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 भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण ने किस पीढ़ी में जन्म लिया
भारतीय इतिहास अति प्राचीन है। भगवान श्री राम की पीढ़ी 65वीं है जबकि कृष्ण की 94वीं है। कृत युग से द्वापर के अन्त तक की वंशावली यहाँ दी जा रही है।  भारत के प्राचीन सप्तर्षि पंचांग के अनुसार यह कालक्रम 6676 ईपू से आरम्भ होता है।
 पुराणों में उपलब्ध वंशावली
 उपलब्ध वंशावली मनु (प्रथम मानव) से आरम्भ होती हैं और भगवान कृष्ण की पीढ़ी पर समाप्त होती है। पूरी वंशावली जो पुराणों मे उपलब्ध है, नन्द वंश तक की ही है।
 अयोध्याकुल इस प्रकार है
मनु , इक्ष्वाकु , विकुक्षि-शशाद ,कुकुत्स्थ ,अनेनस, पृथु , विष्टराश्व, आद्र्र,  युवनाश्व, श्रावस्त, बृहदश्व, कुवलाश्व, दृढाश्व, प्रमोद,  हरयश्व, निकुम्भ , संहताश्व, अकृशाश्व, प्रसेनजित् , युवनाश्व 2 , मान्धातृ, पुरुकुत्स,  त्रसदस्यु ,  सम्भूत, अनरण्य, त्रसदश्व , हरयाश्व 2,  वसुमत , त्रिधनवन्,  त्रय्यारुण ,सत्यव्रत,,हरिश्चन्द्र, रोहित , हरित , विजय , रुरुक,  वृक, बाहु, सगर ,असमञ्जस् ,अंशुमन्त् , दिलीप 1 , भगीरथ ,श्रुत ,नाभाग ,अम्बरीश, सिन्धुद्वीप ,अयुतायुस् ,ऋतुपर्ण ,सर्वकाम ,सुदास, मित्रसह, अश्मक, मूलक, शतरथ , ऐडविड,  विश्वसह 1 ,दिलीप 2 ,दीर्घबाहु ,रघु ,अज, दशरथ, राम, लव-कुश, अतिथि, निषध , नल ,नभस् ,पुण्डरीक , क्षेमधन्वन् ,देवानीक ,अहीनगु, पारिपात्र ,बल , उक्थ ,वज्रनाभ ,शङ्खन् , व्युषिताश्व , विश्वसह 2 , हिरण्याभ ,पुष्य , ध्रुवसन्धि,सुदर्शन , अग्निवर्ण ,शीघ्र ,मरु, प्रसुश्रुत ,सुसन्धि ,अमर्ष , विश्रुतवन्त्, बृहद्बल , बृहत्क्षय। 
 पौरवकुल इस प्रकार है
 मनु , इला, पुरुरवस्, आयु , नहुष ,ययाति ,पूरु , जनमेजय , प्राचीन्वन्त् ,प्रवीर, मनस्यु, अभयद , सुधन्वन् , बहुगव ,संयति, अहंयाति, रौद्राश्व ,ऋचेयु , मतिनार, तंसु। 
 यादवकुल इस प्रकार है
मनु , इला , पुरुरवस् ,आय, नहुष ,ययाति ,यदु ,क्रोष्टु , वृजिनिवन्त् , स्वाहि , रुशद्गु , चित्ररथ ,शशबिन्दु , पृथुश्रवस् , अन्तर , सुयज्ञ ,उशनस् ,शिनेयु , मरुत्त ,कम्बलबर्हिस् ,रुक्मकवच ,परावृत् , ज्यामघ , विदर्भ , क्रथभीम ,कुन्ति , धृष्ट , निर्वृति , विदूरथ ,दशार्ह ,व्योमन् , जीमूत , विकृति , भीमरथ, रथवर, दशरथ ,एकादशरथ, शकुनि , करम्भ ,देवरात, देवक्षत्र, देवन , मधु , पुरुवश , पुरुद्वन्त ,जन्तु,  सत्वन्त् , भीम, अन्धक, कुकुर , वृष्णि ,कपोतरोमन , विलोमन् ,नल , अभिजित् ,पुनर्वसु ,उग्रसेन ,कंस , ,कृष्ण , साम्ब। 
 श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों चन्द्रवंशी थे 
 समय के साथ श्रीकृष्ण यदुवंशी बने। वहीं अर्जुन पुरुवंशी हुए। बाद में कौरव और पांडव दोनों भरतवंशी या कुरुवंशी कहलाए। कथाओं के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र ऋषि अत्री और सती अनसूया से चंद्र जन्मे। इसके बाद देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा के मेल से बुध पैदा हुए। बुध और इला से ही पुत्र पुरुरवा का जन्म हुआ। इसके बाद पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी के विवाह से छह पुत्रों का जन्म हुआ। जिनमें आयु नाम के पुत्र से नहुष और नहुष के बेटे ययाति हुए। ययाति के देवयानी और शर्मिष्ट से मिलन से क्रमश: यदु और पुरु जन्मे। इसी यदु और पुरुवंश में श्रीकृष्ण और अर्जुन पैदा हुए।
 श्री कृष्ण चंद्रवंशी या यदुवंशी?
  श्रीकृष्ण जी का जन्म चन्द्रवंश में हुआ। इस वंश में सातवीं पीढ़ी में राजा यदु हुए थे। यदु की 49वीं पीढ़ी में कृष्णजी हुए। यदु की पीढ़ी में होने के कारण इनको यदुवंशी बोला गया।   भाटी, चुडसमा, जाडेजा, जादौन, जादव और तवणी को आज कृष्ण का ही वंशज माना जाता है।  कहा जाता है कि कृष्णजी का छत्र और सिंहासन आज भी जैसलमेर के भाटी राजपरिवार के संग्रहालय में रखा है। उन्हें भी श्रीकृष्ण का वंशज कहा जाता है।   मत्स्य पुराण के श्लोक 14 से 73 में वर्णित है- ऋषियों! (अब) आप लोग राजर्षि क्रोष्टु के उस उत्तम बल-पौरुष से सम्पन्न वंश का वर्णन सुनिये, जिस वंश में वृष्णि वंशावतंस भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) अवतीर्ण हुए थे।
 मत्स्य पुराण (64-73) के अनुसार -वसुदेव-देवकी
 बुद्धिमानों में श्रेष्ठ राजन! पुनर्वसु के आहुक नामक पुत्र और आहुकी नाम की कन्या- ये जुड़वीं संतान पैदा हुई। इनमें आहुक अजेय और लोकप्रसिद्ध था। 9 उन आहुक के प्रति विद्वान् लोग इन श्लोकों को गाया करते हैं- 'राजा आहुक के पास दस हज़ार ऐसे रथ रहते थे, जिनमें सुदृढ़ उपासंग (कूबर) एवं अनुकर्ष (धूरे) लगे रहते थे, जिन पर ध्वजाएँ फहराती रहती थीं, जो कवच से सुसज्जित रहते थे तथा जिनसे मेघ की घरघराहट के सदृश शब्द निकलते थे। उस भोजवंश में ऐसा कोई राजा नहीं पैदा हुआ जो असत्यवादी, निस्तेज, यज्ञविमुख, सहस्त्रों की दक्षिणा देने में असमर्थ, अपवित्र और मूर्ख हो।'

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