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चिंगारी कोई भड़के , से सन सनन सन गीत लिखने वाले गीतकार आनंद बख्शी
  •  21 जुलाई- जन्मदिन पर विशेष
  • आलेख- मंजूषा शर्मा 
हिन्दी फिल्म जगत के जाने-माने गीतकार आनंद बख्शी (जन्म21 जुलाई 1930 — निधन 30 मार्च 2002)  को गुजरे हुए 18 साल बीत गए हैं, लेकिन अपने गीतों के  माध्यम से वे आज भी लोगों की जुबां पर जीवित हैं।  यदि वे आज सशरीर जीवित होते तो यकीनन आज के माहौल के हिसाब से गीत लिख रहे होते।  
गीतकार आनंद बख्शी ने एक बार भारतीय गीत-संगीत के स्तर पर टिप्पणी करते हुए एक वाकये का जिक्र किया था- दो अमरीकी पत्रकारों ने मुझसे पूछा था कि उन्होंने इतनी सारी हिन्दी फिल्में देखीं पर उन्हें कहीं भी भारतीय संगीत की झलक देखने नहीं मिली?
दरअसल यह बदला हुआ संगीत था , जिसमें भारतीय शब्द तो थे, लेकिन सब कुछ पाश्चात्य हो चुका था।  न शब्दों की सरलता थी, न धुनें दिल को छू लेने वाली। यह आनंद बख्शी के अंदर के कवि का दुख था। रौशन, मदन मोहन, सचिन देव बर्मन, आर. डी. बर्मन , लक्ष्मी-प्यारे जैसे संगीतकारों के साथ करने के बाद बख्शी साहब नए संगीतकारों  से भी यादगार धुनों की उम्मीद रखते थे।  उनकी कलम से उम्दा शायरी भी निकली और जुम्मा चुम्मा दे दे, चोली के पीछे क्या है, जैसा लोगों की जुबां पर चढऩे वाला गीत भी। हालांकि उस वक्त बख्शी साहब को इन्हीं गानों की वजह से आलोचना भी सहनी पड़ी, लेकिन उनकी कलम में समय के बदलाव की झलक हमेशा दिखाई देती रही।  फिल्म गदर का यह गीत - मैं निकला गड्डïी लेकर, आनंद बख्शी ने समय की नब्ज़ पहचान कर ही लिखा। 
जिन फिल्मी सितारों, फिल्मकारों के साथ बख्शी साहब एक बार जुड़ जाते, उनकी जोड़ी जम जाती थी। यश चोपड़ा, शक्ति सामंत, सुभाष घई राजकपूर, ऐसे कुछ नाम हैं, जिनकी फिल्मों की घोषणा होने के साथ, गीतकार का नाम भी जुड़ जाता था और वे अक्सर बख्शी साहब ही होते थे। यश चोपड़ा के साथ तो उन्होंने एक लंबी पारी खेली। बी. आर. चोपड़ा. और यश चोपड़ा जब एक साथ फिल्में बनाया करते थे, तभी से आनंद बख्शी को उन्होंने चोपड़ा खेम में शामिल कर लिया।  बी. आर. और यश जब अलग हुए, तो बख्शी साहब का साथ किसी भाई ने नहींं छोड़ा। लम्हे, चांदनी, दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे, दिल तो पागल है, और मोहब्बतें। यश चोपड़ा के बैनर के लिए बख्शी साहब का लिखा हर गाना हिट होता था। यश मानते थे कि उनका इतना लंबा साथ इसलिए रहा , क्योंकि बख्शी साहब धरती के नजदीक थे। वे फिल्म की  हर परिस्थिति को अच्छी तरह समझते थे।  सही मायने में वे एक कवि , सिंगर थे। वे लव टु सिंग पर विश्वास रखते थे। हमने बरसों साथ काम किया और बेटे आदित्य के साथ भी बक्खी साहब उसी सहजता से जुड़े थे। 
आनंद बख्शी और यश चोपड़ा का साथ इसलिए भी एक अटूट बंधन में बंध गया था, क्योंकि दोनों ही पंजाब की धरती से जुड़े थे और जब- जब उनकी जोड़ी जमती, पंजाब की मिट्टïी की वह सोंधी-सोंधी और सरसों की तीखी खुशबू उनके गीतों में महसूस होने लगती।  दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे पंजाबी पृष्ठïभूमि की फिल्म थी। बख्शी साहब ने खुद ये माना था कि इस फिल्म के गाने लिखने में उन्हें जितना मजा आया , उससे अधिक प्रसन्नता गीतों के फिल्मांकन को लेकर हुई। घर आ जा परदेसी तेरा देस बुलाए रे, उनका सबसे पसंदीदा गाना था। 
