'बार' खींच रहा बार-बार
... और हवा के झोकों ने शरीर में झुरझुरी पैदा कर दी
....यहां ऐसा लग रहा था मानो अंबर नीले रंग का वस्त्र धारण किए धरती को पाने की चाहत में झुक रहा हो
सुष्मिता मिश्रा
जीवन का जद्दोजहद जब हद पार करता है तो पसीना इस पथरीले शहर से दूर मन को ऐसी जगह ले जाता है, जहां परम शांति के साथ आनंद का कोलाहल हो...जी हां! बार नवापारा। मन यही आकर ठहरता है। ऊपर से शांत और भीतर वन्यप्राणियों की अठखेलियों के साथ मानव जीवन का सहज, सरल सामंजस्य। इस बार सूक्ष्म मन ही नहीं, स्थूल काया भी पहुंची इस प्राकृतिक ठीये पर। ग्रुप में थे, इसलिए शहर से लेकर जंगल तक कंक्रीट से बने कॉरीडोर का सफर भी आनंद दे रहा था। हम अपने चारपहिए पर थे, लेकिन मन इस गाड़ी से बाहर बार नवापारा पहंुच चुका था, शायद इसीलिए दो-ढाई घंटे का सफर मिनटों का अहसास करा रहा था। हम वीक एंड की छुट्टियों पर दो दिन के लिए बार जा रहे थे। नेशनल हाईवे-6 की चिकनी, चमचमाती सड़क पर 78 किमी का सफर आसानी से पूरा हो गया। 78 वें किमी पर पटेवा है और यही से बायीं ओर 28 किमी का सफर जमाने की सारी थकान दूर करता है। हम सभी ने पटेवा में चाय-नाश्ता किया और फिर इसी बीएमडब्लू सड़क पर अपना सफर शुरू किया। गाड़ी की खिड़कियों के कांच इसलिए खोल दिए कि जंगल की ताजी हवा के साथ वहां हर पल घटित प्राकृतिक क्रिया, प्रतिक्रया का सशरीर आनंद ले सके। कांच खुले थे, इसलिए हवा के झोंकों ने शरीर में झुरझुरी सी पैदा कर दी। हमने पहला किलोमीटर पार भी नहीं किया था कि सबसे पहले दर्शन हुए गुलाटियां खाते बंदरों के समूह का, बच्चे खुश हो गए। उनको लगा कि यह शुरुआत है, आगे उन सभी वन्यप्राणियों से वे रूबरू जरूर होंगे, जिनको वे किताबों में पढ़ते और लोगों से सुनते रहे हैं।
वे बंदरों में खोए हुए थे कि सामने अभयारण्य का कानून आ खड़ा हुआ। यहां का कायदा है, प्रवेश से पहले बेरियर पर पर्ची कटवाए जो आगे भी काम आने वाली थी। बेरियर पर हमसे पूछताछ हुई, जांच-पड़ताल में थोड़ा वक्त लिया, फिर पर्ची लेकर प्रकृति की गोद में उतरते चले गए। वहां असीम शांति का अनुभव हो रहा था। प्रकृति की नैसर्गिक व अलौकिक छटा के बीच पक्षियों का कलरव और यदाकदा छोटे-मोटे वन्यप्राणियों की मौजूदगी के अहसास ने हम सभी को तरोताजा कर दिया। कुछ दूर जाने के बाद बायीं ओर एक बोर्ड नजर आया जिस पर लिखा था पर्यटक विश्राम गृह हरेली इको रिसोर्ट मोहदा, पर हमें तो जंगल घूमने का मन था, इसलिए हमने इस रिसोर्ट को अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गए। बार और नवापारा दो गांव हैं, जो जंगल के दो नेत्रों की तरह हैं। इन दोनों के सेंटर में जंगल का मेन बेरियर है। हमने जंगल घूमने का समय पूछा तो पता चला कि वो शाम 4 बजे खुलेगा। तब तक हमें रुकने का इंतजाम करना था। हम सीधे वन विभाग के बार स्थित पर्यटक विश्रामगृह पहंुच गए, लेकिन वहां जाने पर पता चला कि रायपुर आफिस या नेट द्वारा बुकिंग करवाने से ही यहां रूम मिलता है। हमें अपनी अज्ञानता पर अफसोस हुआ, हमें लगा