आकाशगंगा से धरती पर गिरती दूध की धारा.....
- ग्रीष्म ऋतु में शर्मिली, संकोची और सिमटी सी ...
- बारिश में उछलती, खेलती, कूदती नवयौवना की अनंत ख्वाहिशों की तरह खिलती जलधारा....
- सूर्य किरणों का प्रकाश ऐसा प्रतीत हो रहा था , जैसे सफेद धरती को सोने के आभूषणों से सजाया गया हो।
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यात्रा वृतांत: आलेख- सुष्मिता मिश्रा
रायपुर से 340 किलोमीटर का लंबा सफर। सुखद और रोमांचकारी। सुखद इसलिए क्योंकि चिकनी-चौड़ी सड़क पर चारपहिया में गु्रप के साथ हंसते-बतियाते रहे। ऐसा कांकेर पहुंचने तक ही रहा। उसके बाद के 147 किमी का हमारा सफर रोमांचकारी था। कांकेर में थोड़ी देर स्टे के बाद इस बचे हुए 147 किमी के सफर को हमने पूरी मस्ती के साथ ग्रीन कारपेट पर चलते हुए पूरा किया। बरसात का मौसम, हवा में नमी और कुछ नया देखने की बेसब्री ने सफर को छोटा बना दिया और हम पहुंच गए अपने नियाग्रा यानी चित्रकोट जलप्रपात। 100 मीटर की चौड़ाई में 96 फीट की ऊंचाई से पूरी वेग से गर्जना करते गिर रही मटमैली जलधारा और नीचे उफन रहे दूधिया धुएं के मिश्रण ने पूरे वातावरण को रहस्यमय बना रखा था। अद्भुत, अनोखा और नयनाभिराम। हम और हमारे साथी इंद्रावती के इस दूधिया श्रृंगार को बस निहारते रह गए।
वैसे बता दें, इंद्रावती नदी में सालभर पानी रहता है। गर्मी में 100 फीट का चौड़ा पाट गायब हो जाता है, लेकिन नदी की धारा गिरती रहती है। ग्रीष्म ऋतु में नवविवाहिता के समान शर्मिली, संकोची और सिमटी सी लगने वाली यह जलधारा जून-जुलाई की बारिश में उछलती, खेलती, कूदती नवयौवना की अनंत ख्वाहिशों की तरह खिल उठती है।
यही वजह है कि जुलाई से दिसंबर तक यहां पर्यटकों की खासी भीड़ रहती है। लोग चित्रकोट के उस विराट रूप से रूबरू होना चाहते हैं, जो इसे एशिया के विश्व प्रसिद्ध नियाग्रा फाल के समकक्ष बनाता है। बाद के महीनों में चित्रकोट की चौड़ाई सिमट जाती है, लेकिन सुकून उतना ही मिलता है, जितना बारिश के दिनों में। खैर, हम और हमारे साथियों ने बारिश के समय ही चित्रकोट के रौद्र रूप का दर्शन करने का प्लान बनाया था और हम पहुंचे भी। यहां पर पूरी इंद्रावती नदी अपनी पूरी चौड़ाई और वेग के साथ नीचे गिर रही थी। सन्नाटा आधा किमी पहले ही टूट चुका था। शोर ही कुछ ऐसा था। वॉटर फाल के करीब पहुंचते ही ठंडी फुहारों ने गुदगुदाना शुरू कर दिया। शरीर में ठंडी झुरझुरी से छूटने लगी। मन उत्साह से भर गया।
घंटेभर तक इंद्रावती के इस नायाब देन को निहारने के बाद हमने तय किया कि नीचे कल- कल करती बह रही इंद्रावती तक पहुंचा जाए, छुआ जाए। नदी में जब उफान न हो, तब पर्यटकों को नाव में बैठने की इजाजत होती है। नाविक तैयार थे, लेकिन वे जलप्रपात के करीब जाने को तैयार नहीं थे। जैसे, तैसे कर हमने उनको मनाया और थोड़ा सा रिस्क लेकर उस आलौकिक आनंद को हासिल किया, जिसकी चाहत लेकर हम यहां पहुंचे थे। धुएं को करीब से देखा, जलप्रपात जिस स्थान पर गिरता है, वो स्थान एक कुण्ड की भांति गहरा हरा रंग लिए हुए नजर आया। चट्टान अंदर की ओर पानी की मार से कट चुकी है। उसके ऊपर दूधिया धुआं फैला हुआ था। नाविक जब उसमें प्रवेश करता है, तो ऊपर से प्रतीत होता है कि जैसे पूरी नाव पानी की गुफा में गुम हो गई हो। हमारे आग्रह पर नाविक ने कुछ हिम्मत की, लेकिन हमने ही ज्यादा रिस्क लेना ठीक नहीं समझा।
चित्रकोट को निहारते हुए जब दोपहर का वक्त हुआ तो इसका सौंदर्य कुछ और निखर आया। जलकणों पर सूर्य किरणों का प्रकाश ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सफेद धरती को सोने के आभूषणों से सजाया गया हो। यहां की खासियत है इसकी रंगत। चित्रकोट जलप्रपात में उठते हुए जलकणों पर सूर्य की किरणें सुबह पड़ती हैं तो इसका इंद्रधनुषीय रंग पश्चिम में दिखाई देता है और जब यही सूर्य ेिकरणें सूर्यास्त के समय पड़ती हैं, तब यह इन्द्रधनुषीय रंग पूर्व दिशा में अवलोकित होता है। इसकी नैसर्गिक छटा देखते ही बनती है। इस मनोरम दृश्य के आस-पास के क्षेत्रों में प्राकृतिक सौंदर्य अद्वितीय है।
