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गुरुदत्त और वहीदा रहमान की जोड़ी ने दी हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में

नयी दिल्ली. गुरुदत्त-वहीदा रहमान की जोड़ी ने हिंदी सिनेमा जगत को कई यादगार और शानदार फिल्में दी हैं और दोनों कलाकारों के बीच दोस्ती का यह रिश्ता जीवन भर बना रहा। दोनों महान कलाकारों की मुलाकात कैसे हुई, इसके पीछे एक रोचक कहानी है और यह सब एक भैंस से शुरू हुआ। दरअसल, गुरुदत्त 1955 में फिल्म से संबंधित किसी काम के सिलसिले में हैदराबाद आए थे। उसी दौरान उनकी कार एक भैंस से टकरा गयी और कुछ दिन और हैदराबाद में रुकना पड़ा। इसी दौरान उनकी मुलाकात वहीदा रहमान से हुई और फिर जो हुआ वह सिनेमाई इतिहास है। जानी-मानी अभिनेत्री वहीदा रहमान को भारतीय सिनेमा में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए इस वर्ष के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की मंगलवार को घोषणा की गयी। गुरुदत्त और वहीदा रहमान की जोड़ी ने 'प्यासा' (1957), 'कागज़ के फूल' (1959) और 'साहब बीबी और गुलाम' (1962) जैसी सुपरहिट फिल्मों में एक साथ काम किया। सत्य सरन की पुस्तक 'टेन इयर्स विद गुरुदत्त' में पटकथा लेखक अबरार अल्वी ने दोनों की मुलाकात का किस्सा साझा किया है। अबरार अल्वी ने गुरुदत्त और वहीदा रहमान की मुलाकात को याद करते हुए कहा,  उस भैंस को धन्यवाद दिया जाना चाहिए, जिसके कारण हमनें वहीदा रहमान को फिल्म के लिए साइन किया। 'वहीदा रहमान, उस समय एक उभरती हुईं नर्तकी थी और उन्होंने अभी-अभी दक्षिण में अपने फिल्म करियर की शुरुआत की थी और गुरुदत्त 'आर पार' (1954) और 'मिस्टर एंड मिसेज '55' (1955) की सूची में एक और हिट जोड़ने के लिए उत्सुक थे। तमिल हिट 'मिसिअम्मा' (1955) का हिंदी में रीमेक बनाने की तलाश में, गुरुदत्त ने अल्वी और उनके प्रोडक्शन कंट्रोलर गुरुस्वामी के साथ एक कार में हैदराबाद की यात्रा करने का फैसला किया था। थके हुए अल्वी ने सड़क पर एक भैंस पर कार चढ़ा दी और क्षतिग्रस्त कार के कारण तीनों को हैदराबाद में अपने प्रवास को कुछ दिनों के लिए बढ़ाना पड़ा। उन्हीं दिनों में से एक दिन, सिकंदराबाद में एक फिल्म वितरक के कार्यालय में बैठे गुरुदत्त का ध्यान एक युवा महिला की ओर गया, जो कार से उतरकर सामने की इमारत में दाखिल हुई। फिल्म वितरक ने गुरुदत्त से कहा, वह एक तेलुगु फिल्म 'रोजुलु मरायी' में नर्तकी हैं, जो अपने डांस नंबर की वजह से सुपरहिट हुई है।  दत्त ने उनसे मिलने में रुचि दिखाई और वहीदा रहमान को कार्यालय में बुलाया गया। सादे कपड़ों और बिना लिपस्टिक के वहीदा रहमान गुरुदत्त से मिलने पहुंचीं और उन्होंने सरलता के साथ गुरुदत्त के सवालों का जवाब दिया। वह उस वर्ष दो तेलुगु फिल्मों रोजुलु मारायी और जयसिम्हा में दिखाई दी थीं। अगले वर्ष, गुरुदत्त ने उन्हें अपनी फिल्म 'सीआईडी' (1956) के जरिए हिंदी दर्शकों से परिचित कराया। इस फिल्म का निर्देशन राज खोसला ने किया था। यह पहली बार था जब रहमान और देव आनंद स्क्रीन पर एक साथ नज़र आये। वहीदा रहमान ने भी गुरुदत्त के साथ अपनी पहली मुलाकात को याद करते हुए एक पुस्तक में कहा, ‘‘जब मैं उनसे पहली बार मिली तो मुझे नहीं लगा कि वह कोई मशहूर और महान निर्देशक हैं, क्योंकि वह बहुत कम बोलते थे। उन्होंने मुझसे कुछ सवाल पूछे और मैंने मान लिया कि वह बस यही जानना चाहते थे कि क्या मैं सही ढंग से उर्दू बोलती हूं। मुलाकात करीब आधे घंटे तक चली और फिर मैं अपने परिवार के साथ मद्रास लौट आई।  वहीदा रहमान ने याद करते हुए बताया कि गुरुदत्त के साथ मुलाकात के करीब तीन महीने बाद उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए बंबई आने के लिए कहा गया था। दिग्गज अभिनेत्री ने कहा,  मैं बहुत खुश थी  क्योंकि मैं हमेशा से हिंदी फिल्मों में काम करना चाहती थी। मैं जून 1955 में गुरु दत्त से उनके प्रसिद्ध सिने बिल्डिंग स्थित कार्यालय में मिली। उन्होंने मुझे एक स्क्रीन टेस्ट दिया और कहा; 'तुम्हारा तीन साल का अनुबंध होगा। '' दोनों ने '12 ओ'क्लॉक' (1958), 'चौदहवीं का चांद' (1960), और 'काला बाजार' (1960) में काम किया।

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