था कि वहां पहुंचकर बुकिंग करवा लेंगे। खैर, हमने दूसरे विकल्प पर दिमाग दौड़ाना शुरू किया। हमने चौकीदार से पूछा कि देवपुर, पकरीद में भी विश्रामगृह हैं न? चौकीद्वार ने बताया कि है, लेकिन वह सिर्फ आफिसर और वीआईपी के लिए ही है। काफी मशक्कत की, पर उसने साफ इंकार कर दिया। अब क्या था हमारे रुकने की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। हम सभी ने पूछा और कोई व्यवस्था है क्या? तो उसने कहा, पर्यटक विश्रामगृह मोहदा में है, जहां रुकने की उत्तम व्यवस्था हो सकती है पर अभी तो सीजन है पता नहीं रूम उपलब्ध होगा कि नहीं।
हम लोग ईको पर्यटक विश्रामगृह, मोहदा जा ही रहे थे कि हमारे साथ जो बड़े लोग थे, वो रास्ते में ही बड़बड़ाने लगे, इसलिए कहते हैं कि पहले से बुकिंग करवाकर आना चाहिए। जैसे ही मोहदा रिसोर्ट पहुंचे मन में सब लोग भगवान से प्रार्थना करने लगे कि यहां कैसे भी दो रूम मिल जाए और ईश्वर ने हमारी सुन ली। किस्मत से वहां पर किसी की बुकिंग कैंसिल हुई थी, उनका रूम हमें मिल गया। जंगल के बीचो-बीच हरियाली की गोद में सर्वसुविधायुक्त रिसोर्ट देखकर मन और भी प्रफुल्लित हो उठा। इस रिसोर्ट में एक रेस्टोरेंट सेंटर में बनाया हुआ है। इसके दोनों साइड में 3-3 काटेज बने हुए हैं। 1 काटेज में दो रूम रूम हैं, जिसे फूलों के नाम से नामांकित किया गया है। जैसे-1.हरसिंगार, 2.अपराजिता, 3.कचनार, 4.अमलतास, 5.पलाश, 6.गुलमोहर इस प्रकार कुल 12लक्जरी रूम वहां उपलब्ध हैं। रूम भी बड़ा खूबसूरत। बड़ी बड़ी खिडकियां व सुंदर बाल्कनी से बैठकर आप जानवरों को पानी पीते देख सकते है। बरसाती नदी को रोक कर सुन्दर ताल बनाया गया है ताकि गर्मी के दिनों में जब जंगल का पानी सुख जाता है। तब यहॉ पर जानवरों का रेला पानी-पीने के लिए लगा होता है। इस रिसोर्ट के बीचों बीच में टावर रूपी एक व्यू पांइट बनाया गया है।
यहां से आप जंगल का अलौकिक आंनद ले सकतें हैं। जहॉ तक आपकी नजर जाएगी, सिर्फ जंगल ही जंगल नजर आएगा। इतना घना जंगल व हरियाली हमारी आंखों को तृप्त करते हुए हमारे हृदय तक पहुंच कर हमें नई स्फूर्ति व ऊर्जा प्रदान कर रही थी। यहॉ का दृश्य ऐसा लग रहा था, मानों अंबर नीले रंग का वस्त्र धारण कर धरती को पाने की चाहत में झुक रहा हो और धरती है कि स्वंय में लजाती हुई अपने आप को हरे रंग के वस्त्र में समेंट रही हो। फिर लगा कि नहीं, नीलांबर जलराशि में परिवर्तित होकर अवतरित हो चुका है और नदी की शक्ल में धरती की मांग सजा रहा है...कुछ ऐसा ही अलौकिक अहसास यहां हो रहा था। धरती का पूरा सोलह श्रृंगार यहां नजर आया। इस स्थान पर एक प्रकार की अलग ही मृदुलता, मादकता व कोमलता लिए हवा हिम-पर्वत की बहती हुई निर्मल, स्वच्छ एवं पवित्र जलवाली नदी सी ठंडकता लिए बह रही थी। जो मन के कोने-कोने को तृप्त करते हुए प्रेम का मधुर संगीत सुना रही थी। वह बता रही थी कि जंगल का आंनद क्या होता है। धरती और अंबर के प्रेम गाथा को सुना रही थी। शांत और सुग्मय वातावरण में जंगल के पुष्पों की मनमोहक खूशबू चहुओर फैला रही थी। जहां तक आपकी दृष्टि जाएगी आप को सुंदर, शांत और सुघन वन ही नजर आएगा।
