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 बात 9 के रहस्य की...!
स्कूल के दिनों में सबसे कठिन विषय हुआ करता था गणित, सबसे कम नंबर भी इसी विषय में मिला करते थे। ट्यूशन भी इसी विषय की लगवाई जाती थी। गणित शब्द बेचैन किया करता था। परीक्षा के दिन सबसे ज्यादा गणित का पर्चा ही दिल की धड़कने बढ़ाया करता था। लेकिन व्यवहारिक जीवन में जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ने पर यह गणित समझ में आने लग जाता है कि बिना संख्याओं के जीवन ही नहीं है। ऑनलाइन शापिंग करने से लेकर रोजमर्रा के जीवन की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, क्रिकेट, राजनीति और स्कूल से लेकर कॉलेज तक बिना संख्याओं के कुछ भी नहीं...
आदिकाल से गणित का संबंध मानव से है। वास्तव में गणित के बिना जीवन ही नहीं है। हमारे चारों ओर का वातावरण देख लें, या दिन-प्रतिदिन का व्यवहार, दैनिक जीवन में घर हो या बाहर, क्रय-विक्रय, बाजार, आय-व्यय, गणित के ज्ञान के बिना जीवन व्यर्थ है। जोड़ना-घटाना, गिनना, गुणा और भाग हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। वैदिक साहित्य में गणित शब्द का प्रयोग अऩेक बार हुआ है। डॉ. महेंद्र मिश्रा ‘वैदिक गणित’ में लिखते हैं, ‘’गणित शब्द बुहत प्राचीन है। इसका शाब्दिक अर्थ इस प्रकार है- वह शास्त्र जिसमें गणना की प्रधानता है। मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित, अंक, आधार, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विधान है जिसकी सहायता से परिणाम, दिशा तथा स्थान का बोध होता है। गणित विषय का प्रारंभ गिनती से ही हुआ और संख्या पद्धति इसका विशेष क्षेत्र है जिसकी सहायता से गणित की अन्य शाखाओँ का विकास हुआ।‘’ सच तो यह भी है कि यदि गणित न हो तो आज हम दुनिया के किसी भी कोने में बैठे व्यक्ति तक व्हाट्सएप, मेल, इंस्टाग्राम या सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म में पलक झपकते ही संदेश भेजने में भी सक्षम नहीं हो पाते। न तो कम्प्यूटर का अविष्कार ही संभव हो पाता और न तो वेबसाइट्स की कल्पना को साकार किया जा सकता था। दुनिया की समस्त विधाओं में गणित का महत्व एक स्वर से स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति में गणित के महत्व से पूरी दुनिया अवगत है। यही कारण है कि अरब में एक से नौ तक की संख्या को ‘हिन्दसां’ कहते हैं।
खैर, अऩेक बातें हैं गणित की, मूल मुद्दा है गणित की कुछ विशेष संख्याओं के महत्व का और यह संख्या है नौ (9)। मान्यता है कि यह बड़ा ही अद्भुत अंक है जो सभी अंकों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है। कहीं-कहीं इसे ईश्वरीय अंक भी माना गया है। ईश्वरस्वरूपा माँ के गर्भधारण करने से लेकर संतान को जन्म देने तक की पूरी प्रक्रिया 9 माह तक चलती है। सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में अंक 9 के महत्व से भला कौन अवगत नहीं है। 15 अक्टूबर 2023 से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो रही है। नवरात्रि के भी नौ दिन होते हैं जिसमें माँ नवदुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता है। ग्रहों की संख्या भी 9 मानी गई है। उपासना में जप के दौरान 108 मनकों की माला से ही जप किये जाने का विधान है। 108 का योग भी 9 ही होता है।
