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जीवन कौशल सीखा मैंने, खेत और खलिहानों में...

गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे,  दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
 जीवन कौशल सीखा मैंने, खेत और खलिहानों में ।
 मोती बनते यहाँ स्वेद-कण, श्रमिकों के अवदानों  में ।।
 मिट्टी की सोंधी खुशबू है , दिल के भोले - भालों में ।
अहंकार छल दम्भ नहीं है , इनके सरल  सवालों में ।
समरसता है मन में इनके  , हों अपनों बेगानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
 मान एक - दूजे का  करते  , मिलजुल कर सब रहते हैं।
आपस में कोई भेद नहीं , सुख - दुख साझा करते हैं ।
बढ़ने वाली चाल न चलते  ,  होड़ नहीं नादानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत औऱ खलिहानों में ।।
 गाँव मुझे अब भी प्यारा है ,  शोभा यहाँ निराली है ।
मन में कोई भी खोट नहीं , जेब भले ही खाली  है ।
मन का आँगन बहुत बड़ा है , ममता भरी मचानों  में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
 छोटे - छोटे सपने पलते ,  इनके निश्छल नैनों में ।
मधुरस का सा स्वाद भरा है , इनके देशज बैनों में ।
संस्कारों को जीते हैं ये , परंपरा  के गानों में ।।
जीवन कौशल सीखा मैंने , खेत और खलिहानों में ।।
--Mobael No.-9424132359

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