मुगल-ए-आजम फिल्म की रिलीज को हुए 60 साल
-बोलचाल बंद होने के बाद भी दिलीप कुमार - मधुबाला ने फिल्म पूरी की
-दिलीप कुमार ने 19 साल तक यह फिल्म नहीं देखी
आलेख-मंजूषा शर्मा
फिल्म मुगल-ए-आज़म 60 साल पहले आज ही के दिन रिलीज हुई थी। फिल्म के गाने इतने लोकप्रिय हुए थे कि आज की पीढ़ी भी इसे गुनगुनाती है। वर्ष 1960 में फिल्मकार के. आसिफ की ब्लॉक बस्टर फिल्म रही मुगल-ए-आज़म को आज भी दर्शक देखना पसंद करते हैं। फिल्म में मधुबाला, दिलीप कुमार और पृथ्वीराज कपूर की दमदार अदाकारी और प्रभावशाली सेट ने दर्शकों के दिलों पर अपनी छाप छोड़ी।
हिंदी सिनेमा की सबसे सफल फिल्मों से एक, मुगल-ए-आज़म में अनारकली और राजकुमार सलीम की दुखद प्रेम कहानी के माध्यम से प्यार, वफादारी, परिवार और युद्ध को बड़े ही अनोखे तरीके से पर्दे पर उतारा गया था। फिल्म हिन्दी में बनी, लेकिन इसे तमिल और अंग्रेजी में भी शूट किया गया। हिन्दी में तो फिल्म सफल रही, लेकिन तमिल में लोगों ने इसे पसंद नहीं किया, जिसके बाद इसे अंग्रेजी में रिलीज करने का खयाल फिल्मकार को छोडऩा पड़ा। ये फिल्म डिजिटली रंगीन होने वाली पहली ब्लैक एंड व्हाइट हिंदी फिल्म थी। इसके अलावा ये किसी भी भाषा में बनने वाली पहली फिल्म थी जिसे दोबारा रिलीज़ किया गया था।
मुगल ए- आजम, फिल्म को वर्ष 2009 में जब रंगीन करके दोबारा रिलीज किया गया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि इसे इतना शानदार रिस्पांस मिलेगा। फिल्म के गाने अपने दौर में तो सर्वश्रेष्ठ रहे ही हैं और आज भी जब बजते हैं, तो लोगों के दिलों को सुकून ही देते हैं। इस बारे में शायद ही किसी को शक हो कि फिल्मी इतिहास में इसका संगीत नौशाद का सर्वोत्तम संगीत रहा है। नौशाद साहब ने एक-एक खालिस मोती चुन-चुनकर उसे ऐसे सुरों में पिरोया कि हर गाना अपना कहानी आप कह जाता है।
नौशाद का दिलकश संगीत
इस फिल्म के ज्यादातर गानों में नौशाद साहब ने कहानी के मूड के लिहाज से अपनी पसंदीदा गायिका लता मंगेशकर की आवाज ली है। हर गाने में शास्त्रीयता की झलक मिलती है। इन गानों में कम से कम म्यूजिक इंस्टूमेंट्स का इस्तेमाल किया गया और कहीं भी तेज ऑर्केस्ट्रा या कम्प्यूटरीकृत तकनीकी या आधुनिकता का आभास नहीं होता। शायद इसीलिए पुराने गानों में गायकों की आवाज ज्यादा स्पष्ट तौर से उभरकर सामने आती थी। फिल्म में लताजी का राग गारा में गाया हुआ गीत -मोहे पनघट पे नंद लाल छेड़ गयो रे.....एक तरह से कव्वाली भी है और लोक परंपरा, मान्यताओं के अनुरूप कान्हा के साथ गोपियों की छेड़-छाड़ भी इसमें नजर आती है। इस गाने में नायिका मधुबाला की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस गाने की हर बात उम्दा है- फिर उसका ट्रैक हो या फिर खालिस उर्दू के साथ प्रचलित लोक भाषा का इस्तेमाल और फिर उनको लेकर रचा गया नौशाद का बे-नायाब सुरों का जाल, जिसमें श्रोता अंदर तक घुसता चला जाता है।
इसी फिल्म में नौशाद साहब ने रागदरबारी में एक गाना रचा- प्यार किया तो डरना क्या.. काफी खूबसूरत है। इसी गाने में शीश महल के साथ मधुबाला की झलक उस जमाने की बेहतरीन तकनीक को पेश करती है। इस गाने से जुड़ा एक अनूठा इतिहास भी है। 