उसी वक्त हमको लंच के लिए बुलावा आ गया और होटल के कर्मचारी ने बताया यहॉ पर मधुमक्खी का छाता है। इसे छेड़ना मत, मुझे मेरी दादी की बात याद आ गई। वो कहती थी जिस स्थान में मधुमक्खी का छाता होता है, वहां सुख- समृद्धि व मां लक्ष्मी का वास बना रहता है। मैंने इसलिए उस कर्मचारी से पूछा क्यों भाइयां क्या यहॉ पर बारहों महीने इंकम होती है? तो कर्मचारी ने बताया कि यहॉ बारहों महीने इंकम होती है, ऑफ सीजन (01 जुलाई से 31अक्टूबर तक बारिश के कारण पार्क बंद होता है) फिर भी लोग रेस्ट करने आते है। हम सब ने लंच लिया और पहुंच गए बारनवापारा के बैरियर पर। कुछ फीस पेय (1400 रुपए मात्र) कर, जिप्सी, ड्राइवर व गाइड लेकर अभयारण्य के कोर एरिया में भ्रमण की अनुमति हमने हासिल कर ली थी। गाइड द्वारा सूचित किया गया कि कोई भी जिप्सी से उतरेगा नहीं। सभी लोग बिल्कुल शांत बैठेगे और मैं जिस तरफ आपको दिखाऊंगा सभी लोग ध्यान दे कर चुप-चाप देखेंगें। हम सभी ने हॉ तो कह दिया पर कुछ दूर चलते ही हिरण का झुण्ड उछलते कुदते छलांग मारते सामने से गुजरा तो बच्चों ने चिल्लाना शुरू कर दिया। वो देखो डियर! वो देखो डियर! कितने सारे और ताली भी बजाने लगे तब गाइड ने कहॉ हल्ला मत करो और भी है वो भी रोड़ क्रॉस करेगें। इतने सारे हिरण तेजी से छलांग लगाते हुए भाग रहे थे। उनकी त्वचा इतनी चमकदार व कोमल लग रही थी जैसे अभी पैदा हुए हो, देख कर मन प्रफूल्लित हो गया। फिर कुछ दूर जाने के बाद ऐसा लगा मानों ऊंचे-ऊंचे बड़े मोटे तने वाले पड़े हमें जीवन की ऊंचाइयों को धैर्य के साथ छूने के लिए प्रेरित कर रहे हो। मुझे यकायक सुमित्रानंद पंत जी की वो कविता याद आई जिसमें सतपुड़ा के घने जंगल का वर्णन था। जैसे ही जिप्सी घने जंगल की ओर अंदर जाती जा रही थी, सन्नाटा बढ़़ता जा रहा था। बंदर के साथ-साथ अन्य पशु-पक्षी की ध्वनि कभी कभार सुनने को मिल जाती। रंग बिरंगे पक्षियों की प्रजाति हमें देखने को मिल रही थी। गाइड द्वारा बताया गया कि 150 प्रकार से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियां यहां पाई जाती हैं। जैसे मोर, दूधराज, गोल्डन अरियल, डैऊगो, राबिन, कठफड़वा, बुलबुल, हुदहुद, बाज, उल्ल, तोते आदि। जैसे ही जिप्सी अभयारण के बीचों-बीच कोर ऐरिया में पहुंची, हमने गौर का एक बड़ा झूंड देखा। से वन भैंसा से अलग होते हैं। इनके पैर सफेद होते हैं। वैसे तो ये झूंड में रहते हैं पर किसी-किसी को झूंड से निकाल दिया जाता है। ऐसे गौर सनकी और गुस्सैल होते हैं। गौर में इतनी ताकत होती है कि वो जिप्सी को भी पलट सकते हैं ऐसा गाईड ने बताया।
