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वंदे मातरम् को वह सम्मान एवं स्थान नहीं मिला, जो उसे मिलना चाहिए : भाजपा अध्यक्ष नड्डा

नयी दिल्ली. राज्यसभा में बृहस्पतिवार को सदन के नेता एवं भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने दावा किया कि राष्ट्र गीत वंदे मातरम् को वह सम्मान एवं स्थान नहीं मिला जो उसे मिलना चाहिए तथा देश को संकल्प लेना चाहिए कि इसे वही दर्जा मिले जो राष्ट्र गान या राष्ट्रीय ध्वज को मिला है। राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष होने पर उच्च सदन में हुई चर्चा के अंत में सदन के नेता नड्डा ने कहा कि पिछले दो दिन में 80 से अधिक सदस्यों ने इस चर्चा में भाग लिया, जो बताता है कि यह विषय कितना सम-सामायिक है। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् देश की आत्मा को जगाने का मंत्र है। उन्होंने कहा कि यह गीत आजादी के आंदोलन के दौरान बहुत सी घटनाओं का गवाह रहा है। उन्होंने कहा कि यह गीत मां भारती की आराधाना है। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासक जब देश में अपना राष्ट्र गीत थोपना चाहते थे, उस समय बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम् गीत लिखकर पूरे भारत को जागृत कर दिया। भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि यह गीत रूपी मंत्र इतना कारगर साबित हुआ कि ब्रिटिश शासकों ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया और जो कोई इसे गाता था उसे जेल के सीखचों के पीछे भेज दिया जाता था। उन्होंने कहा कि वी डी सावरकर को जिन आरोपों में दो उम्रकैद की सजा पर काला पानी भेजा गया, उनमें वंदे मातरम् के नारे लगाना शामिल था। उन्होंने कहा कि महर्षि अरविन्द को भी वंदे मातरम् के कारण जेल जाना पड़ा था। उन्होंने कहा कि जब खुदीराम बोस फांसी के फंदे पर चढ़े तो उनके मुख पर अंतिम शब्द वंदे मातरम् ही थे। नड्डा ने कांग्रेस के जयराम रमेश द्वारा चर्चा में भाग लेते समय लगाये गये इस आरोप का जिक्र किया कि इस चर्चा का एक ही मकसद है, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करना। सदन के नेता ने कहा, ‘‘हमारा उद्देश्य भारत के पूर्व प्रधानमंत्री को बदनाम करना नहीं है, पर हमारा मकसद भारत के इतिहास के तथ्यों को सही प्रकार से रखने का है।'' उन्होंने याद दिलाया कि जब भी कोई घटना होती है तो जिम्मेदार सरदार ही होता है। उन्होंने कहा कि सरकार और कांग्रेस के सरदार जवाहरलाल नेहरू ही थे। उन्होंने कहा कि जब खुशी हो तो आप जिम्मेदारी लेते हैं और यदि कुछ गलत हो तो आप जिम्मेदारी न लेते हुए अन्य लोगों को जिम्मेदार बताने लगते हैं। नड्डा ने कहा, ‘‘जब आपको (कांग्रेस को) सही लगता है तो आप नेहरूवादी दौर की बात करने लगते हैं और जब आपको उचित नहीं लगता तो आप नेताजी सुभाष चंद्र बोस, गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर को ले आते हैं।'' उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् को जो सम्मान एवं स्थान मिलना चाहिए था, वह उसे नहीं मिला और इसके लिए तत्कालीन शासक जिम्मेदार हैं। सदन के नेता के अनुसार नेहरू ने उर्दू के लेखक सरदार जाफरी को लिखे एक पत्र में वंदे मातरम् की भाषा और उसके पीछे की परिकल्पना की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि 1937 में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में वंदे मातरम् के केवल दो अंतरों को गाने का निर्णय किया गया जबकि आयोजकों को किसी अन्य गाने का परामर्श दिया गया। उन्होंने कहा कि वंदेमातरम् को उचित सम्मान एवं स्थान नहीं दिये जाने का यह सबसे बड़ा प्रमाण है। भाजपा प्रमुख ने कहा कि राष्ट्रीय सम्मान अनादर निषेघ कानून 1971 में इस बात के लिए जुर्माने का कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि कोई यदि राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम् को नहीं गाता है या उसका असम्मान करता है। नड्डा ने कहा कि वंदे मातरम् को वही दर्जा मिलना चाहिए जो भारतीय संविधान में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्र गान को मिला हुआ है और ऐसा किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘यह देश समझौते करने से नहीं चलता। यह हमारी विचारधारा है। यह बिना शर्त राष्ट्रीय भावनाओं को ध्यान में रखकर संचालित होती है। इसलिए वंदे मातरम् गीत राष्ट्रवाद से जुड़ा है और व्यक्ति को राष्ट्रवाद को सामने रखकर आगे बढ़ना चाहिए'' नड्डा ने कहा कि संविधान सभा में राष्ट्रीय चिह्न को तय करने के लिए तो एक समिति बनायी गयी, किंतु राष्ट्र गान को बिना किसी चर्चा के अपना लिया गया।

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