पाँच को आँच नहीं...!
--युग-चेतना-1
डॉ. कमलेश गोगिया
एक कहावत है ’साँच को आँच नहीं’, ऊपर शीर्षक में ’साँच’ की बजाए ’पाँच’ लिखा गया है, असल में बात नंबर-’5’ की है। बड़ी भूमिका है इसकी हमारे जीवन में, लेकिन तेज भागती ज़िन्दगी की रफ़्तार में कोई खयाल ही नहीं आता इन नंबरों के रोल को समझने का।
’’लगी पाँच-पाँच पैसे की....’’
’’चल लगी यार...’’
खूब शर्तें लगाई जाती रहीं थीं बचपन के दिनों में। शर्तें भी छोटी-छोटी बातों पर ही लगाई जाती थीं। तब छोटी सी बातें भी अहम होती थीं। आज कोई पाँच-पाँच पैसे की शर्त लगाए...हारे-जीते कोई भी...भुगतान करना आसान नहीं होगा। पाँच पैसे का सिक्का संग्रह के शौकीन बिरलों के पास ही मिलेगा। जिनके पास मिलेगा उन्हें भी याद होगा, कभी पाँच पैसे में ढेर सारी पीपरमेंट मिल जाया करती थी। इसे ’पंजी’ भी कहते थे। स्कूल जाने के लिए माँ अक्सर पाँच पैसे ही देती थी। तब पाँचवी बोर्ड हुआ करता था। बोर्ड परीक्षा का खतरनाक असर माँ पर ज्यादा देखने को मिलता था। पाँचवी में पास मतलब माध्यमिक में जाने का पहला पड़ाव पूरा। हाफ पेंट से छुटकारा और फुल पैंट पहनने की स्वतंत्रता।
खैर...पाँच पैसे के सिक्के 1957 से 1994 के बीच ढाले जाते रहे और 2011 में इसे बंद कर दिया गया।
बहुत से लोगों को याद होगा पाँच पैसे के सिक्कों पर सिल्वर पॉलिश कर जहाज बनाने का भी प्रचलन रहा है। कभी यह बेहतरीन शो पीस हुआ करता था।
1938 में पाँच रुपए का नोट जारी हुआ। अब पाँच रुपए का नोट मुश्किल से मिलता है। 1992 में आए स्टील के पांच के सिक्के जो अलग-अलग रूप-रंग के साथ चल रहे हैं। पाँच रुपए का नोट हो या पांच का सिक्का, इससे खेल-खेल में गणित सीख जाया करते थे। यह नंबर है ही निराला। पूरे वैदिक गणित में यही नंबर ऐसा है जिसे भाग देने की सबसे तेज विधि माना जाता है। यदि कोई आपसे पूछे कि 18 गुणित पाँच कितना होता है, एकदम सरलता से 18 का आधा कर पीछे शून्य लगा दीजिए। उत्तर 90 बन जाएगा। केवल दो चरण का पालन करना सिखाया जाता था। पाँच गुणित 9 को ही देख लें, 9 का आधा 4.5 होता है, दशमलव हटा दीजिए, उत्तर होगा-45। पांच का गुणा बड़ी से बड़ी संख्या के साथ करके देख लीजिए, उस संख्या का आधा ही उत्तर होगा। यह तो सिर्फ एक पाँच नंबर की बात है, वैसे वैदिक गणित के 16 सूत्रों का जिन्हें भी अभ्यास हो गया, उनके लिए बिना केल्कुलेटर के बड़ी से बड़ी संख्या का गुणा करना पल भर का काम होगा। भारतीय वैदिक गणित का लोहा पूरा विश्व मानता है।
हम पाँच के पथ पर आगे बढ़ते हैं। बात करते हैं ’पंचामृत’ की जिसका भोग देवी-देवताओं, विशेषकर श्री हरि भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया जाता है। पंचामृत पाँच पदार्थों दूध, दही, शक्कर, घी और शहद का मिश्रण है जिसके स्वास्थ्य लाभ को विज्ञान प्रमाणित कर चुका है।
पाँच की अनेक खूबियाँ हैं। प्राचीन भारतीय हिन्दू कैलेंडर को पंचांग कहा जाता है। इसके पांच अंग होते हैं- तिथि, नक्षत्र, वार, योग और करण। इसलिए इसे पंचांग कहा जाता है। इसके भीतर प्रवेश करें तो पंचांग में भी पंचक पर प्रायः लोगों की नजर रहती है। किसी के अवसान पर अक्सर पूछा ही जाता है,
’’ अरे भाई देख लो आज पंचक तो नहीं।’’
’’महाराज जी ने देख लिया है, निश्चिंत रहो।’’
इसका विशेष ज्ञान तो मुझे नहीं, डॉ. उमेशपुरी ’ज्ञानेश्वर’ की पुस्तक ’पंचक विचार कितना जरूरी’ में लिखा मिला, ’’पंचक के पांच नक्षत्र हैं-घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती।’’