अब तो बच्चे बिल्कुल चुपचाप बैठ गए। कुछ दूर चलते ही हमें सोन कुत्तों (जंगली कुत्ते) के झूंड के द्वारा हिरण का शिकार करते हुए देखा। वो करीब 50-60 होंगे और एक बड़े हिरण को चारों तरफ से घेर कर दौड़ा-दौड़ाकर सभी हिस्सों में काट-काट कर घायल कर रहे थे। तभी वो हिरण धरती पर गिरा और अपने आप को इतनी जल्दी पुन: वापस खड़ा कर पैरे से कुत्तों को हटाते हुए अपनी जान बचाने के लिए वापस दौडना प्रांरभ कर दिया। उसी समय सभी कुत्तों ने जैसे तय किया कि वो हिरण को अकेले हमला करने पर नहीं मार सकते इसलिए वो सभी एकजुट होकर एक साथ एक ही वक्त पर हिरण पर हमला किया। पर वो हिरण आंखरी सांस तक दौड़ कर अपने आप को बचाने की कोशिश में लगा था। जब एक साथ सभी कुत्तों ने एक ही वक्त पर हमला किया तो वो जमीन पर गिर पड़ा और सभी कुत्तों ने उसकी बोटी-बोटी अलग कर उसे मार खाया। कुत्तों ने हमें एकता की सीख दे दी। कोई भी काम बड़ा नहीं अगर सभी एकजुट हो कर करे। इसी प्रकार हिरण ने भी आंखिरी सांस तक लड़ने की प्रेरणा दी। इस दृश्य ने मन में क्षोभ उत्पन कर दिया। शायद यही तो प्रकृति का अनुकुलन बनाने का नियम है। इसे ही जीवन चक्र कहते है। यह सोच कर हम आगे बढ़़े। कुछ दूर बाद हरे वनो में लहराती भूमि उत्तर दिशा में मुड़ते ही उबड़-खाबड़ एवं छोटी-छोटी पहाडिय़ों और घने वनों से आच्छादित हो गई। अचानक हमारे बच्चों ने भालू को देखा जोर से चिल्लाए बियर-बियर उसी समय गाइड ने कहॉ दो और भी है शोर मत मचाओ वो ऊपर पहाडियों में छिप जाएंगे। भालू के बाल इतने चमकीले और सुन्दर थे। मानो उसने कन्डीशनर यूज किया हो। कुछ देर बाद वो पहाडि़य़ों की ओर चले गए।
अब ड्राइवर ने बफर जोन की तरफ जिप्सी मोड़ी। इसके रास्ते कई छोटे-बड़े पठारों से निर्मित ंहै। इन रास्तों में शायद इस साल हमसे पहले कोई और जिप्सी नहीं गुजरी थी क्योंकि गाइड लकड़ी से बड़े-बड़े मकड़ी के जाले, जो मुंह के सामने में आने लगे उसे हटाता जा रहा था। अभयारण खुले दो ही दिन हुए थे, भूमि भी घास, पौधों व झाडि़यों आदि से ढंकी हुई थी। पगडंडियां या वो रास्ते जिस पर से जिप्सी जाती है वो भी बरसात के कारण जंगल में विलिन हो गए थे। लेकिन मानना पड़ेगा उस ड्राइवर और गाइड के अनुभव को जो रास्ते दिखाई भी नही दे रहे थे, उसमें वो गाड़ी को चला रहे थे।
अब बांस के घने जंगलों की तरफ जिप्सी को मोड़ा गया। इस इलाके में हिंसक प्राणी पाए जाते है । जैसे:- तेन्दुआ, लकड़बग्धा, लोमड़ी इत्यादि भी देखने को मिल सकते हैं। गाइड ने बताया कि ये इलाका पैन्थर का है। तो हम लोग सोच में पड़ गए कि अगर पैंथर अचानक आ जाए तो क्या करेंगे। जिसे देखने की चाहत थी, अब उसी के बारे में मन के किसी कोने में भय आंरभ हो रहा था। हमारे साथ छोटे-छोटे बच्चे भी थे। शरीर में अब कंपकंपी सी छूटने लगी। शाम गहरी और ठंडी हवाओं के साथ ढ़लने लगी थी। (बच्चों को स्वेटर पहनाया गया।) सन्नाटा इस कदर छाते जा रहा था कि कहीं भी जरा सी भी पेड़-पौधों के हिलने की आवाज होती तो सभी लोग झट से पलट कर उसी तरफ देखने लगते।
