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  शरीर को शक्ति प्रदान करने वाली बला
बला एक बहुत ही लाभकारी औषधि है जो बहुत सारे रोगों में काम आती है।  ऋषियों के अनुसार यह एक उत्तम कोटि का रसायन है  और वात, पित्त, कफ तीनों दोषों का शमन करती है।  शीतल प्रकृति के होते हुए भी यह वात रोग के उपचार  के लिए प्रयुक्त की जाती है।  ऋषि चरक इसको बल्य मानते हंै अर्थात यह बल बर्धक भी है।  
विभिन्न भाषाओं में नाम -संस्कृत- बला। हिन्दी- खिरैटी, वरियारा, वरियारा, खरैटी। मराठी- चिकणा। गुजराती- खरेटी, बलदाना। बंगला- बेडेला। तेलुगू- चिरिबेण्डा, मुत्तबु, अन्तिस। कन्नड़- किसंगी, हेटुतिगिडा। तमिल- पनियार तुट्टी। मलयालम- वेल्लुरुम। इंग्लिश- कण्ट्री मेलो। लैटिन- सिडा कार्डिफोलिया।
 आयुर्वेद  के अनुसार बला मांस-पेशियों की मजबूती के लिए विशेष रूप से उत्तम मानी गयी है। अर्थात मांस धातु का पोषण करती है।  संक्रमण  में भी इसके प्रयोग लाभकारी होता है विशेषकर श्वसन तन्त्र से सम्बन्धित रोगों में यह अच्छा प्रभाव दिखाती है।  एक मत के अनुसार यह स्नायु तन्त्र  पर भी अच्छा प्रभाव करती है।  शरीर को बल प्रदान करने के कारण इसका नाम बला रखा गया है। 
बला जिसे खिरैटी भी कहते हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव भी रखती है अत: यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी क्षमता रखती है।
 बला चार प्रकार की होती है, इसलिए इसे 'बलाचतुष्ट्य' कहते हैं। यूं इसकी और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला, महाबला- ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं।  चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त, बलकारक, कान्तिवद्र्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।
  मुख्यत: इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है। यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा क्षुप होता है, जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे-छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है।

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