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भारत की वृद्धि की गति को बनाए रखने के लिए संस्थागत सुधार, राजकोषीय मजबूती महत्वपूर्ण: सीआईआई

 नयी दिल्ली.  उद्योग मंडल सीआईआई ने सरकार से देश की वृद्धि की गति को बनाए रखने के लिए आगामी बजट में संस्थागत सुधारों और राजकोषीय मजबूती को बढ़ावा देने का बृहस्पतिवार को आग्रह किया। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने भारत की वृहद आर्थिक स्थिरता को मजबूत करने के लिए तैयार की गई रणनीति में ये सुझाव दिए। यह रणनीति ऋण स्थिरता, राजकोषीय पारदर्शिता, राजस्व जुटाने और व्यय दक्षता जैसे प्रमुख तत्वों पर आधारित है। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, ‘‘ भारत ने उच्च वृद्धि दर, कम मुद्रास्फीति एवं बेहतर राजकोषीय संकेतकों का एक दुर्लभ संगम हासिल किया है। आगामी केंद्रीय बजट को अनुशासित राजकोषीय प्रबंधन एवं गहन संस्थागत सुधारों के माध्यम से इस गति को बनाए रखना होगा।'' वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लोकसभा में 2026-27 का केंद्रीय बजट फरवरी में पेश कर सकती हैं।

 
सीआईआई ने सरकार को कर चोरी का पता लगाने के लिए अत्याधुनिक विश्लेषण तरीकों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया। उसने तर्क दिया कि देश को वर्तमान 17.5 प्रतिशत (केंद्र एवं राज्यों को मिलाकर) के कर-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने की आवश्यकता है। ‘कर-जीडीपी अनुपात', यह मापने का पैमाना है कि किसी देश के कुल राजस्व (जीडीपी) का कितना हिस्सा सरकार कर के रूप में एकत्रित करती है। बनर्जी ने कहा, ‘‘ देश की विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत को अपने कर-जीडीपी अनुपात को बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत के विश्व स्तरीय डिजिटल बुनियादी ढांचे से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कर चोरी का पता लगाने और कर आधार को बढ़ाने में सहायक हो सकता है।'' सीआईआई ने कहा कि कर रिटर्न को उच्च मूल्य के लेन-देन से जोड़ना और अत्याधुनिक विश्लेषण तरीकों का उपयोग करना कर चोरी का वास्तविक समय में पता लगाने में सहायक हो सकता है। साथ ही अनुपालन लागत को भी कम कर सकता है। उद्योग जगत ने ऋण को प्रबंधन योग्य बनाये रखने को सुनिश्चित करने के लिए वित्त वर्ष 2030-31 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के एक प्रतिशत घट-बढ़ के साथ 50 प्रतिशत के लक्ष्य वाले सरकार के कर्ज में कमी की रूपरेखा का पालन करने पर जोर दिया। संस्थागत विश्वसनीयता को मजबूत करने के लिए सीआईआई ने राजस्व, व्यय एवं ऋण के लिए तीन से पांच साल के ‘रोलिंग रोडमैप' के साथ मध्यम-अवधि राजकोषीय ढांचे को बहाल करने की सिफारिश की। सीआईआई ने कहा कि केंद्र तथा राज्यों में सार्वजनिक वित्त की गुणवत्ता का आकलन करने और प्रदर्शन को राजकोषीय हस्तांतरण से जोड़ने के लिए एक राजकोषीय प्रदर्शन सूचकांक को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए जिससे सूझ-बूझ से काम करने एवं सुधार-उन्मुख राज्यों को प्रोत्साहन मिले। उद्योग मंडल ने अंतरिम उपाय के रूप में चरणबद्ध विनिवेश करने की सिफारिश की जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी को धीरे-धीरे घटाकर 51 प्रतिशत तक लाया जाएगा, बहुमत स्वामित्व बरकरार रखा जाएगा और अंततः समय के साथ इसे 26-33 प्रतिशत तक कम किया जाए। सीआईआई ने साथ ही कहा कि इसके समानांतर पूर्ण निजीकरण के प्रयास जारी रहने चाहिए।
 
व्यय प्रबंधन, विशेष रूप से सब्सिडी सुधार, सीआईआई द्वारा सुझाई गई रणनीति का एक और तत्व है।
 
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में 813 करोड़ लोग यानी जनसंख्या का 57 प्रतिशत हिस्सा शामिल है। पीडीएस आंकड़े के अद्यतन न होने और ‘कालाबाजारी' होने जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है। उद्योग मंडल ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास एवं जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता जैसे उच्च प्रभाव वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता देने और निगरानी के लिए डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने का आह्वान किया जिससे बेहतर परिणाम तथा वित्तीय बचत हो सकती है।

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