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समन्वित राजकोषीय, मौद्रिक नीतियों से अर्थव्यवस्था में मजबूती: आरबीआई बुलेटिन

 मुंबई. समन्वित राजकोषीय, मौद्रिक और नियामक नीतियों ने अर्थव्यवस्था में मजबूती लाने में मदद की है। हालांकि, यह बाहरी क्षेत्र की चुनौतियों से पूरी तरह अप्रभावित नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक के सोमवार को जारी एक बुलेटिन में यह कहा गया। आरबीआई के दिसंबर बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि वृहद आर्थिक बुनियाद और आर्थिक सुधारों पर निरंतर ध्यान देने से दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि होगी, जिससे तेजी से बदलते वैश्विक परिवेश के बीच अर्थव्यवस्था को उच्च वृद्धि के रास्ते पर मजबूती से बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2025 में वैश्विक व्यापार नीतियों में काफी बदलाव आया है। शुल्क और व्यापार की शर्तों पर द्विपक्षीय स्तर पर पुनर्विचार की दिशा में कदम बढ़ाया गया। अर्थव्यवस्था की स्थिति पर लिखे गए लेख में कहा गया है कि इसका वैश्विक व्यापार प्रवाह और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है। इससे वैश्विक अनिश्चितताएं और वैश्विक वृद्धि की संभावनाओं को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। इसमें कहा गया, ‘‘भारतीय अर्थव्यवस्था बाहरी क्षेत्र की चुनौतियों से पूरी तरह अप्रभावित नहीं है। लेकिन समन्वित राजकोषीय, मौद्रिक और नियामक नीतियों ने मजबूती लाने में मदद की है।'' लेख में कहा गया है कि 2025-26 की दूसरी तिमाही में मजबूत घरेलू मांग के समर्थन से भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले छह तिमाहियों में सबसे तेज गति से वृद्धि हासिल की। नवंबर के महत्वपूर्ण आंकड़े (जीएसटी संग्रह, ई-वे बिल आदि) बताते हैं कि समग्र आर्थिक गतिविधियां तेज रही हैं और मांग की स्थिति मजबूत बनी हुई है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति में मामूली वृद्धि हुई, लेकिन यह न्यूनतम संतोषजनक स्तर (दो प्रतिशत) से नीचे बनी हुई है। इसके अलावा, लेख में कहा गया है कि वित्तीय स्थितियां अनुकूल बनी रहीं और वाणिज्यिक क्षेत्र में वित्तीय संसाधनों का प्रवाह मजबूत रहा। कम वस्तु व्यापार घाटा, मजबूत सेवा निर्यात और प्रेषण प्राप्तियों के समर्थन से 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत का चालू खाते का घाटा पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में कम रहा। लेख में कहा गया, ‘‘मजबूत घरेलू मांग के साथ आर्थिक वृद्धि मजबूत रही। मुद्रास्फीति में नरमी ने मौद्रिक नीति को आर्थिक वृद्धि का समर्थन करने के लिए पर्याप्त गुंजाइश प्रदान की।'' लेख में यह भी कहा गया है कि अप्रैल-अक्टूबर 2025 के दौरान, सकल और शुद्ध दोनों ही मामलों में, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पिछले वर्ष की तुलना में अधिक रहा। अक्टूबर में सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) अच्छा रहा। सिंगापुर, मॉरीशस और अमेरिका का कुल एफडीआई प्रवाह में 70 प्रतिशत से अधिक का योगदान रहा। हालांकि, मुख्य रूप से पूंजी को अपने देश भेजने और अन्य देशों में होने वाले प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के कारण अक्टूबर में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफपीआई) नकारात्मक रहा। दूसरी ओर, 2025-26 के दौरान अब तक (18 दिसंबर तक), इक्विटी क्षेत्र में मुख्य रूप से पूंजी निकासी के कारण शुद्ध विदेशी निवेश (एफपीआई) में कमी दर्ज की गई। पिछले दो महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में वृद्धि के बाद दिसंबर में निवेश नकारात्मक हो गया।
 लेख में कहा गया, ‘‘भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता और घरेलू बाजार के उच्च मूल्यांकन को लेकर निवेशकों की सतर्कता ने हाल के महीनों में भारत में शुद्ध एफपीआई प्रवाह को नरम बनाए रखा।'' इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने, विदेशी पोर्टफोलियो प्रवाह में कमी और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता के दबाव के कारण नवंबर में भारतीय रुपया (आईएनआर) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ। 

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