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 संसारी कामना सर्वनाश कर देगी, भगवदीय कामना उद्धार करेगी
-जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की नि:सृत प्रवचन श्रृंखला

 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने वर्ष 1990 में अपनी जन्मस्थली भक्तिधाम मनगढ़ (उ.प्र.) में श्री नारद मुनि द्वारा प्रगटित  नारद भक्ति सूत्र  पर 11-दिवसीय प्रवचन दिया था। नारद भक्ति सूत्र अथवा दर्शन, भक्ति-तत्व की सरलतम रुप में व्याख्या करने वाला 84 सूत्रों का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तथा भक्ति-साहित्यों में अग्रगण्य स्थान रखती है। श्री कृपालु महाप्रभु जी ने इसी ग्रन्थ के 84 सूत्रों की विशद व्याख्या कर सरलतम को भी और अधिक सरल रुप प्रदान कर प्रेमपिपासु जीवों को आत्मिक-कल्याण का मजबूत आधार दिया था। इसी प्रवचन श्रृंखला में कामना-तत्व पर कही गई उनकी कुछ वाणियां यहां दी जा रही हैं। सुधि पाठकजनों के लाभ की अपेक्षा है :::::::
 
(उनकी वाणियों का संकलन यहां से पढ़ें....)
 
(1) हर ग्रन्थ कामनाओं के त्याग करने का आदेश देता है। ये कामनायें हमने क्यों बनाई है? इसका रीजन है अज्ञान। अज्ञान यह कि हमने अपने आपको देह मान लिया है। इसलिये देह के सुख के लिये कामनायें बनने लगीं।
 
(2) जिस वस्तु में हम आनंद की कल्पना करते हैं, उसमें हमारा अटैचमेन्ट हो जाता है।
 
(3) अंधकार और प्रकाश में जितना अन्तर है, उतना ही विरोध कामनाओं और भक्ति में है।
 
(4) संसारी कामनाओं का कारण है अज्ञान, अज्ञान का कारण है माया और माया का कारण है भगवत-बहिर्मुखता।
 
(5) शरीर को ठीक रखने के लिये प्रकृति की और आत्मा को ठीक रखने के लिये आवश्यकता है भगवान की। हम संसार का उपयोग करने के स्थान पर उसका उपभोग करते हैं, किन्तु भगवान को पाने का प्रयत्न नहीं करते।
 
(6) स्वामी की सेवा चाहना कामना नहीं है। जीव भगवान का नित्य दास है अत: यह उसकी नेचुरैलिटी है, फिर हम स्वामी के सुख के लिये स्वामी की सेवा चाहते हैं, अपने सुख के लिये नहीं।
 
(7) भगवान सम्बन्धी कामना से हमारा संसार निवृत्त होगा, जबकि संसार सम्बन्धी कामना हमारा सर्वनाश करेगी।
 
(प्रवचनकर्ता- जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)

सन्दर्भ -  नारद भक्ति दर्शन प्रवचन पुस्तक
सर्वाधिकार सुरक्षित -राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
 
 

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