अद्भुत आदित्य की अद्भुत बातें-1
लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)
हर भारतीय के लिए यह गर्व की बात है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान-3 ने सफलता के मुकाम हासिल किए। चंद्रयान की सफलता के बाद सूर्य पर अध्ययन के दृष्टिकोण से लॉन्च किया गया आदित्य एल-1 मिशन भी सफलता की राह पर अग्रसर है। निःसंदेह यह मिशन सूरज की रोशनी, प्लाज्मा और चुंबकिय क्षेत्र का महत्वपूर्ण अध्ययन करने में कामयाब होगा और दुनिया को अनेक नये सूत्र मिलेंगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह भारत का पहला सौर मिशन है। लेकिन हमारे महान ऋषि-मनीषी सदियों पूर्व आदित्य पर अनुसंधानरत रहकर अनेक महत्वूर्ण जानकारियाँ और नये-नये रहस्य उद्घाटित करने में सफल होते रहे हैं। आदित्य अर्थात सूर्य जिसके अऩेक नाम हैं, जैसे- रवि, दिनकर, सूरज, भास्कर, मार्तंड, मरीची, प्रभाकर, सविता, पतंग, दिवाकर, हंस, भानु, अंशुमाली आदि।
यदि सूर्य के आध्यात्मिक पक्ष की बात की जाए तो हमारा पूरा भारतीय वैदिक साहित्य सूर्य की स्तुति, उसके अनेक वैज्ञानिक तथ्यों और महत्वपूर्ण जानकारियों से भरा पड़ा है। यजुर्वेद में सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः स्वाहा (3-9) से लेकर प्रश्नोपनिषद (1-8) में प्राणः प्रजानामुत्दयत्येष सूर्यः के माध्यम से सूर्य की महिमा और स्तुति का स्थान-स्थान पर हुआ है। आदित्य ह्रदय का रहस्य जानकर ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था। प्राचीन भारतीय साहित्य में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्य का कुष्ठ रोग भी सूर्य चिकित्सा से ही दूर हुआ था।
दो वर्ष पहले का एक वाकया है, हमारे पड़ोसी को पुत्री-रत्न की प्राप्ति हुई। उल्लास का वातावरण निर्मित हुआ, किन्तु परिजनों के माथे पर चिंता की लकीरें भी उमड़ पड़ी थीं, क्योंकि नवजात बालिका को पीलिया हो गया था। चिकित्सकों ने दवाइयों के साथ कुछ देर सुबह उदित होते सूर्य की किरणों में रखने की भी बात कही। जो कहा गया उसका वैसा ही पालन हुआ, बालिका जल्द ही स्वस्थ हो गई। पीलिया जैसे रोगों में उदित होते सूर्य की किरणों से मिलने वाले लाभ के संबंध में हमारे वेदों में भी उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद (अर्थव-1-22) में सूर्य चिकित्सा के माध्यम से ह्रदय रोग और पीलिया को दूर करने के संदर्भ में उल्लेख मिलता है कि-
अनु सूर्य मुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते।
गो रोहितस्य वर्णेन तेन त्वा परिदध्यसि।।
इसका अर्थ यह है कि तुम्हारा पीलापन (पीलिया) तथा ह्रदय की जलन सूर्य की अनुकूलता से उड़ जाए। रश्मियों के तथा उस प्रकाश के लाल रंग को तुझे सब ओर से धारण करना है। भाव यह है कि पीलिया और ह्रदय रोगों में सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों के प्रकाश में खुले शरीर बैठना तथा लाल रंग की गौ के दूध का सेवन करना बहुत ही लाभदायक होता है। सूर्य को आदि देव कहा गया है और सूर्य के संबंध में अनेक अद्भुत प्रसंग हमें मिलते हैं। सूर्य विज्ञान में सिद्धहस्त परमहंस स्वामी विशुद्धानंद जी के संबंध में तीस वर्ष पूर्व प्रकाशित पत्रिका अखण्ड ज्योति (1993) में यह उल्लेख मिलता है कि स्वामी विशुद्धानंद जी ने एकाकी गहन शोध कर सूर्य विज्ञान विधा को तिब्बत की दुर्गम गुफाओं से लाकर वाराणसी में प्रतिष्ठित किया। इन्हें सुगंधी बाबा भी कहा जाता था क्योंकि वे सूर्य विज्ञान और स्फटिक से तरह-तरह की सुगंध पैदा कर देते थे। सूर्य के माध्यम से शून्य से ताजी चीजें प्रकट करना, मुरझाए फूल को ताजा करने का भी जिक्र मिलता है। इन बातों का उल्लेख प्रसिद्ध इण्डोलाजिस्ट और प्राच्यविद् पाल ब्रंटन ने अपनी शोध पुस्तिका ‘ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया’ में सूर्य विज्ञान को समर्पित एक निबंध में भी किया है। भारतीय संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान-विज्ञान सदियो से पूरे विश्व को आकर्षित करता रहा है और भारत का गुप्त-ज्ञान पूरे विश्व में अध्ययन का केंद्र बिंदु भी रहा है। पाल ब्रंटन का भारतव्यापी शोध का उद्देश्य भी यही रहा होगा।