अब सवाल यह है कि मनकों की संख्या 108  ही क्यों ? खोजबीन करने पर वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य के संपादन में 66 साल पूर्व सन् 1957 के मार्च माह में प्रकाशित अखंड ज्योति में प्रो. अवधूत गोरेगाँव के आलेख में एक सटीक जवाब मिला। वे लिखते हैं, ‘’प्रकृति विज्ञान की दृष्टि से विश्व में प्रमुख रूप से कुल 27 नक्षत्रों को मान्यता दी गई है। तथा प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण ज्योतिष-शास्त्र में प्रसिद्ध हैं। 27 को चार से गुणा करने पर 108 संख्या होती है। अतः 108 संख्या समस्त विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली सिद्ध होती है। इसके अलावा दिन और रात हमारे श्वासों की संख्या गिनी जाए तो 24 घंटे में 21 हजार 6 सौ होती है। इस हिसाब से दिन भर के श्वासों की संख्या 10800 और रात भर के श्वासों की संख्या भी 10800 हुई। इसका योग भी 9 ही होता है। कहा जाता है कि यह सूर्य की 21600 कलाओं का प्रतीक भी है। माला के एक-एक दाने को सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक भी माना गया है। इस प्रकार 108 की संख्या ब्रह्मांड की ब्रह्मांडीय संरचना का प्रतिनिधित्व करती है। वेदों में इसका उल्लेख इस प्रकार मिलता है-
षट् शतानि दिवारात्रौ सहस्त्राण्येक विंशतिः।
एतत्संख्यात्मकं मंन्त्रं जीवो जपति सर्वदा।
(चूड़ामणि उपनिषद 32-33)
जाहिर है कि वैदिक काल से संख्याओं का महत्व बना हुआ है। यह भी माना जाता है कि 12 राशियों और 9 ग्रह का गुणा करने पर 108 का योग प्राप्त होता है। भगवान शिव के 108 नाम माने गये हैं।  9 के अद्भुत संयोग की तरफ और आगे बढ़ते हैं। औसतन एक सामान्य मानव का दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है जिसका योग 9 होता है। प्रतिदिन का हिसाब लगाएं तो 115,200 बार और प्रतिवर्ष 42,048,000 बार। इनका योग करके भी देख लीजिए, उत्तर 9 ही आएगा। महाभारत का पूरा युद्ध भी 18 दिन चला था जिसका योग 9 होता है। श्रीमद भगवत् गीता में भी 18 अध्याय हैं जिसका योग 9 होता  है। ध्यान करने की 108 प्रकार की विधियां मानी गई हैं। मनुष्य में 9 प्रकार की भावनाएं प्रेम, मस्ती, दुःख, क्रोध, शौर्य, भय, घृणा, आश्चर्य और शांती मानी गई हैं। नाट्शास्त्र में इसे नवरस कहा गया है।  मूल्यवान रत्न 9 माने गये हैं जिन्हें नवरत्न कहा गया है- माणिक, हीरा, नीलम, पुखराज, पन्ना, लाल मूंगा, मोती, वैदूर्य, गोमेद।
एक पूर्ण कोण 360 अंश का और एक सीधा कोण 180 अंश का होता है। एक सर्किल 360 डिग्री का होता है। दिशासूचक यंत्र पर भी 360 अंश के कोण बने होते  हैं। 45 अंश ईशान दिशा, 90 अंश पूर्व दिशा, 135 अंश आग्नेय दिशा, 180 अंश दक्षिण दिशा, 225 अंश नैऋत्य दिशा, 270 अंश पश्चिम दिशा, 315 अंश वायव्य दिशा और 360 अंश से उत्तर दिशा की जानकारी मिलती है।
स्वर्गीय मानवगुरु श्री चंद्रशेखर गुरुजी का एक आलेख manavguru.org में मिला- ‘विश्व शक्ति की गोपनीय चाबी है अंक ‘9’ इसमें नौ अंक से संबंधित अनेक प्रमाणित बातों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझाया गया है। वे लिखते हैं कि विश्व में जितने भी आकार बने हुए है वे 9 अंक से बने हुए हैं। इनमें चौरस, आयात, त्रिकोण, पंचकोण, षटकोण का जिक्र है। वे बताते हैं कि बौद्ध धर्म में पाली भाषा में भगवान बुद्ध के 9 गुणों का वर्णन दिया हैः अरहम, सम्मासबुद्धों, विज्जाचरणसंपन्नो, सुगतो– उदात्त, लोकविदू, अनुत्तरोपुरीसधम्मसारथी, सत्ता देवमनुसान्न, बुद्धों, भगवा। ईसाई धर्म में पवित्र आत्मा के 9 फल होते हैं- प्रेम, आनंद, शांति, संयम, दया, अच्छाई, विश्वास, सभ्यता और आत्म–संयम। हमारी धरती 1674 किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से घूमती है। इसका योग (1+6+7+4=18= 1+8 =9) भी नौ ही आता है।
इस संख्या की मुख्य विशेषता यह है कि इसे किसी भी संख्या से गुणा करने पर उसका योग 9 ही आता है। फिर, वह संख्या कितनी भी छोटी हो या कितनी भी बड़ी। उदाहरण के दौर पर 9 X 2 =18 = 1+8= 9। नौ का पूरा पहाड़ा ही देख लें, योग नौ ही आएगा। वस्तुतः अध्यात्म से लेकर विज्ञान तक में अंक 9 का विशेष महत्व है जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। पूरे विश्व में भारतीय वैदिक साहित्य की महत्ता आज भी कम नहीं है। हमें सदैव गौरवान्वित होना चाहिए हमारे महान वैदिक साहित्य पर।

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