नासा ने 2030 तक शुक्र तक दो मिशनों की घोषणा की
नॉटिंघम (ब्रिटेन)। हमारे सौरमंडल की दशकों से जारी खोज में हमारे पड़ोसी ग्रहों में से एक शुक्र ग्रह की हर बार अनदेखी की गई या उसके बारे में जानने-समझने के बहुत ज्यादा प्रयास नहीं किए गए लेकिन अब चीजें बदलने वाली हैं। नासा के सौरमंडल खोज कार्यक्रम की ओर से हाल में की गई घोषणा में दो मिशनों को हरी झंडी दी गई है और ये दोनों मिशन शुक्र ग्रह के लिए हैं। इन दो महत्वाकांक्षी मिशनों को 2028 से 2030 के बीच शुरू किया जाएगा।
नासा के ग्रह विज्ञान विभाग के लिए एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है क्योंकि उसने 1990 के बाद से शुक्र ग्रह तक किसी मिशन को नहीं भेजा है। यह अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए उत्साहित करने वाली खबर है। शुक्र ग्रह पर परिस्थितियां प्रतिकूल हैं। उसके वातावरण में सल्फरिक एसिड है और सतह का तापमान इतना गर्म है कि सीसा पिघल सकता है। लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। ऐसा माना जाता है कि शुक्र ग्रह की उत्पत्ति बिलकुल धरती की उत्पत्ति के समान हुई थी। तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि वहां की परिस्थितियां धरती के विपरीत हो गईं? धरती पर, कार्बन मुख्यत: पत्थरों के भीतर मुख्य रूप से फंसी हुआ है जबकि शुक्र ग्रह पर यह खिसकर वातावरण में चला गया जिससे इसके वातावरण में तकरीबन 96 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड है। इससे बहुत ही तेज ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न हुआ जिससे सतह का तापमान 750 केल्विन (470 डिग्री सेल्सियस या 900 डिग्री फारेनहाइट) तक चला गया है। ग्रह का इतिहास ग्रीनहाउस प्रभाव को पढऩे और धरती पर इसका प्रबंधन कैसे किया जाए, यह समझने का बेहतरीन मौका उपलब्ध कराएगा। इसके लिए ऐसे मॉडलों का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें शुक्र के वायुमंडल की चरम स्थितियों को तैयार किया जा सकता है और परिणामों की तुलना धरती पर मौजूदा स्थितियों से कर सकते हैं।
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