श्रीराम और श्रीकृष्ण में भेद मानना महान अपराध है, जानिये कैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण दो अलग नहीं, बल्कि एक ही तत्व हैं!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 247
(भूमिका - राम और कृष्ण में भेद मानना महान अपराध है। इस अपराध से बचने के लिये राम और कृष्ण तत्व की एकता के संबंध में पक्का तत्वज्ञान होना परमावश्यक है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस निम्नांकित प्रवचन में इसी अद्वितीय-तत्व की गूढ़ता पर प्रकाश डाल रहे हैं....)
राम और कृष्ण ये दो तत्व नहीं हैं। एक तत्व हैं। यह बात हमारे बहुत से साधु भाइयों को भी नहीं पता है। वो कहते हैं भाई ऐसा है कि सब अपने-अपने इष्ट को नमन करते हैं। हाँ। तो हमारा इष्ट तो दूसरा है तो हम राम को नमन कैसे करें, और हम राम वाले हैं तो हम कृष्ण को नमन कैसे करें? इतनी बड़ी जहालत है हमारे देश में। क्यों जी तुमसे बड़ा और भी कोई बुद्धिमान है। ये ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये तो रामावतार में भी आकर के नाक रगड़ रहे हैं। कृष्णावतार में भी। तुम उनसे बड़े बुद्धिमान हो। हाँ। अरे, तुलसीदास जी तो कह रहे हैं;
सीय राम मय सब जग जानी।
करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
दुष्टों को तो पहले प्रणाम किया है तुलसीदास जी ने, सज्जनों को बाद में किया है। और वो कृष्ण को नहीं प्रणाम करेंगे इतनी भूल। अच्छा ये देखिये रामायण से बताते हैं आपको। अध्यात्म रामायण;
मायातीतं माधवमाद्यं जगदादिम्।
अध्यात्म रामायण में राम को कहा गया 'माधव'। मायातीत माधव जगत के आदि में रहने वाले आपको नमस्कार है।
मायातीतं माधवमाद्यं जगदादिम्।
फिर उसी अध्यात्म रामायण में और स्पष्ट;
वंदे रामं मरकत वर्णं मथुरेशम्।
मथुरा के अधीश मरकत वर्ण के भगवान राम आपको नमस्कार है। फिर उसी अध्यात्म रामायण में;
वृन्दारण्ये वंदित वृन्दारक वृन्दम्।
वृन्दावन में वृन्दारक वृन्द से वन्द्य राम तुमको नमस्कार है। ये रामायण कह रही है। और तुम उसके भी आगे चले गये। तुलसीदास जी ने लिखा विनय पत्रिका में। सब जगह तो बहुत रोये गाये हैं। मुझसे बड़ा कोई पतित नहीं, महाराज कृपा करो, दया करो। तो विनय है विनय पत्रिका में। लेकिन एक जगह चैलेन्ज किया है माया को;
अब मैं तोहिं जान्यो संसार।
बाँधि न सकइ मोहिं हरि के बल प्रकट कपट आगार।
ऐ माया ! तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, हरि का बल है मेरे पास। तो कौन से हरि का बल है भाई, तो;
सहित सहाय तहाँ वसु अब, जेहि हृदय न नन्दकुमार।
माया! जिसके हृदय में नन्दकुमार न हों वहाँ जाकर अपना तू डेरा जमा। हमारे यहाँ दाल नहीं गलेगी। हमारे हृदय में नन्दकुमार रहते हैं। हाँ दशरथकुमार नहीं कहा, नन्दकुमार!!
