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परी जैसे चेहरे वाली एक्ट्रेस नसीम बानो

 जन्मदिवस पर विशेष 

आलेख- मंजूषा शर्मा
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नसीम बानो जिसका नाम शायद आज की पीढ़ी को मालूम भी ना हो और अगर उन्हें बताया जाए कि वे सायरा बानो की मां है, तब भी शायद उन्हें नसीम का चेहरा याद ना आए। इसे वक्त का तकाजा है कहिए या और कुछ।  नसीम के जमाने के लोग अब भी उसकी खूबसूरती की याद करते हैं। वे अपने दौर की सबसे प्यारी और सुंदर अभिनेत्री थीं।  उस समय अभिनेत्रियों की नेचरल खूबसूरती ही सिने पर्दे पर दिखाई देती थी और जिन्हें देखकर लगता था कि भगवान ने वाकई उन्हें फुरसत के क्षणों में बनाया है। आज के कॉस्मेटिक और प्लास्टिक सर्जरी वाले दौर की तरह नहीं, जहां सौ में से 90 फीसदी अभिनेत्रियों को इसका सहारा लेना पड़ रहा है।  नसीम बानो  का जन्म 4 जुलाई 1916 को हुआ था, वहीं 18 जून 2002 को उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा। 
नसीम आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी उनकी फिल्में उनके नाम को जीवित रखे हुए हैं। फिल्मों में 40 के दशक में आई नसीम उन अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती थीं, जिनके पास प्राकृतिक सौंदर्य का भंडार था। उन्हें रजत पटल पर अपने आप को खूबसूरत दिखाने के लिए न तो  सौंदर्य प्रसाधनों की जरूरत पड़ती थी आौैर ना ही सुंदर कीमती परिधानों की।  खूबसूरत, बड़ी-बड़ी आंखें, पतली-पतली उंगलियां, गोरा रंग उन्हें हार्डी लेमार, एवा गार्डनर, विवियन ली और एलिजाबेथ टेलर जैसी दुनिया की रूपमती नायिकाओं की श्रेणी में शामिल करते थे। 
उस काल की अधिकांश नायिकाएं आर्थिक विपन्नता की कारण अभिनय क्षेत्र में आयी थीं। कुछ तो केवल प्राथमिक स्तर तक ही शिक्षित थीं।  ऐसे में काफी पढ़े- लिखे और संपन्न परिवार से आई नसीम का फिल्म जगत में एक विशिष्टï स्थान बना लेना स्वाभाविक ही था। नसीम की खूबसूरती, रहन-सहन, बातचीत का सलीका, दिखावटीपन से अलग जिंदगी, लोगों को सहज ही प्रभावित कर गई। नसीम का फिल्मों में रूझान था, पर घर-परिवार इतने खुले विचारों का न था कि वह उन्हें अभिनय करने की इजाजत दे देता। फिल्मों में आना भी महज एक संयोग था। दिल्ली की नसीम स्कूल की छुट्टिïयों में बंबई आईं तो उन्हें फिल्म स्टूडियो भी देखने का मौका मिला। इसी दौरान उन्होंने फिल्म की शूटिंग भी देखी। उस वक्त वहां मोतीलाल और सबिता देवी की मुख्य भूमिका वाली फिल्म सिल्वर किंग की शूटिंग चल रही थी। नसीम को सब कुछ बड़ा सहज लगा। जाहिर है उनकी खूबसूरती ने कई निर्माताओं को आकर्षित किया और उन्हें फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव भी मिल गया। परिवार वालों के लिए स्कूल की पढ़ाई पहली प्राथमिकता रही, लेकिन नसीम ने फिल्मों में काम करने का पक्का इरादा कर लिया।
उन्हें अचानक एक दिन सोहराब मोदी की फिल्म का प्रस्ताव मिला। नसीम ने परिवार वालों को मनाने के लिए भूख- हड़ताल शुरू कर दी। आखिरकार बेटी की जिद के आगे मां को झुकना पड़ा। नसीम ने वादा किया कि फिल्म में काम करने के बाद वह कॉलेज की पढ़ाई जारी रखेगी, क्योंकि उनकी मां उन्हें डॉक्टर बनाना चाहती थीं। नसीम शूटिंग के बाद दिल्ली लौटी पर कॉलेज में उन्हें प्रवेश नहीं मिला। वजह थी उनका फिल्मों में काम करना। नसीम ने फिर बंबई का रूख किया और अभिनय संसार को ही अपना लिया। खान बहादुर, मीठा जहर, वासंती और फिर आई पुकार। नसीम ने इस फिल्म में नूरजहां की भूमिका निभाई थी और चंद्रमोहन ने जहांगीर की। यह ऐतिहासिक फिल्म बहुत पसंद की गई।
इस फिल्म की एक और खासियत थी- वह थी नसीम का गायिका बनना। फिल्म में अपने गाने नसीम ने खुद गाए और इसके लिए उन्होंने दो साल तक रियाज किया। इस फिल्म में उनका गाया गीत  जिंदगी का साज भी क्या साज है लोगों की जुबां पर चढ़ गया। मिनर्वा मूवीटोन की फिल्म  शीशमहल में उनके अभिनय की तारीफ हुई। फिल्म में नसीम ने बिना मेकअप के सादी वेशभूषा में एक गरीब परिवार की स्वाभिमानी बेटी का किरदार निभाया। इस फिल्म के बाद तो नसीम को मिनर्वा मूवीटोन की महारानी की संज्ञा दी जाने लगी। फिल्मस्तान की फिल्मों में उस वक्त बीना राय, नलिनी जयवंत की तूती बोल रही थी। इनके बीच इस बैनर की फिल्म  चल-चल रे नौजवान नसीम को मिली। नायक थे अशोक कुमार। फिल्म जबरदस्त हिट हुई और नसीम 'ब्यूटी क्वीन  के नाम से लोकप्रिय हो गई।  शबिस्तान  भी फिल्मस्तान की हिट फिल्म हुई। फिल्म में नसीम ने स्पैनिश राजकुमारी जैसी वेशभूषा धारण करके लोगों को लुभाया। इसके बाद फिल्मों का एक लंबा सिलसिला चल पड़ा।
बाद की फिल्मों में कुछ ऐसी फिल्में भी आईं जिसमें नसीम ने अपने से 10 साल छोटे नायकों के साथ काम बड़ी सहजता के साथ किया। नसीम के पति एहसान ने निर्माता के रूप में कई फिल्में बनाई- उजाला ,  मुलाकातें, बेगम, चांदनी रात  और अजीब लड़की सभी नसीम की झोली में आईं। इसी दौरान नसीम फिल्म जगत से सात साल तक दूर रहीं। यह समय उन्होंने योरोप में गुजारा। इस अंतराल में सुरैया, नरगिस, मधुबाला, खुर्शीद, नूरजहां, स्वर्णलता, रागिनी, सरदार अख्तर जैसी नायिकाएं आईं और अपनी जगह बनाने में सफल रहीं लेकिन नसीम का अपना एक मुकाम बना रहा।  बागी और  सिंदबाद जैसी सी ग्रेड की फिल्में करने के कारण नसीम की लोकप्रियता को आघात लगा। नसीम ने इसके बाद छोटी भूमिकाएं करने की बजाय फिल्मी दुनिया को अलविदा कहना ज्यादा उचित समझा। कहा जाता है  गुरुदत्त अपनी फिल्म  प्यासा  में  उन्हें एक भूमिका देना चाहते थे, पर नसीम ने इंकार कर दिया। बेटी सायरा बानो के फिल्मों में प्रवेश के बाद भी नसीम को फिल्मों के प्रस्ताव मिलते रहे, पर वे राजी नहीं हुई। यहां तक प्रसिद्घ निर्माता आसिफ को भी उन्होंने साफ मना कर दिया। आसिफ नसीम को मुख्य भूमिका में लेकर  नूरजहां  बनाना चाहते थे। जब उन्होंने इसका कारण पूछा गया तो उनका एक ही जवाब था- वह अपनी बेटी से तुलना पसंद नहीं करेंगी।
 
