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छत्तीसगढ़ के तेज आर्थिक विकास की धुरी रही है बिजली

 विशेष लेख--    गोविन्द पटेल, प्रबंधक (जनसंपर्क) छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर कंपनीज, रायपुर

 -    हर महीने 20 मेगावॉट की दर से बढ़ रही है बिजली की खपत
 -    धरती को छह बार लपेट सकें, इतनी बिछ गई लाइन
  छत्तीसगढ़ राज्य बनने का सबसे बड़ा लाभ यहां के लोगों को जिस चीज से मिला वह है बिजली। ऐसा इसलिए क्योंकि बीते 25 वर्षों में बिजली की उपलब्धता जितनी छत्तीसगढ़ में रही है, उतनी उपलब्धता किसी राज्य में नहीं रही। यहीं कारण है कि चाहे उद्योगों में उत्पादन के मामले में हो या फिर धान से लेकर सब्जियों व अन्य फसलों की पैदावार हो, सभी क्षेत्र में बिजली का अहम योगदान रहा है। आज भी हम बिजली के मामले में सरप्लस स्टेट हैं और बिजली का उत्पादन लगातार मांग के अनुरूप बढ़ते जा रही है।
जब मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ का बंटवारा हुआ तब विद्युत मंडल का विभाजन नहीं किया गया था। 15 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार की मंशा के विपरीत जाकर छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल का गठन करने की अधिसूचना जारी कर दी। आज छत्तीसगढ़ में विद्युत मंडल अलग हुए 25वें वर्ष पूरे हो चुके हैं।
अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान मुझे याद है, जब मैंने पहली बार कंप्यूटर खरीदा था, तब दुकानदार ने मुझे दो स्टेबलाइजर भी खरीदने कहा। स्टेबलाइजर इसलिए ताकि कंप्यूटर चलाते समय यदि वोल्टेज अप या डाऊन हो तो कंप्यूटर खराब न हो। परन्तु आज किसी भी उपकरण चलाने के लिए स्टेबलाइजर खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि छत्तीसगढ़ बनने के बाद वोल्टेज की वैसी समस्या नहीं रही, जैसी अविभाजित मध्यप्रदेश में हुआ करती थी। अब तो इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। यह वह भरोसा है, जिसे छत्तीसगढ़ में बिजली की गुणवत्तापूर्ण उपलब्धता का। यह भरोसा एक दिन में नहीं आया। इसके लिए नन्हें कदमों से शुरूआत हुई, जो अब तेज कदमों की आहट में बदलने लगी है।
जब छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल बना तक हमारे यहां 1300 मेगावॉट बिजली पैदा होती थी। परन्तु इस बिजली को गांव-गांव तक, खेतों तक, उद्योगों तक गुणवत्तापूर्ण तरीके से पहुंचाने के लिए पारेषण तंत्र, सब-स्टेशन, ट्रांसफार्मर और लाइनें नहीं थी। धीरे-धीरे राज्य शासन ने विद्युत क्षेत्र में भारी निवेश किया और हर घर तक बिजली पहुंचाने के संकल्प को पूरा किया।
छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल अब छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर कंपनीज़ के रूप में संचालित है। अब उत्पादन, पारेषण और वितरण की तीन कंपनियों के माध्यम से प्रदेश में निर्बाध विद्युत आपूर्ति हो रही है।
नौ हजार दिनों में रोज 20 मेगावॉट बढ़ रही है खपत
छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना को 25 वर्ष यानी 300 महीने यानी 9125 दिन बीत चुके हैं। छत्तीसगढ़ में कोयला और पानी की उपलब्धता को देखते हुए बड़े पैमाने पर बिजली संयंत्र लगाए गए। प्रदेश में बिजली की मांग देखें तो औसतन हर महीने 20 मेगावॉट की दर से बढ़ी है। यह 1300 से बढ़कर 7306 मेगावॉट पहुंच गई है। यह मांग यूं ही नहीं बढ़ी। पहाड़ से लेकर नदियों को लाघंते हुए विशालकाय टॉवरों को तंत्र विकसित किया।
रोज खड़े किये जा रहे दो विशालकाय टॉवर
