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  श्रीकृष्ण की क्रीडास्थली महावन
महावन नामक स्थान जि़ला मथुरा (उप्र) में मथुरा के समीप, यमुना के दूसरे तट पर स्थित अति प्राचीन स्थान है जिसे बालकृष्ण की क्रीड़ास्थली माना जाता है। यहां अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं जो अधिक पुराने नहीं हैं। समस्त वनों से आयतन में बड़ा होने के कारण इसे बृहद्वन भी कहा गया है। इसकों महावन, गोकुल या वृहद्वन भी कहते हैं। गोलोक से यह गोकुल अभिन्न है। ब्रज के चौरासी वनों में महावन मुख्य था।
महावन मथुरा-सादाबाद सड़क पर मथुरा से 11 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह एक प्राचीन स्थान है। महावन नाम ही इस बात का द्योतक है कि यहां पर पहले सघन वन था। मुग़ल काल में सन 1634 ई. में सम्राट शाहजहां ने इसी वन में चार शेरों का शिकार किया था। सन 1018 ई. में महमूद गज़ऩवी ने महावन पर आक्रमण कर इसको नष्ट भ्रष्ट किया था। इस दुर्घटना के उपरान्त यह अपने पुराने वैभव को प्राप्त नहीं कर सका।
 मिनहाज नामक इतिहासकार ने इस स्थान को शाही सेना के ठहरने का स्थान बताया है।  सन 1234 ई. में सुल्तान अल्तमश ने कालिन्जर की ओर जो सेना भेजी थी वह यहां ठहरी थी।  सन 1526 ई. में बाबर ने भी इस स्थान के महत्व को स्वीकार किया था। अकबर के शासनकाल में यह आगरा सरकार के अन्तर्गत 33 महलों में से एक महल था। सन 1803 ई. में यह अलीगढ़ जि़ले का एक भाग था।  सन 1832 इ. में यह फिर मथुरा जि़ले में मिला दिया गया। अंग्रेजी शासन में यहां तहसील थी।
 सन 1910 ई. में तहसील मथुरा को स्थानांतरित कर दी गई। बौद्धकाल में भी एक महत्व की जगह रही होगी। फ़ाह्यान नामक चीनी यात्री ने जिन मठों का वर्णन लिखा है उनमें से कुछ मठ यहां भी रहे होंगे क्योंकि उसने लिखा है कि यमुना नदी के दोनों ओर बौद्ध मठ बने हुए थे। बहुत से इतिहासकारों द्वारा यह नगर एरियन और प्लिनी द्वारा वर्णित मेथोरा और क्लीसोबोरा है।
  महावन में प्राचीन दुर्ग की ऊंची भूमि अब भी देखने को मिलती है जिससे ज्ञात होता है कि यह कुछ तो प्राकृतिक और कुछ कृत्रिम था इस दुर्ग के सम्बन्ध में कहा जाता है कि इसको मेवाड़ के राजा कतीरा ने निर्मित किया था। मुग़ल शासक अकबर महान, जहांगीर, शाहजहां आदि शासकों ने भी पुष्टि सम्प्रदाय के गोस्वामियों से प्रभावित होकर इस क्षेत्र में पशु-वध की निषेधाज्ञाएं प्रसारित की थी। 
  महावन को औरंगज़ेब के समय में उसकी धर्मांध नीति का शिकार बनना पड़ा था। इसके बाद 1757 ई. में अफगान अहमदशाह अब्दाली ने जब मथुरा पर आक्रमण किया तो उसने महावन में सेना का शिविर बनाया। वह यहां ठहर कर गोकुल को नष्ट करना चाहता था। किंतु महावन के चार हजार नागा सन्यासियों ने उसकी सेना के 2000 सिपाहियों को मार डाला और स्वयं भी वीरगति को प्राप्त हुए। गोकुल पर होने वाले आक्रमण का इस प्रकार निराकरण हुआ और अब्दाली ने अपनी फ़ौज वापस बुला ली। इसके पश्चात महावन के शिविर में  हैजा के प्रकोप से अब्दाली के अनेक सिपाही मर गए। इसलिए वह शीघ्र दिल्ली लौट गया किंतु जाते-जाते भी उसनेे मथुरा, वृन्दावन आदि स्थानों पर जो लूट मचाई और रक्तपात किया। 
 

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