 
नसीम अभिनय से भले ही अलग रहीं, पर ड्रेस डिजाइनर के रूप में वे फिल्मी दुनिया से जुड़ी रहीं। फिल्म आई मिलन की बेला में सायरा बानो द्वारा पहनी गई साड़ी जो काफी लोकप्रिय हुई, नसीम ने ही डिजाइन की थी। फिल्मी गतिविधियों से उनका जुड़ाव बाद तक बना रहा। नसीम जहां भी जातीं लोगों की निगाहें, उनकी खूबसूरती की तारीफ करती नजर आतीं। दिलीप कुमार और सायरा की शादी के वे सख्त खिलाफ थीं, पर समय के साथ उन्होंने समझौता करना सीख लिया। जीवन के अंतिम समय तक सायरा बानो ही उनके पास रहीं। नसीम के काफी करीब रहीं बेगमपारा जो दिलीप कुमार के भाई नासिर खान की पत्नी हैं, उनके जाने की खबर सुनकर मायूस हो उठीं- मुझे उनके साथ काम करने का मौका कभी नहीं मिला क्योंकि वे मेरी बहुत सीनियर थी। वे बहुत सभ्य और सुसंस्कृत महिला थीं। नसीम जितनी खूबसूरत दिखती थी उतनी ही खूबसूरत इंसान भी थीं। मेरी उनसे मुलाकात दिलीप सायरा के निकाह के बाद हुई। नसीम सिने जगत का एक परी चेहरा था। वे जहां भी जातीं, आकर्षण का केंद्र बन जाती थीं। सायरा ही उनके काफी करीब थी।
संगीतकार नौशाद भी नसीम के करीबी लोगों में से एक थे। नसीम की दो फिल्मों का संगीत नौशाद ने ही दिया था। नौशाद न्हें हमेशा याद करते हुए कहते थे- नसीम को मैं एक अरसे से जानता था। मैंने जब संगीत के क्षेत्र में कदम रखा, उस वक्त नसीम सोहराब मोदी के साथ फिल्म कर रही थीं। फिल्म का नाम था-'पुकार । फिल्म के प्रचार में नसीम का परिचय दिया था- परी चेहरा-नसीम बानो। नसीम वाकई में एक खूबसूरत और उम्दा अभिनेत्री थी जिसे परी कहना ज्यादा सटीक होगा। मैंने उसकी दो फिल्मों में संगीत दिया- अनोखी अदा और चांदनी रात। जिसका निर्माण नसीम के पति एहसान ने  ही किया था।
नसीम का जिस्म आज कब्र में खामोश सोया हुआ है, लेकिन उनकी फिल्में और खूबसूरती हमेशा सिने प्रेमियों को उन्हें कभी दफन नहीं होने देंगी। फिल्म पुकार में उनका गाया गीत- जिंदगी का साज भी क्या साज है, बज रहा है और बे- आवाज  है, का भाव आज उन पर सटीक उतरता नजर आ रहा है।
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