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 वेदादिक ग्रन्थ कहते हैं कि भगवान से यह संसार निकला है, तो भगवान ने यह संसार दुःखमय क्यों बनाया? (समाधान, भाग - 1)
 • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 402

(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जायेगा। कृपया आप सभी नियमित रूप से इन भागों का पठन एवं मनन कीजियेगा...)

(भाग - 1)

...भगवान् की परिभाषा पूछा भृगु ने अपने पिता ब्रह्मज्ञानी वरुण से;

भृगुर्वैः वारुणिः वरुणं पितरमुपससार अधीहि भगवो ब्रह्म।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)

पिताजी! ब्रह्म क्या होता है? भगवान् किसे कहते हैं? क्या परिभाषा है? तो उन्होंने कहा;

यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्म।।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)

जिससे संसार पैदा हो, जिससे संसार की रक्षा हो, जिसमें संसार का लय हो उसका नाम ब्रह्म, भगवान्, परमात्मा।

'पिताजी! किससे ये संसार पैदा होता है? मैं उसका परिचय जानना चाहता हूँ।' तो उन्होंने कहा - 'बेटा! ये तो साधना करना पड़ेगा। ऐसे ही मेरे बोलने से तुमको बोध नहीं होगा।' गये, साधना किया, लौट कर आये। 'पिताजी! हम समझ गये।' 'क्या समझ गये?'

अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्। अन्नाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। अन्नेन जातानि जीवन्ति। अन्नं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-2)

अन्न; ये गेहूँ, चावल, आटा, दाल जो आप लोग खाते हैं, ये ब्रह्म है। इसी से शरीर बनता है। फिर एक शरीर से दूसरा शरीर पैदा होता है। तो वरुण हँसे, उन्होंने कहा, नहीं बेटा! तुम नहीं समझे, जाओ फिर साधना करो। फिर गये। लौट कर आये। उन्होंने कहा पिताजी अब समझ गये। क्या समझ गये?

प्राणो ब्रह्मेति व्यजानात्। प्राणाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते।प्राणेन जातानि जीवन्ति। प्राणं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-3)

प्राण ब्रह्मा है। वायु। हम लोग साँस लेते हैं न। नहीं समझे। फिर जाओ।

मनो ब्रह्मेति व्यजानात्।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-4)

मन, ये ब्रह्म है। नहीं समझे फिर जाओ।

विज्ञानं ब्रह्मेति व्यजानात्। विज्ञानाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-5)

आत्मा ब्रह्म है। आत्मा। ये जीव, 'मैं'। नहीं समझे अभी। जीव ब्रह्म नहीं हुआ करता। ये तो ब्रह्म का अंश है, शक्ति है। फिर गये साधना किया। अब की लौट कर आये तो उन्होंने कहा अब समझ में आ गया।

आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनंदोद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनंदेन जातानि जीवन्ति। आनंदं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।
(तैत्तिरीयोपनिषद 3-6)

आनन्द ब्रह्म है। हाँ बेटा! अब समझे। आनन्द। आप लोगों ने भगवान् का एक नाम सुना होगा सच्चिदानन्द। सत् चित् आनन्द। तो चाहे सच्चिदानन्द कहो और चाहे चिदानन्द कहो। सत् को छोड़ दो। सत् का लय चित् में होता है और सत् चित् का लय आनन्द में होता है। तो चाहे केवल आनन्द कह दो, तो उसका मतलब सत् चित् उसमें है। 

तो भगवान् का एक नाम है - आनन्द। और चित् माने ज्ञान स्वरूप, सत् माने नित्य ये तीन बाते हैं भगवान् में। नित्य है भगवान् , सर्वज्ञ है भगवान् और आनन्द स्वरूप है। आनन्द रूप है। उसमें आनन्द है ऐसा नहीं। वो आनन्द है। अनलिमिटेड आनन्द।
(शेष प्रवचन कल अगले भाग में प्रकाशित होगा)

• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4

★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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