शक्ति सामंत की हिट फिल्मों में संगीत का सबसे बड़ा योगदान रहा है।। शक्ति सामंत जब भी किसी फिल्म की घोषणा करने वाले होते, पहले बख्शी के पास जाते और उन्हें पटकथा दिखाकर गाने लिखने को कहते। शक्ति सामंत, आनंद बख्शी को अपनी आधी जिदंगी मानते थे।  करवटें बदलते रहे, सारी रात हम... जैसा रोमांटिक गीत और जय जय शिवशंंकर जैसा हुड़़दंगी गीत आनंद बख्शी ने राजेश खन्ना के लिए लिखा। राजेश खन्ना के वे अजीज दोस्त थे। राजेश खन्ना आज भी मानते हैं कि बख्शी साहब न सिर्फ कवि, बल्कि खुद एक कविता थे, जिसे बार-बार पढऩे को जी चाहता था।
सुभाष घई जब फिल्म ताल बना रहे थे, तब उन्होंने इसके गीतों की जिम्मेदारी भी आनंद बख्शी को सौंपी। उन्होंने इस फिल्म की पटकथा दिखाते हुए कहा कि इस संगीत प्रधान फिल्म की जान इसके गीत ही हैं।  आनंद बख्शी ने इस फिल्म के गीतों के साथ पूरा न्याय किया और  इसी फिल्म के गानों के लिए उन्हें उस वर्ष का फिल्म फेयर, वीडियोकॉन, स्क्रीन और लक्स जी सिने अवाड्र्स मिला।  मंच पर लक्स जी सिने अवार्ड   लेते समय आनंद बख्शी काफी भावुक हो गए थे और उन्होंने अच्छी धुन के लिए ए. आर. रहमान को धन्यवाद भी दिया।  अपना अनुभव सुनाते हुए उन्होंने बताया था कि किस तरह रहमान को उनके साथ काम करने में परेशानी आई। हालांकि रहमान के साथ काम करना उनके  लिए प्रेरणादायक रहा। उन्होंने बताया- मैं जैसे ही गीत पूरा करता, रहमान उसकी धुन बनाने लग जाते।  रहमान अपने चेन्नई के स्टुडियो में ही धुनें बनाया करते हैं। बख्शी साहब बार-बार चेन्नई नहीं जा सकते थे, इसलिए वे मुंबई में काम करते और रहमान चेन्नई में गाने रिकॉर्ड करते।  सुभाष घई दोनों के बीच की कड़ी बनते और उन्हें बार-बार मुंबई से चेन्नई दौड़ लगानी पड़ती।  यदि रहमान कोई परिवर्तन चाहते तो वे सुभाष घई को कहते और घई उनके पास दौड़े-दौड़े आते।  यह काफी जटिल प्रक्रिया थी, लेकिन जब ताल का संगीत मैंने सुना तो बहुत खुशी हुई। रहमान ने उनके गीतों के साथ पूरा न्याय किया था।  फिल्मांकन भी बहुत बढिय़ा हुआ था।  बख्शी साहब जानते थे किए सुभाष घई इन परेशानियों से बचने के लिए कोई भी गीतकार ले सकते थे , लेकिन उन्हें क्वालिटी चाहिए थी।  सुभाष घई ने ही अपनी पहली फिल्म में बख्शी साहब को मौका दिया था  और वे फिर उनके साथ ऐसे जुड़े कि फिल्म यादें तक उनकी जोड़ी बनी रही । घई  की प्रेरणा से ही बख्शी साहब ने कर्मा का गीत हर करम अपना सहेंगे, में हिन्दू-मुस्लिम सिख ईसाई वाला अंतरा लिखा था। 
आनंद बख्शी जब बयालिस साल के थे, तब राजकपूर ने उन्हें फिल्म बॉबी के लिए रोमांटिक गाने लिखने कहा था।  चाबी खो जाए,  मैं शायर तो नहीं, जैसे रोमांटिक गीत के साथ उन्होंने -मैं नहीं बोलना जा जैसा गंभीर गीत भी लिखा  तो 50  बरस में उन्होंने सौदागर के इलु इलु गीत को अपनी कलम दी।
67 बरस की उम्र में आनंद बख्शी नेे दिल तो पागल  के लिए गाने लिखे। अशोका के लिए उन्होंने सन सनन सन गीत 72 वें बरस में प्रवेश करने के बाद लिखा, लेकिन आनंद बख्शी अपने आप को महाकवि तो क्या एक कवि भी नहीं मानते थे।  साहिर लुधियानवी और रामप्रकाश अश्क उनके प्रेरणा स्रोत थे। ऐसा नहीं है कि आनंद बख्शी को संघर्ष नहीं करना पड़ा। वे तो निराश होकर फिल्म इंडस्ट्री ही छोड़ चुके थे, लेकिन 1957 वे फिर लौटे और जब जब फूल खिले, मिलन से उनका सितारा चमका, तो आराधना के गीतों ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचा दिया।  
बख्शी साहब की सबसे बड़ी विशेषता थी कि उनकी कलम ने समय की मांग को पहचाना और सिर्फ फिल्मी गीत ही लिखे। एक गीतकार के रूप में ही विकसित हुए और लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई।  वे मानते थे कि शास्त्रीय संगीत और लोकधुनों पर आधारित गीत ही स्थायी रहेंगे बाकी सब उन बरसाती मकानों की तरह साबित होंगे, जो बरसात के आते ही ढह जाया करते हैं। 

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