शूल बिछाए लोगों ने पर, फूल राह में तुम बोना
- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
नाविक तूफानों में फँसकर, संयम धीरज मत खोना ।
भावी तो होकर रहता है , बीते पर अब क्या रोना ।।
सोया गहन अँधेरे में वह, बीज मृदा के अंतस में।
धूप थपथपाकर है कहती, भोर हुई अब क्या सोना ।।
नहीं धुले कीचड़ से कीचड़, स्वच्छ नीर ही चाहें सब।
करके शुभ कर्मों का सिंचन, पाप-पंक को तुम धोना ।।
बुरे कर्म से महल बनाए , औरों ने यह मत सोचो।
शूल बिछाए लोगों ने पर , फूल राह में तुम बोना ।।
नहीं विकल्प परिश्रम का है ,सरल राह मत ढूँढो तुम ।
कर्मठता से जीत मिलेगी ,नहीं चले जादू-टोना ।।
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