विरद गरीब निवाज राम को,
जड़ पतंग पाण्डव सुदामा को।
हमारे राम गरीब निवाज हैं। देखो सुदामा का उद्धार किया, पाण्डवों का किया, यमलार्जुन का किया। ये विनय पत्रिका कह रही है, आप उनसे आगे हो गये। हाँ। हमारे बहुत से भाई रामोपासक ऐसे हैं जो, भाई कुछ भी हो, वो तो अपना इष्टदेव है अपना । हाँ। क्यों जी आपका बाप पचीस तरह के कपड़े पहनता रहता है। ऑफिस में और कपड़ा, घर में लुंगी लिये घूमता है, बाथरूम में नंगा नहाता है, तो क्या वो बाप बदल जाता है। अरे बाप तो वही है, स्त्री का पति वही है। और फिर राम कृष्ण का तो शरीर का रंग भी नहीं बदला। दोनों नीलाम्बुज हैं, दोनों पीताम्बरधारी हैं। सब चीज एक है। वो साहब मोर पंख? तो क्या राम को मोरपंख लगाना मना है। वो भी लगा सकते हैं मौज में आ जायेगी तो, उनको कोई रोकने वाला है क्या? कि तुमने क्यों मोरपंख लगाया, वो तो जी श्रीकृष्ण के नाम रिजर्वेशन हो गया है उसका, ऐसा तो नहीं है कुछ। हाँ। राम धनुष धारी हैं। तो श्रीकृष्ण धनुष धारी नहीं है। वह भी तो शाङ्गधर हैं। उनके धनुष का नाम शाङ्ग है। अरे क्या बकवास की बात करते हो। सब रामावतार वाले, राम के चार स्वरूप, वाल्मीकि रामायण कहती है;
ततः पद्म पलाशाक्षः कृत्वात्मानं चतुर्विधम्। (वा. रामा.)
लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ये कोई महापुरुष नहीं हैं। ये सब राम हैं। राम अपने आप चार बन गये, और वही चारों फिर कृष्णावतार में श्री कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न - ये चतुर्व्यूह बन करके प्रकट हुये। और वही ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रामावतार में स्तुति करने गये। वही कृष्णावतार में स्तुति करने गये। इसलिये ऐसा नामापराध न कमायें। अगर कोई भोले भाले लोग शास्त्रों वेदों को नहीं पढ़े हैं तो वे हमारी ये प्रार्थना को स्वीकार करें, और थोड़ा भी अन्तर न मानें कि 'दोनों बराबर हैं' - ऐसा नहीं कहना। 'दोनों एक हैं' - ऐसा कहना। बराबर का मतलब तो दो पर्सनैलिटी हो गयी। पर्सनैलिटी दो नहीं हुई। एक ही पर्सनैलिटी के अनंत रूप हैं - 'अनंत नाम रूपाय'।
इस प्रकार भगवान राम को रोकर पुकारो। रोकर पुकारो। खाली ऐसे जो आप लोग मन्दिरों में गा देते हैं;
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला...
ऐसे नहीं। रोकर पुकारो। तुम्हें माँगना है न भीख। प्रेम की भीख, राम दर्शन की भीख, तो भीख माँगने वाला जब भूखा होता है तो किस तरह बुलाता है, और पेट भरा होता है तो, कोई हमको दे दे, दान दे दे ऐसे बोलेगा। जैसे पण्डित लोग जाते हैं न मन्दिरों में, तो श्लोक बोलते हैं;
त्वमेव माता च पिता त्वमेव..
यह क्या लड़ रहे हो। भगवान के आगे आंसू बहाकर प्रार्थना करो, दैन्य भाव युक्त। 'मो सम दीन न' बोलते तो हो और (दीन) बनते नहीं हो अन्दर से। इससे काम नहीं चलेगा। रो कर पुकारना होगा। भगवान को आँसू प्रिय हैं और वह भी निष्काम। संसार की डिमाण्ड न करना। मोक्ष की भी न करना।
तृण सम विषय स्वर्ग अपवर्गा।
तृण सम त्याग दो इनको मन से। ये भुक्ति मुक्ति पिशाचिनी हैं। तो जब रोकर पुकारोगे और राम के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का कीर्तन करोगे, तो अन्तःकरण शुद्ध होगा। जब अंतःकरण शुद्ध होगा तो भगवान कृपा करके स्वरूप शक्ति देंगे। तो स्वरूप शक्ति से इन्द्रिय, मन, बुद्धि दिव्य हो जायेंगे। वो गुरु के द्वारा प्रेम की दीक्षा होगी, तब भगवत् दर्शन होगा। भगवद् साक्षात्कार होगा। तब माया निवृत्ति, त्रिगुण निवृत्ति, त्रिकर्म निवृत्ति, पंच क्लेश निवृत्ति, पंचकोश निवृत्ति, द्वन्द निवृत्ति, जितनी भी बीमारियाँ हैं, सब एक सैकिन्ड में समाप्त। और;
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः। (वेद)
सदा के लिये परमानन्द युक्त होकर भगवान राम के साकेत लोक में निवास करोगे, उनकी सेवा प्राप्त करोगे। इस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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