अब बात जरा रात की। रात के समय जलप्रपात की आवाज ऐसे लगती है मानो हिमालय से अंलकनंदा प्रवाहित हो रही हो। चन्द्रमा की रौशनी से जलप्रपात ऐसा प्रतीत होता है जैसे अंधरे को चीर कर दूध की धारा आकाशगंगा से धरती पर गिर रही हो। बरसात के दिनों में इसकी छटा ऐसी बिखरती है जैसे जल की धारा को मटमैले रंगों से भर दिया गया हो। यह वही धारा है जो ग्रीष्मऋतु में श्वेत चांदी सी लगती है। रात सुकून भरी रही। रिसार्ट में नींद के आगोश में समाते तक जलप्रपात की आवाज कानों में गूंजती रही।
चारों तरफ शांति, सुकून के बीच जल का कल-कल करता मधुर संगीत हमें थपकी देकर सुलाने की चेष्ठा करता रहा। थके तो थे ही, नींद आ ही गई। आखिर दूसरे दिन भोर का नजारा भी तो देखना था। दरअसल, हम जहां रुके थे, वहां से भी इसका मनमोहक नजारा दिखता है। इस जलप्रपात के करीब ही पीडब्ल्यूडी का भवन है, यहां कमरे भी हैं। इसी भवन के पीछे सुंदर लग्जरी रिसोर्ट है, जहां हम ठहरे हुए थे। यह रिसोर्ट पर्यटन मंडल का है। जिसमें एक बड़ा वातानुकूलित कान्फ्रेंस हॉल व 12 लग्जरी कमरे तथा 13 अति सुंदर एसी युक्त टेंट के साथ-साथ जलपान गृह है। जलपान गृह में आप जलप्रपात को निहारते हुए शाकाहारी तथा मांसाहारी भोजन प्राप्त कर सकते हैं।
इस जलपान गृह की एक विशेषता है कि इसमें ऊपर की मंजिल से लेकर नीचे तक एक प्रमुख पिल्हर है जो आठ मजबूत पिल्हरों से जुड़ा है जो हमें एक दिन के आठों पहर का अहसास दिलाते हैं। इसकी चौबीस बड़ी-बड़ी खिड़कियां हैं, जो दिन के चौबीस घंटों को दर्शाती हैं। नीचे मंजिल में 14 खिड़कियां हमें दिन के 14 घंटे कार्यरत रहने का संदेश देती है। इसी प्रकार बड़े-बड़े द्वार हमें अपने दिन भर में कुछ बड़े-बड़े कार्य करने को प्रेरित करते हंै। इस लग्जरी रिसोर्ट से ही लगे टेंट हमें राजकीय वैभव का अहसास कराते हैं। यहां के नियम-कायदे भी सख्त हैं। सुबह जब हम इस लग्जरी रिसोर्ट के लिए अंदर जाने की कोशिश कर रहे थे, तो हमें यहां के चौकीदार ने रोक लिया। हमारी पूरी जानकारी ली तथा जांच पड़ताल कर हमें अंदर जाने दिया। हमने बुरा नहीं माना, यह जरूरी भी था। वीराने में ऐसे सर्वसुविधायुक्त रिसोर्ट ने बड़ी राहत दी।
जैसे ही हम अंदर की ओर गए वहां पर बहुत बड़ा सुंदर सा हरा-भरा बगीचा देख कर ऐसा लगा मानो किसी ने हरे रंग का कालीन बिछा दिया हो। यहां इतनी हरियाली व सुंदर पुष्प है जिसकी महक से आप तरोताजा हो जाएंगे। इस रिसोर्ट के अंतिम छोर तक आप को हरियाली ही हरियाली दिखाई देती है। गाड़ी पार्किंग के लिए एक सुनिश्चित जगह है। हरे-भरे मधुबन से आप के लिए पगडंडी रूपी रास्ते का निर्माण किया गया है, जिससे होकर आप कमरे में जाते हैं जो अपनत्व का अहसास कराता है। बाल्कनी में बैठकर जब आप चाय की चुस्की लेते हुए इस मनोरम दृश्य को देखते हुए ध्यान से झरने की खिलखिलाहट को सुनेंगे तो आपको प्रकृति की अमर नाद सुनाई देगी। इसी रिसोर्ट में हमने रात गुजारी।
ऐसे भी समझें
चित्रकोट जलप्रपात को अगर ऊपर से देखें तो आपको ऐसा लगेगा जैसे घोड़े की नाल जैसे अद्र्धचंद्राकर रूप में जलधारा प्रवाहित हो रही हो। चट्टानों को ध्यान से देखने पर ऐसा लगता है मानो भगवान ने इन्हें फुर्सत में एक के बाद एक आहिस्ते से तह लगाकर किताब के पन्नों की तरह जिल्दसाजी कर इतिहास लिखा हो।
कोलकाता, ओडिशा से भी
चित्रकोट की ख्याति विदेशों में भी फैली हुई है। विदेशी भी यहां आते हैं। छत्तीसगढ़ के पर्यटकों के अलावा यहां ओडिशा, कोलकाता से बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। अगर बस्तर से सरगुजा तक टूरिस्ट सर्किट का काम होता है तो पर्यटकों की संख्या में काफी इजाफा हो सकता है। (छत्तीसगढ़ और आवाज से साभार)
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