संडे का एक फ़ैसला
कहानी
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
आज संडे को कहाँ जा रही हो ? शिवी को आलमारी से कपड़े निकालते देख प्रतीति ने पूछा ।
हताशा और गुस्से में सिर हिलाते हुए शिवी ने जवाब दिया , "क्या मॉम , संडे तो एक दिन होता है मजे से घूमने का ।"
वही एक संडे हमारे लिए भी तो होता है न बेटा कि हम अपने बच्चे से दो बातें करें , उसके साथ लंच करें…प्रतीति यही कहना चाहती थी , लेकिन शिवी का तड़ाकेदार जवाब और उपेक्षा भरा चेहरा देखकर उसने कहा , ' हाँ तो कुछ कैम्पस के लिए तैयारी ही कर लो । ढंग की जॉब मिल जाएगी । पूरे दिन अपने फालतू दोस्तों के साथ बिताने से वो तैयारी तो होने से रही । '
शिवी तमककर बोली , ' मॉम, मेरे दोस्त फालतू नहीं हैं और मुझे पता है कैसी तैयारी करनी है ।' पंद्रह मिनट बाद शिवी अपनी गाड़ी उठा कर जा चुकी थी और दरवाजे पर प्रतीति 'कहाँ जा रही, कब तक आएगी ' के अपने सवाल लिए खड़ी रह गई ।
घर से भुनभुनाती निकली शिवी आधे घंटे बाद अपने दोस्तों के साथ खिलखिला रही थी । पूरे दिन अपने दोस्तों के संग हँसी-ठट्ठा करते, बाजार में घूमती रही । इस बीच तीन बार आया माँ का फोन शिवी काट चुकी थी । रात होते-होते यश ने सुझाया, - “'चलो आज बाइक रेसिंग करेंगे । नए शहर के बाहर एक बिल्डिंग बन रही है, वहाँ रात को बहुत कम ट्रैफिक होता है, वहाँ से शुरू करेंगे ।' सारे दोस्तों ने हे..ए…..की टेर लगा दी । शिवी सोच में पड़ गई थी.. ' मॉम को काॅल करके बताऊँ कि नहीं ? पर वह फिर टोकेंगी और हो सकता है तुरंत घर आने को कह दें। उसका मन कल्पनाओं में झूम गया था..बाइक रेस में हर बाइक पर एक कपल । अहा! कितना रोमांचक होगा ।'
अब एक तरफ लगातार माँ का फोन आ रहा था और दूसरी तरफ सारे दोस्त अपनी-अपनी बाइक की तरफ बढ़ रहे थे । मन की सारी उलझनों को एक तरफ झटक कर शिवी उनकी ओर बढ़ ही रही थी कि अचानक सौरभ के पैर से वहीं सोए एक कुत्ते के पिल्ले को पैर लग गया । उसके बाद न जाने कहाँ से आकर उसकी मरियल-सी माँ आक्रामक हो उठी । अपने बच्चे को खतरे में जानकर भौंक-भौंक कर उसने आसमान सिर पर उठा लिया ।
शुभम चिल्लाया - " अबे ! सौरभ…चुपचाप वहीं खड़ा हो जा , वह माँ है यार, अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित होगी ही…वह निश्चिंत हो जाए कि उसके बच्चों को हमसे कोई खतरा नहीं है, फिर वह चुपचाप चली जाएगी । थोड़ी देर बाद सचमुच वह शांत होकर अपने पिल्लों को साथ लिए चली गई । " वह माँ है यार…" ये शब्द शिवी के सिर पर मानो हथौड़े की तरह बजने लगे । वह भी तो माँ है जो सदैव अपनी बेटी को सुरक्षित और आगे बढ़ते देखना चाहती है और इसीलिए रोक-टोक करती है , सावधान रहना सिखाती है कि उसकी बेटी को कोई चोट मत लगे । कहाँ जा रही है , कब तक घर आएगी जैसे प्रश्न जो उसे बेकार लगते थे , आज उसके मायने समझ में आ रहे हैं ।ओह ! वह कितने रूखे ढंग से पेश आई आज माँ के साथ । मालूम है वह अब भी दरवाजे पर चिंतित खड़ी होगी , उसकी राह देखते । अचानक शिवी ने अपने कदम पीछे किए और दोस्तों के साथ रेस लगाने की बात छोड़ कर घर जाने का फैसला कर लिया ।
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