कहते हैं कि परमहंस स्वामी विशुद्धानंद मात्र सुपात्र और पवित्र अंतःकरण वाले व्यक्तियों के सामने ही सूर्य विज्ञान का प्रदर्शन, सविता देवता की साधना, गायत्री अनुष्ठान व योग साधना की प्रेरणा देते थे। कभी भी उनका प्रदर्शन कथित चमत्कार दिखाने या ख्याति प्राप्त करने के लिए नहीं किया गया। यहां दो बातें सामने आती हैं सुपात्र और पवित्र अंतःकरण, संकेत साफ है कि सूर्य विज्ञान में पारंगत होने के लिए प्रबल इच्छाशक्ति के साथ अच्छी नियत की शर्त है। परमहंस स्वामी विशुद्धानंद सूर्य विज्ञान और आत्मबल से दृश्य वस्तु की मूल प्रकृति में परिवर्तन कर देते थे। उनके शिष्य पंडित गोपीनाथ कविराज सूर्य विज्ञान के संबंध में लिखते हैं कि यह विधा विशुद्धतः सूर्य रश्मियों के ज्ञान पर निर्भर है। इनके विभिन्न प्रकार के संयोग व वियोग होने पर विभिन्न प्रकार के पदार्थों की अभिव्यक्ति होती है। विभिन्न रश्मियों का परस्पर सुनियोजित संगठन ही सूर्य विज्ञान है। इसके लिए सही विधा की जनकारी जरूरी है। अद्भुत-सी प्रतीत होने वाली इन बातों पर सहसा विश्वास नहीं किया होगा। लेकिन सूर्य विज्ञान के ही माध्यम से सौर ऊर्जा का लाभ आज पूरा विश्व उठा रहा है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। सौर ऊर्जा से आज लोगों के घर से लेकर कार्यालय तक रोशन हो रहे हैं। भारत के चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में सौर प्रौद्योगिकी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जब सूर्य विज्ञान की बात की जाती है तो वाराह मिहिर का भी उल्लेख आता है। वाराह मिहिर ने सदियों पूर्व खगोल गणनाएँ कर दी थीं। ये गणनाएँ आज भी सटीक प्रमाणित होती हैं। यह बात सदैव वैज्ञानिकों को हतप्रभ करती रही है कि वाराह मिहिर ने जब ये खगोल गणनाएं तब न तो कोई यंत्र-उपकरण थे और न ही कोई प्रयोगशाला। कहा जाता है कि उनकी बचपन से अंतरिक्ष के रहस्य जानने की प्रबल इच्छा रहती थी जिससे माता-पिता परेशान रहा करते थे और पड़ोसी भी मजाक बनाया करते थे। लेकिन प्रबल इच्छाशक्ति, प्रगाण प्रार्थना, सच्ची लगन के आगे कोई बाधा आड़े नहीं आ सकी। प्रथम बार सूर्य (मिहिर) बालक की निष्ठा, निर्भयता और साहस की परीक्षा लेने वाराह के रूप में आए थे।
यह उल्लेख भी मिलता है कि शूद्र इतरा का पुत्र सूर्य की उपासना से ही ब्रह्मर्षि ऐतरेय हो गया और ऐतरेय उपनिषद अस्तित्व में आया। जाहिर है कि भारतीय संस्कृति के आध्यात्मिक पक्ष का आधार सूर्य की उपासना है। प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देने से लेकर सूर्य नमस्कार और सूर्यभेदन प्राणायाम के फलस्वरूप मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ से आज पूरा विश्व अवगत है। वैदिक काल से चली आ रही यह परंपरा हमारे ऋषियों के सूर्य विज्ञान के आधार पर किये गये गहन शोध और अध्ययन का ही परिणाम है। पृथ्वी पर जीवन का आधार ही सूर्य है जिसे सृष्टि का प्राण कहा गया है। पूरी सृष्टि में आदित्य अद्भुत है जिसमें अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। वैदिक काल से लेकर आज तक इन रहस्यों पर से पर्दा उठाने के प्रयास जारी हैं और आगे भी जारी रहेंगे। फिलहाल पूरी दुनिया की नजरें इस समय आदित्य एल-1 पर टिकी हैं जिससे भविष्य में और भी नये रहस्य उजागर होने वाले हैं।
क्रमशः जारी....
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