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 स्नेह-छाया

 कहानी

लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे,  दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)

   बाहर  यह क्या कोलाहल हो रहा है , शेविंग करते हुए राज ने अपनी पत्नी पूजा से पूछा । कॉलेज जाने के लिए वह तैयार हो रहा था ,अभी नहाकर आया था । अरे ! वही मिश्रा सर के घर की लड़ाई है , आज तो यह सड़क तक आ पहुँची । अच्छा नहीं लगता तमाशबीन बनकर वहाँ खड़े होना लेकिन देखो लोगों की भीड़ ; उन्हें तो बहुत मजा आता है किसी की इज्ज़त का मजाक उड़ते देख । उनकी पारिवारिक समस्या उनको सुलझाने देना चाहिए लेकिन हर जगह जज बनकर खड़े हो जाते हैं । बात शायद बहुत बढ़ गई है तभी बाहर तक आई है , जरा देखो पूजा । अब तुम मुझे भी वही करने बोल रहे हो जो अन्य पड़ोसी कर रहे हैं । मैं उन्हें और शर्मिंदा नही करना चाहती , वैसे भी उनकी छोटी बहू कुछ ज्यादा ही तेज है , कब पड़ोसियों पर ही बिगड़ जाए कुछ कह नहीं सकते ।
                 हमारे घर के दो घरों के बाद मिश्रा सर का घर है । यहाँ के एक  स्वशासी महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राचार्य ईश्वरीप्रसाद मिश्रा सर को कौन नहीं जानता । मैंने भी उसी महाविद्यालय से पढ़ाई की है । मिश्रा सर बहुत अच्छे स्वभाव के थे पर बहुत अनुशासनप्रिय । सदैव छात्रों के हित में निर्णय लेने वाले , एक बार फीस नहीं बढ़ाने को लेकर कॉलेज प्रबंधन से भी भिड़ गए थे । छात्र , शिक्षक , पालक सभी उनका सम्मान करते थे और उनसे थोड़ा डरते भी थे । उनके सख्त होने के कारण ही महाविद्यालय का बहुत नाम हो गया था । वहाँ बहुत अच्छी पढ़ाई होती थी और शासकीय महाविद्यालय की तुलना में अधिक प्रतिभाएँ निकलती थीं । न सिर्फ पढ़ाई बल्कि खेल , एन. सी.सी. , राष्ट्रीय सेवा योजना , शोधकार्य इत्यादि क्षेत्रों में भी हमारा महाविद्यालय अग्रणी हो गया था ,यह सब उनके परिश्रम का कमाल था । अपने कार्यकाल में उन्होंने महाविद्यालय को विकास के चरम पर पहुँचा दिया था । किसी भवन की बुनियाद यदि मजबूत हो तो वह अपने-आप सुरक्षित हो जाती है उसी प्रकार मिश्रा सर ने उस कॉलेज की बुनियाद सुदृढ बना दी थी जिसका लाभ उनके सेवानिवृत्त होने के बाद भी कॉलेज को मिलता रहा और उस पर सफलता की कई मंजिलें बनती गईं ।
          मेरी तरह न जाने कितने छात्र वहाँ से पढ़कर अपना सुखद भविष्य गढ़ रहे हैं और मिश्रा सर जैसे कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक के प्रति श्रद्धा भाव से पूरित हैं । परंतु दीपक तले अँधेरा की उक्ति के अनुसार उनके अपने घर में असंतोष और कलह छाया हुआ है । यह सब देखकर मेरा मन बहुत दुखी होता है । बहुत इच्छा होती है कि सर के लिए कुछ करूँ परंतु
प्रत्येक संबंध की अपनी एक मर्यादा  होती है ,उसी के चलते अपने-आपको रोक लेता हूँ ।
              मिश्रा सर के दो बेटे हैं , दोनों उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे । दोनों पढ़ाई में  सामान्य ही थे , जैसे-तैसे पढ़ाई पूरी करके किसी प्रायवेट कम्पनी में नौकरी करने लगे थे । पर इससे उनके जीवन में विशेष फर्क नहीं पड़ता क्योंकि मिश्रा सर ने अपने जीवन में इतनी प्रतिष्ठा कमाई थी जो उन्हें परिवार ,समाज में आदर और यश दिलाने के लिए पर्याप्त थी । अपने व्यवहार और क्रियाकलापों से बेटे उनके इस नाम को मिट्टी में मिलाने पर तुले हुए थे । आप क्या काम करते हैं से कहीं बढ़कर आप क्या व्यवहार करते हैं, यह मायने रखता है । जिस माता-पिता ने अपनी सारी जिंदगी अपने बच्चों के नाम कर दी उनको संतान यदि आदर और देखभाल न दे पाए तो बहुत दुख होता