जंगल को इतने करीब से देखना। जैसे चाह थी वैसे ही अनुभव हो रहा था। शाम का धीरे-धीरे रात की ओर बढ़ना हमें भयभीत कर रहा था। हम सोच रहे थे कि किसी पेड़ के ऊपर कोई जानवर छिपा बैठा हो और वह अचानक हम पर हमला कर दे तो हम किस को पहले बचाएंगे। इस प्रकार के विचारों से शरीर में झुरझुरी सी छूटने लगी या फिर उन कुत्तों के झुंड की भांति एक साथ हम सब मिलकर उसी पर आक्रमण कर देगें आदि विचारों का आदान-प्रदान चल रहा था। इतने में ही हमें नील गाय दिखाई दी और समय के अभाव ने रिस्क न लेते हुए ड्राइवर का कोर ऐरिया से बाहर की ओर जिप्सी को मोडने पर मजबूर कर दिया, लेकिन जिसकी चाहत में गए वो न देख पाने का कोई गम न था क्योंकि जो हमने देखा और अनुभव किया वो किसी एडवेंचर से कम न था। गाइड द्वारा बताया गया कि ग्रीष्म ऋतु में पेड़-पौधो के पत्ते झड़ जाते है। तो दूर तक खड़े जानवर हमेें दिखाई देते हैं।
नदियों और नालों का पानी सूखने पर जानवरों को देखने के लिए यहॉ पर वांच टावर के पास तालाबों में विशाल जल राशि को संचित कर रखा जाता है। ताकि जानवरों को आसानी से पानी-पीते देखा जा सकें। यह दृश्य कितना मनमोहक होगा जिस ताल में छोटे-छोटे जानवरों और बड़े हिंसक प्राणी एक साथ पानी पीते मिलेंगे।
जंगल की सैर कर वापस रिसोर्ट जाते समय हम सब ने जिप्सी की लाइट में खरगोश को देखा जब हम पीछे मुड़े तो इतना घना अंधकार था कि पीछे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। रिसोर्ट पहुंचकर सभी लोग रिफेश होकर चाय पीते बाल्कनी में बैठे थे । गुलाबी ठंड हमें अपने आगोश में लेने लगी। उसी समय कर्मचारी द्वारा डिनर का आर्डर लिया गया। कुछ देर बाद सभी को एक भयानक व दर्द भरी चीख सुनाई दी ऐसा लगा कि कोई हिंसक प्राणी किसी छोटे जानवर को पकड़ लिया हो। वो अपने आपको बचाने के लिए मदद मांग रहा हो। जब तक डिनर तैयार हो रहा है तब तक आग तापने का प्लान बनाया गया। साथ में गाना- बजाना हो जाए। जिस स्थान में आग जलाई गई, सभी वहां पहुंच गए। बच्चे डांस करने लगे। इतने में उसी रिसोर्ट में रूके अन्य टूरिस्ट भी आ गए। उनकी फैमली ने भी हमें ज्वाइन कर लिया। उनमें से एक व्यक्ति ने तो कार का म्यूजिक सिस्टम ऑन कर दिया। फिर सभी लोग एक साथ ग्रुप में डांस करने लगें। बच्चों ने खूब मजे किए। जब बच्चों को भूख लगने लगी तब सब लोग भोजन ग्रहण कर अपने-अपने कमरों में जा ही रहे थे कि बड़े-बड़े पेड़ंो से ओस की बंूदेंे एक-एक कर ऐसे टपक रही थी मानो पानी गिर रहा हो। इतनी ओस चारों ओर गिर रही थी जिस जगह हम बैठे थे वो भी गिली हो चुकी थी। हमारे पास रूम में जाने के सिवाय कोई भी चारा नहीं था।
अब प्रात:काल के उस नयनाभिराम दृश्य को देखकर मन फिर तरोताजा हो गया। रात्रि समाप्त हो चुकी थी। लगा अंधकार एक कर्तव्यनिष्ठ प्रहरी के सदृश्य रात्रि में इस संसार की रक्षा कर प्रात: होते ही लुप्त हो गया हो, मानो कोई सेवक ने अपनी ड्यूटी पूरी कर ली हो। प्रात: होते ही पक्षियों की चहचहाहट से शांति भंग हो गई। नीला आकाश अंधकार के हट जाने के कारण निर्मल व स्वच्छ हो गया है। प्रकाश की स्वर्णिम रेखाएं आकाश को नवयौवना की तरह श्रृंगारित करती नजर आने लगी। इन सबको छोड़कर आने का मन नहीं कर रहा था, लेकिन दूसरे दिन की छुट्टी ऐसे ही एक छोटे लेकिन बेहद खूबसूरत सफर के लिए सुरक्षित थी, सो हम वहां से निकल पड़े।
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