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 जगद्गुरु कृपालु महाप्रभु प्रदत्त दिव्योपहार 'भक्ति-मन्दिर' की आज है 15 वीं वर्षगाँठ
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 112

जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त दिव्य विश्व-प्रेमोपहार
(श्री भक्ति-मन्दिर, भक्तिधाम मनगढ़, उत्तर-प्रदेश)

सनातन वैदिक धर्म के अनुसार, यद्यपि भगवान् सर्वव्यापक है तथापि हम साधारण मायिक मनुष्यों को उनका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता किन्तु मंदिरों एवं विग्रहों में श्री सच्चिदानंदघन प्रभु की उपस्थिति में हमारा विश्वास हो ही जाता है। इसी कारण जीवों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ और वास्तविक सिद्धांत के प्रचार हेतु रसिकाचार्यों ने ऐसे भव्य मंदिरों की स्थापना की है। बस इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण जगत में भक्ति तत्व को प्रकाशित करने के लिए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कुछ दिव्योपहार विश्व को समर्पित किये हैं। इनमें से एक है, उनकी जन्मभूमि पर स्थापित श्री भक्ति मंदिर एवं भक्ति भवन !! इनमें से 'भक्ति-मन्दिर' का उद्घाटन आज ही के दिन, अर्थात धनतेरस को वर्ष 2005 में हुआ था। आज इसकी 15 वीं वर्षगाँठ है। प्रस्तुत है इस दिव्योपहार के संबंध में कुछ विशेष बातें :::::::

-- भक्ति मंदिर, श्री भक्तिधाम मनगढ़

- शिलान्यास समारोह : 26 अक्टूबर 1996
- कलश स्थापना : 14 अगस्त 2005
-उद्घाटन  समारोह : 16-17 नवम्बर 2005
- प्रमुख आकर्षण : भूतल पर श्री राधाकृष्ण एवं आठ दिशाओं में अष्ट महासखियों के विग्रह, जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज एवं उनके पूज्यनीय माता-पिता जी के विग्रह। प्रथम तल में श्री सीताराम तथा श्री हनुमान जी के विग्रह, साथ ही श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण-बलराम जी के विग्रह। मंदिर के दोनों ओर बने स्मारकों में एक ओर श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाओं की झाँकी है तो दूसरी ओर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन की प्रमुख घटनाओं की झाँकी है।

-- भक्ति-भवन एवं 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक

भक्ति-भवन के बाईं ओर एक विशाल साधना-हॉल, जिसे 'भक्ति-भवन' के नाम से जानते हैं, स्थित है। इसकी विशेषता यह है कि यह बिना पिल्लरों पर खड़ा है और 15000 साधक-साधिकाएँ एक साथ बैठकर यहाँ साधना कर सकते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 2012 में हुई थी। भक्ति-मंदिर के ठीक सामने ही 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी' का 'स्मारक-मंदिर' बन रहा है, जिसे विश्व 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक मंदिर के नाम से जानेगा। इसका उद्घाटन अगले वर्ष 2021 में मार्च महीने में होने की संभावना है।

धन्यातिधन्य है मनगढ़ भूमि ! जिसे गुरुदेव ने अपनी लीलास्थली बनाया। केवल 9 वर्षों में यहाँ इस प्रकार के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो गया। मंदिर की भव्यता, शिल्पकला तथा पच्चीकारी के काम को देखकर दर्शनार्थी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। नि:संदेह यह किसी अलौकिक शक्ति का ही कार्य है। अन्यथा इस प्रकार के भव्य मंदिर का निर्माण छोटे से ग्राम में इतने कम समय में असंभव ही है।

इस भक्तिधाम में भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है। एक ओर तीर्थराज प्रयाग परम पावनी गंगा के जल से तो दूसरी ओर श्रीराम जी की लीलास्थली अयोध्या नगरी सरयू के पवित्र जल से प्रक्षालित करके इस मनगढ़ धाम की महिमा व पवित्रता को द्विगुणित करती रहती है। यहाँ का यह भक्ति मन्दिर कलियुग में दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से संतप्त जीवों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक केंद्र है। गुलाबी सफ़ेद पत्थर से निर्मित भक्ति मंदिर में काले ग्रेनाइट के खम्भे बनाये गए हैं। मंदिर की दीवारों पर बहुमूल्यवान पत्थर से श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'भक्ति-शतक' के सौ दोहे लिखे गए हैं, इस ग्रन्थ का एक एक दोहा इतना मार्मिक है कि इस ग्रन्थ रूपी मानसरोवर में अवगाहन करने वाला बरबस प्रेमरस में सराबोर हो जाता है। इसके अलावा 'प्रेम रस मदिरा' के कुछ पद भी अंकित किये गए हैं। यह भक्ति मंदिर श्रीराधाकृष्ण एवं श्री कृपालु जी महाराज का साक्षात् स्वरुप है।

आप सभी 'भक्ति-मन्दिर' की 15 वीं वर्षगाँठ तथा धनतेरस पर्व की अनंत अनंत शुभकामनायें..

00 सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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