60 के दशक में जब एक पूरी फिल्म 10 लाख रुपये में बन जाया करती थी, उस वक्त इस फिल्म के सिर्फ इस गाने को शूट करने में 10 लाख रुपये से अधिक खर्च हो गए थे । इस गाने को फिल्माने के लिए खासतौर पर शीश महल बनवाया गया था जिसमें हर तरफ सिर्फ शीशे ही शीशे लगे हुए थे। लता मंगेशकर की आवाज का जादू ऐसा चला कि क्या कहने। कहा जाता है कि इस गाने को लिखते समय गीतकार शकील बदायुनी ने सौ से कहीं अधिक बार पन्नों को फाड़ा, तब जाकर उनका यह गाना फिल्मकार के. आसिफ को पसंद आया था। लता मंगेशकर ने फिल्म के हर गाने के लिए काफी रियाज किया। इस बात का खुलासा खुद लता मंगेशकर ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान किया था। उन्होंने कहा था- जब वो इस फिल्म के गानों की रिकॉर्डिंग करती थीं तब उन्हें लगता था कि उनके ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और कैसे भी करके उन्हें ये पूरी करनी है। फिल्म का यही गाना रंगीन फिल्माया गया था, बाकी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट में थी।
बड़े गुलाम अली खां साहब का जादू
फिल्म का एक और गाना राग यमन में है जिसके बोल हैं- खुदा निगेबान..जिसमें नफीस उर्दू के बोल हैं तो उनमें रची बसी लता की मिठास भी है। फिल्म में नौशाद साहब ने उस्ताद बड़े गुलाम अली साहब से काफी मनुहार करके दो गीत गाने के लिए मना लिया था - प्रेम जोगन बन के और शुभ दिन आयो राज दुलारा...। जिसमें से प्रेम जोगन.. गाना भी पूरी तरह से ठुमरी स्टाइल का ठेठ शास्त्रीय था और इसे दिलीप कुमार और मधुबाला पर फिल्माया गया था, जो फिल्मी इतिहास का सबसे रोमांटिक सीन कहा जाता है। इस सीन में नायक दिलीप कुमार प्रेम रस में डूबी नायिका मधुबाला के चेहरे पर जब बड़े-बड़े मखमली पंखों से अपना प्यार उड़ेलते हैं, सारा माहौल रोमांटिक हो उठता है। इस की गाने की खासियत ये भी है कि इसे बड़े गुलाम अली खां साहब ने गाया है। नौशाद अच्छी तरह से जानते थे कि इस ठुमरी के साथ खां साहब ही न्याय कर सकते हैं। काफी मनुहार के बाद खां साहब दो ठुमरी गाने के लिए तैयार हुए थे।
इस फिल्म में कुल 12 गाने थे। एक गाने में रफी साहब और एक अन्य गाने में शमशाद बेगम की आवाज का इस्तेमाल नौशाद साहब ने किया। फिल्म के एक गाने जिंदाबाद जिंदाबात ऐ मुहब्बत जिंदाबाद गाने के कोरस में नौशाद साहब ने 100 से अधिक गायकों को कोरस के रूप में शामिल किया था।
सबके लिए अलग कपड़े तैयार हुए
मुग़ल-ए-आज़म के सेट और प्रत्येक कलाकार के लिए अलग-अलग कपड़े तैयार किए गए थे। जिसके चलते यह फि़ल्म ऐतिहासिकता को दर्शाने में सफल रही थी। इसके किरदारों के कपड़े तैयार करने के लिए दिल्ली से विशेष तौर पर दर्जी और सूरत से काशीदाकारी के जानकार बुलाये गए थे। हालांकि विशेष आभूषण हैदराबाद से लाए गए थे। अभिनेताओं के लिए कोल्हापुर के कारीगऱों ने ताज बनाया था। राजस्थान के कारीगरों ने हथियार बनाए थे और आगरा से जूतियां मंगाई गई थीं। फि़ल्म के एक दृश्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति दिखाई गई है, जो वास्तव में सोने की बनी हुई थी।
दिलीप कुमार और मधुबाला की अनबन
फिल्म के सेट तैयार करने में काफी वक्त लगता है जिसका कारण फिल्म निर्माण में भी काफी वक्त लग गया। इस दौरान मधुबाला और दिलीप कुमार के रिश्ते में ऐसी खटास आ गई कि बोलचाल तक बंद हो गई थी। कहा जाता है कि इसके बाद भी दोनों कलाकारों ने अपने रोमांटिक सीन भी इस संजीदगी से किए कि किसी को भान ही नहीं रहा कि दोनों के रास्ते अलग हो चुके हैं। फिल्म के युद्ध के सीन के लिए भारतीय सेना की मदद ली गई थी। इसी दौरान के. आसिफ के साथ दिलीप कुमार की ऐसी नाराजगी रही कि दिलीप कुमार फिल्म के प्रीमियर में नहीं गए और करीब 19 साल तक उन्होंने यह फिल्म ही नहीं देखी।
फिल्म 5 अगस्त 1960 को 150 प्रिंट के साथ रिलीज हुई, जो एक रिकॉर्ड था। मुंबई के मराठा मंदिर में इसे प्रदर्शित किया गया। फिल्म का रिस्पांस काफी धीमा रहा, लेकिन बाद में इसने अभूतपूर्व सफलता अर्जित की। फिल्म को अनेक पुरस्कार भी मिले।
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