है । पूरी जिंदगी व्यर्थ हुई सी प्रतीत होती है । मैं उन्हें अपना आदर्श मानता था और उनकी प्रेरणा से मैंने शोध कार्य किया और मुझे शासकीय महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक का पद मिला । यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैंने भी उसी कॉलोनी में घर लिया जहाँ मिश्रा सर रहते थे । मेरे मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा और आदर की भावना थी और मेरे जैसे न जाने कितने छात्रों को उन्होंने आगे बढ़ने की प्रेरणा दी थी । आज वे सभी उनके प्रति श्रद्धावनत होंगे ,पर उनके अपने बच्चे आज उनसे दुर्व्यवहार कर रहे हैं । 
           अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा देखकर माता-पिता को अपार संतुष्टि मिलती है । वे चाहते हैं कि बच्चे सुखपूर्वक जीवन व्यतीत  करें । उनकी शादी कर उनका परिवार बढ़ते देख सुकून से वृद्धावस्था को जीना चाहते हैं । सुख-सुविधाओं के लिए मन नहीं भागता पर बच्चों की खुशी और उनके साथ में ही वे हर खुशी ढूँढते हैं । जीवन की आपाधापी बच्चों को समय कम देती है पर वे इस बात को समझते हैं । जब दोनों पीढ़ी में तालमेल का अभाव होता है तभी तनाव और झगड़े होते हैं । दोनों बेटों की शादी के बाद ही सर के घर में समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं थीं । दोनों बहुओं के बीच मनमुटाव का समाधान उन्होंने यह निकाला कि घर के पास ही बड़े बेटे को किराए पर एक घर लेकर दे दिया और स्वयं छोटे बेटे के साथ रहने लगे । उनकी छोटी बहू स्वभाव की बहुत तेज थी और सासूमाँ के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रही थी । बड़े बेटे के अलग हो जाने के बाद भी गृहक्लेश बना रहा । कहाँ तो सर सेवानिवृत्त होने के बाद  अपने छोटे से बगीचे की देखभाल करते हुए , स्वाध्याय करते हुए सुकून से जीवन बिताना चाहते थे पर सब कुछ अपने मन मुताबिक कहाँ होता है । इंसान न जाने कितनी योजनाएँ बनाता है पर भविष्य के अंक में क्या छुपा है कोई नहीं जानता । सिर्फ वर्तमान ही है जिसमें हम जो चाहें कर सकते हैं पर वर्तमान भविष्य की तैयारियों में बीत जाता है ।
           बहुत दिनों तक कोशिश करने के बाद भी वे सास-बहू में सामंजस्य स्थापित करने में सफल नहीं हुए । थक हार कर उन्होंने छोटे बेटे को एक नया घर देने और वहाँ शिफ्ट होने की सलाह दी परन्तु वह और उसकी पत्नी टस से मस नहीं हुए । इस विशाल घर पर अपना अधिकार खो देने का भय उन्हें आतंकित कर रहा था । आज तो उन्होंने अति कर दी थी सर और उनकी पत्नी को घर से बाहर निकाल कर उन्होंने द्वार बंद कर लिया था । कितने शौक से उन्होंने यह घर बनाया था । इतना बड़ा अपमान एक पिता के मन को आहत कर गया था । बड़ा बेटा उन्हें अपने घर ले गया था परंतु इस घटना से सर विषाद की अवस्था में चले गए थे । उस घटना के कुछ माह बाद उस दिन मैंने उनके छोटे बेटे और बहू को सामान लेकर कहीं और जाते देखा । उसके जाने के बाद पुलिस ने घर पर ताला लगा दिया था । आस-पड़ोस से जानकारी मिली कि मिश्रा सर ने कोर्ट में अपने बेटे के खिलाफ केस कर दिया है अपना घर वापस लेने के लिए । वह घर उन्होंने स्वयं अपनी मेहनत की कमाई से बनाया था इसलिए उनका अधिकार पाना तय था । बेटा कितनी भी बड़ी गलती करता तो वे माफ कर देते लेकिन वह घर उनके अतीत की खूबसूरत यादों का संग्रहालय था । उसकी हर ईंट में न जाने कितनी स्मृतियाँ साँस लेती थीं ।  घर के लालच में बेटे ने एक बेहद संवेदनशील और भावुक पिता का हृदय व्यथित कर दिया था । आज घर के साथ उसने माता-पिता की स्नेह-छाया भी खो दी थी ।
 
 

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