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 डीएपी की वैश्विक कीमतों में उछाल की वजह से ऊंची सब्सिडी की जरूरत : एफएआई
 नयी दिल्ली। भारतीय उर्वरक संघ (एफएआई) ने पिछले कुछ महीनों में डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी का हवाला देते हुए कहा है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दरें ऊंची बनी रहीं तो या तो सरकारी सब्सिडी या फिर अधिकतम खुदरा कीमत (एमआरपी) में बढ़ोतरी करने की जरूरत होगी। मौजूदा समय में उर्वरक कंपनियां 50 किलोग्राम की प्रति बोरी डीएपी की बिक्री 1,350 रुपये पर कर रही हैं। उर्वरक उद्योग के निकाय एफएआई के अध्यक्ष एन सुरेश कृष्णन ने कहा कि डीएपी की वैश्विक कीमतें इस साल जुलाई में 440 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 595 डॉलर प्रति टन हो गई हैं। अप्रैल, 2022 में डीएपी की कीमत 924 डॉलर प्रति टन थी। उन्होंने सोमवार देर रात संवाददाताओं से कहा, ‘‘इस समय मौजूदा आयात मूल्य के साथ डीएपी के मामले में लाभप्रदता थोड़ी चुनौती होगी। अगर वैश्विक कीमतें मौजूदा स्तर पर बनी रहती हैं, तो हमें या तो अधिक एमआरपी या सरकार से अधिक समर्थन की आवश्यकता हो सकती है।'' फॉस्फोरिक एसिड की कीमतें अप्रैल, 2022 में 1,530 डॉलर प्रति टन से घटकर जुलाई, 2023 में 970 डॉलर प्रति टन रह गई और अक्टूबर, 2023 में फिर से बढ़कर 985 डॉलर प्रति टन हो गईं। अमोनिया की कीमतों ने भी इसी तरह का रुझान दिखाया है जो अप्रैल, 2022 में 1,530 डॉलर प्रति टन थीं, जुलाई, 2023 में घटकर 285 डॉलर रह गईं और अक्टूबर, 2023 में फिर से बढ़कर 575 डॉलर प्रति टन हो गई हैं।
यूरिया उत्पादन भी अपनी 80-85 प्रतिशत आवश्यकता को पूरा करने के लिए आयातित आरएलएनजी (रीगैसीफाइड तरलीकृत प्राकृतिक गैस) पर काफी हद तक निर्भर है। एफएआई ने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय मूल्य में अस्थिरता और रबी 2023-24 के लिए एनबीएस दरों में गिरावट पीएंडके (फॉस्फेटिक और पोटाश) क्षेत्र की लाभप्रदता को प्रभावित कर रही है।'' एसोसिएशन ने यह भी मांग की कि प्रमुख फसल पोषक तत्व यूरिया को पीएंडके उर्वरकों की तर्ज पर पोषक तत्व-आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत लाया जाना चाहिए। उसका तर्क है कि इससे यूरिया और पीएंडके उर्वरकों के एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) में असमानताओं को ठीक करने में मदद मिलेगी। कृष्णन ने म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) पर कम सब्सिडी होने पर भी चिंता व्यक्त की, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का यह पोषक तत्व डीएपी से महंगा हो गया है और इस तरह इसकी खपत कम हो गई है। एमओपी की खपत में लगातार गिरावट आई है।
 भारतीय उर्वरक क्षेत्र में प्रगति पर प्रकाश डालते हुए कृष्णन ने कहा कि इस वित्त वर्ष में यूरिया उत्पादन पिछले वर्ष के 2.85 करोड़ टन से बढ़कर तीन करोड़ टन होने की उम्मीद है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ वर्षों में घरेलू उत्पादन में वृद्धि के साथ देश आत्मनिर्भर हो जाएगा। एफएआई के अध्यक्ष ने कहा कि नैनो यूरिया की खपत भी बढ़ रही है और उम्मीद है कि पारंपरिक यूरिया के स्थान पर नैनो-यूरिया वर्ष 2030 तक कुल मांग का 20 प्रतिशत पूरा कर सकता है। अप्रैल से अक्टूबर, 2023 की अवधि के दौरान यूरिया, डीएपी और एनपी/एनपीके जटिल उर्वरकों का उत्पादन बढ़ा, लेकिन एसएसपी के उत्पादन में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में गिरावट देखी गई। पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में इस वर्ष अप्रैल-अक्टूबर के दौरान यूरिया और एमओपी का आयात क्रमशः 9.7 प्रतिशत और 63.8 प्रतिशत बढ़ गया। अप्रैल-अक्टूबर, 2023 में डीएपी और एनपी/एनपीके के आयात में क्रमशः 8.8 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की कमी देखी गई। सभी प्रमुख उर्वरकों की बिक्री में अप्रैल-अक्टूबर, 2023 के दौरान एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में सकारात्मक वृद्धि दर्ज की गई। एफएआई 6-8 दिसंबर के दौरान ‘‘उर्वरक और कृषि क्षेत्रों में नवाचार'' विषय पर अपना 59वां वार्षिक सेमिनार आयोजित कर रहा है। सेमिनार का उद्घाटन केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया करेंगे।

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