कोरोना महामारी काल में लॉकडाउन के दौरान एक बार फिर से महाभारत देखने अवसर मिला था। महाभारत शब्द के भी पाँच अक्षर होते हैं और इसके नायक पाँच पांडव थे। पांडवों की पत्नी द्रौपदी को पांचाल की राजकुमारी होने की वजह से पांचाली कहा गया। पांचाल पांच प्राचीन कुलों के पांच सामूहिक कुलों का नाम भी माना जाता है।
समाचार पत्रों में प्रेरक प्रसंग पढ़ने का भी अपना आनंद है। एक प्रेरक प्रसंग में जिक्र आया कि जीवन में पाँच दान महत्वपूर्ण माने गये हैं-अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान, अभयदान और अब अंगदान। हमारा शरीर पंच तत्वों से निर्मित है-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। पाँच ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं-आँख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। फिर ध्यान आया, हाथ में भी पाँच उंगलियाँ होती हैं-तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अँगूठा। कुछ लोगों की एक हाथ में छह उंगलियाँ भी होती हैं। इनमें सुपर स्टार ऋतिक रोशन भी हैं जिनके दाएं हाथ में अंगूठे के पास एक अतिरिक्त उंगली है, हालाँकि यहां ’छह’ की चर्चा नहीं की जानी चाहिए, प्रसंगवश बात निकालनी पड़ी, आलेख को थोड़ा रोमांचक बनाने की चाह में। यह मेरा थोड़ा सा स्वार्थ है, चलिए पंच-पथ की अगली दिशा में। पौराणिक कथाओं में पाँच स्त्रियों को पंचकन्या का दर्जा दिए जाने का उल्लेख भी मिलता है। ये पाँच कन्याएँ हैं- अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती और द्रौपदी। भारतीय शास्त्रों में पाँच प्रकार के ऋण का उल्लेख माना जाता है- देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण, लोक ऋण और भूत ऋण।
सिक्ख धर्म में पाँच प्रतीक चिन्हों का विशेष महत्व है- केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण। जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का उल्लेख मिलता है। पाँच पापों-हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह का त्याग करना पाँच महाव्रत है। पाँच महाव्रत हैं-अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत और अपरिग्रह महाव्रत। नवरात्रि में भी पंचमी का विशेष महत्व रहता है।
हिंदू धर्म में पंचदेव पूजा का विधान है जिनमें सूर्य, श्रीगणेश, माँ दुर्गा, शिव और भगवान विष्णु आते हैं। मान्यता है कि इन पंचदेवों की पूजा के बाद ही कोई कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। पंचोपचार पूजा पद्धति में पाँच तरह के पदार्थों को समर्पित करने का उल्लेख है। इनमें गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य शामिल है। पंचगव्य का भी विशेष महत्व हैं। इसमें पाँच प्रकार की गाय से जुड़ी पांच प्रकार की चीजें शामिल होती हैं-सफेद गाय का दूध, काली गाय के दूध से बनी दही, लाल गाय का गोबर, भूरी गाय का गोमूत्र और दो रंग की गाय का घी। पंच पल्लव का महत्व है जिसका आशय है पांच पवित्र व धार्मिक वृक्षों के पत्ते-पीपल, आम, अशोक, गूलर और वट वृक्ष।
यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से पाँच के बारे में सोचें तो भारत ने एक नवंबर 2021 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है; लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे- पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। 2070 तक हम रहें या न रहें, लेकिन पंचामृत रणनीति की सफलता पृथ्वी, जल, अग्नी, आकाश और वायु अर्थात ’पाँच को समय से पहले कोई आँच’ नहीं आने देगी। परिणाम भावी पीढ़ी के सुखी और स्वस्थ रहने के रूप में मिलेगा। यकीन नहीं तो लगी, ’पाँच-पाँच की....!’
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