री) की पूजा होती है। नवरात्रि का  पहला दिन  मां शैलपुत्री को समर्पित रहता है।   हिन्दू् पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इनके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है। कहते हैं कि जो भी भक्ता श्रद्धा भाव से मां की पूजा करता है उसे सुख और सिद्धि की प्राप्ति होती है
पौराणिक कथा के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय (शैल) की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री है। कहा जाता है मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की कन्या पुत्री थी और उनका नाम सती था। माता सती का विवाह जगत के संहारक, देवों के देव महादेव शिजी के साथ हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित होने के लिए न्यौता दिया, लेकिन जानबूझकर भगवान शिवजी को यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए नहीं बुलाया। 
 वहीं माता सती इस यज्ञ में शामिल होने के लिए आतुर थीं। ऐसे में उन्होंने शिवजी से यज्ञ में चलने का आग्रह किया। किंतु शिवजी ने उनसे कहा कि राजा दक्ष ने उन्हें इस आयोजन के लिए निमंत्रण नहीं भेजा है। अत: हमारा जाना वहां उचित नहीं होगा और ऐसी स्थिति में तुम्हारा भी वहां पर जाना ठीक नहीं है। भोलेनाथ ने जब उन्हें अपने मायके में होने वाले यज्ञ में हिस्सा लेने के लिए मना किया तो वे दुखी हो गईं। माता सती का दुखी चेहरा भोले बाबा से देखा न गया। उन्होंने माता सती को जाने की अनुमति दे दी, किंतु स्वयं नहीं गए। 
 उधर जब मां सती अपने पिता के घर पहुंची, तो उन्हें पिता के द्वारा तिरस्कार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, राजा दक्ष ने अपनी बेटी और पूरी सभा के सामने शिवजी को खूब बुरा भला कहा, उनकी निंदा की। अपने पति के प्रति इस दव्र्यवहार को देखकर माता सती का हृदय बहुत दुखी हो गया। अपने पति परमेश्वर का अपमान उनसे सहन नहीं हुआ। पिता की कड़वी बातों ने उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने उसी यज्ञ में अपना जौहर कर दिया। यज्ञ की अग्नि में माता सती जलकर भस्म हो गईं। 
 वज्रपात के समान इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ।

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