किसी भी आम आदमी के लिए यह समझना मुश्किल होता है कि उसके गांव में बड़े-बड़े टॉवर का क्या महत्व है, पर बिजली घरों में जितनी गुणवत्तापूर्ण बिजली पैदा हो रही है, उतनी पूरे वोल्टेज के साथ उपभोक्ताओं तक पहुंच सके, इसलिये ये टॉवर लगाये जाते हैं। पहले मध्यप्रदेश की ओर ये विशालकाय टॉवर अधिक थे, इसलिए छत्तीसगढ़ में बल्ब टिमटिमाते रहते थे। राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के भीतर बेहतर वोल्टेज देने विशालकाय टावरों का जाल बिछाया गया। औसतन रोजाना दो विशालकाय टॉवर खड़े किये गए। तब पूरे प्रदेश में महज सात हजार पारेषण टॉवर थे, वह आज 25 हजार टॉवर से अधिक हो गई है। पहले अतिउच्च दाब के सब-स्टेशन की संख्या केवल 26 थी, वह अब बढ़कर 137 हो गई है।
 इतनी लाइन बिछ गई कि धरती को लेपटा जा सकता है छह बार
पारेषण तंत्र के बाद उपभोक्ताओं तक बिजली वितरण कंपनी के माध्यम से पहुंचती है। बस्तर से लेकर सरगुजा के हर गांव और हर घर को रोशन करना लक्ष्य था, इसलिए निम्नदाब की लाइनें बिछाना आवश्यक था। 25 बरस में छत्तीसगढ़ में इतनी निम्नदाब लाइनें बिछाई गईं हैं, जिससे धरती को छह बार लपेटा जा सकता है। राज्य गठन के समय ये लाइनें केवल 51 हजार सर्किट किलोमीटर थी जो अब बढ़कर दो लाख 44 हजार सर्किट किलोमीटर पहुंच गई हैं।
रोजाना लगाए जा रहे 25 ट्रांसफार्मर
उपभोक्ताओं की सुख-सुविधाओं के यंत्र व मशीनों की पहुंच बढ़ती गई तो ट्रांसफार्मर के लोड भी बढ़ते गए। प्रदेश में 25 वर्षों में प्रतिदिन 25 ट्रांसफार्मर स्थापित किये गये। हर किसी चौक-चौराहे में ये ट्रांसफार्मर लगे दिखाई देते हैं, आज की स्थिति में ऐसे दो लाख 52 हजार स्थानों में ये ट्रांसफार्मर क्रियाशील हैं, जबकि प्रदेश बनने के समय इनकी संख्या केवल 29 हजार ही थी।
हर घर बिजली पहुंचाने की बात करें तो रोजाना पांच सौ घरों में बिजली पहुंचाई गई। यह संख्या 18 लाख से बढ़कर आज 65 लाख पहुंच गई है।
प्रतिदिन पांच किसानों को मिला पंप कनेक्शन
विद्युत विकास केवल गांव-गली तक सीमित नहीं रहा यह हर खेत तक पहुंचा। पहाड़ से लेकर नदियों को लाघंते हुए किसानों की फसलों में सिंचाई के लिए बिजली पहुंचाई गई। 25 वर्षों में औसतन रोज पांच किसानों को पंप कनेक्शन प्रदान किये गए, जिससे कृषि पंप कनेक्शन की संख्या 73 हजार से बढ़कर आठ लाख की संख्य़ा को पार कर गया।
हर दूसरे दिन एक उद्योग को मिली बिजली
प्रदेश में जितनी बिजली पैदा होती है, उसका बड़ा हिस्सा औद्योगिक विकास के लिए जाता है। हर दूसरे दिन औसतन एक उद्योग तक बिजली पहुंचाई गई। राज्य गठन के समय जहां उद्योगों की संख्या 530 थी, वह अतिउच्च दाब कनेक्शन बढ़ते हुए चार हजार 130 पहुंच गई है।
विद्युत विकास के इस तंत्र से न केवल खेती समृद्धि हुई, बल्कि उद्योग-धंधे विकसित हुए और लोगों को रोजगार मिला। प्रदेश की तरक्की के लिए बिजली हर क्षेत्र में पूरक है। इसके बिना किसी क्षेत्र के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। 
युवा छत्तीसगढ़ मैराथन दौड़ने है तैयार
यह दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण कितना सार्थक निर्णय रहा। शासन-प्रशासन की व्यवस्था मजबूत हुई है। जनता की तंत्र जनता के लिए बेहतर साबित हो रही है। पर 25 बरस का यह पड़ाव शिखर नहीं है। 2047 तक विकसित भारत और विकसित छत्तीसगढ़ का संकल्प को पूरा करने अब मैराथन दौड़ने की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें प्रदेश में ऐसी बिजली पैदा की जाएगी, जो पर्यावरण के अनुकूल हो। इसके लिए 7700 मेगावॉट के पंप स्टोरेज संयंत्र लगाने की दिशा में काम चल रहा है। इसी तरह परमाणु ऊर्जा के संयंत्र लगाने की दिशा में भी प्रयास किये जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है।
 
 

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