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स्वदेशी और स्वावलंबन आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रगति के मूल मंत्र: मोदी

नयी दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को स्वदेशी उत्पादों और स्वावलंबन को प्रोत्साहन देने पर बल दिया और आत्मनिर्भर भारत के लिए इन्हें प्रगति के मूल मंत्र करार दिया। उन्होंने कहा कि देश की समृद्धि, आर्थिक समृद्धि पर निर्भर है तथा स्वदेशी अपनाकर भारत की कला, संस्कृति और सभ्यता को जीवित रख सकते हैं। जैन संत विजय वल्लभ सुरीश्वर की 150वीं जयंती के अवसर पर वीडियो संदेश के माध्यम से मोदी ने उक्त बातें कही। इस अवसर पर उन्होंने विजय वल्लभ सुरीश्वर को समर्पित एक स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन भी किया। संत सुरीश्वर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आज दुनिया युद्ध, आतंक और हिंसा के संकट को अनुभव कर रही है। इस कुचक्र से बाहर निकलने के लिए दुनिया प्रेरणा और प्रोत्साहन की तलाश कर रही है। ऐसे में भारत की पुरातन परंपरा, भारत का दर्शन और आज के भारत का सामर्थ्य विश्व के लिए बड़ी उम्मीद बन रहा है।'' मोदी ने कहा कि संतजन, आचार्य सुरीश्वर महाराज का दिखाया रास्ता और जैन गुरुओं की सीख, इन वैश्विक संकटों का समाधान है। उन्होंने कहा, ‘‘संत सुरीश्वर ने अहिंसा, अनेकांत और अपरिग्रह को जीया और इनके प्रति जन-जन में विश्वास फैलाने का निरंतर प्रयास किया। यह आज भी हम सभी को प्रेरित करता है। शांति और सौहार्द के लिए उनका आग्रह विभाजन की विभीषिका के दौरान भी स्पष्ट रूप से दिखा। भारत विभाजन के कारण संत सुरीश्वर को चतुर्मास का व्रत भी तोड़ना पड़ा था।'' उन्होंने कहा कि संत सुरीश्वर ने अपरिग्रह का जो रास्ता बताया, आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी ने भी उसे अपनाया। प्रधानमंत्री ने सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद करते हुए कहा कि उनकी जयंती 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उनकी स्मृति में बना 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' सिर्फ एक ऊंची प्रतिमा भर नहीं हैं, बल्कि यह एक भारत, श्रेष्ठ भारत का भी सबसे बड़ा प्रतीक है। उन्होंने कहा, ‘‘सरदार साहब ने टुकड़ों में बंटे, रियासतों में बंटे, भारत को जोड़ा था। आचार्य जी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमकर भारत की एकता और अखंडता को, भारत की संस्कृति को सशक्त किया। देश की आजादी के लिए हुए जो आंदोलन हुए उस दौर में भी उन्होंने कोटि-कोटि स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर काम किया।'' संत सुरीश्वर के योगदान को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अतीत में संतों ने समाज कल्याण, मानवसेवा, शिक्षा और जनचेतना की जो समृद्ध परिपाटी विकसित की है, उसका निरंतर विस्तार होता रहे, यह आज देश की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘आज़ादी के अमृतकाल में हम विकसित भारत के निर्माण की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। इसके लिए देश ने पंच प्रणों का संकल्प लिया है। इन पंच प्रणों की सिद्धि में आप संतगणों की भूमिका बहुत ही अग्रणी है। नागरिक कर्तव्यों को कैसे हम सशक्त करें, इसके लिए संतों का मार्गदर्शन हमेशा अहम है।'' प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके साथ-साथ देश ‘‘लोकल के लिए वोकल'' हो और भारत के लोगों के परिश्रम से बने सामान को मान-सम्मान मिले, इसके लिए भी चेतना अभियान बहुत बड़ी राष्ट्रसेवा हैं।

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