इस अनोखे पेड़ की पत्तियां खाकर तानसेन बन गए संगीत सम्राट.....! जानिए जादुई ट्री के बारे में
संगीत की दुनिया में तानसेन का नाम अजर अमर है। संगीत सम्राट की उपाधि प्राप्त तानसेन को लेकर अनेक किस्से मशहूर हैं। तानसेन के बारे में कहा जाता है कि जब वो अपना राग छेड़ते थे तो मौसम अपने आप बदल जाता था। उनकी गायकी से आसमान में बादल आ जाते और बरसने लगते थे। जब वो अपना राग दीपक गाते थे तो दीप अपने आप जल जाते थे। यही कारण है कि तानसेन को संगीत सम्राट भी कहा जाता है। तानसेन ने शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने में अमूल्य योगदान दिया। तानसेन गायक होने के साथ उच्च कोटि के वादक भी थे। जिन्होंने कई रागों का निर्माण किया।
कहा जाता है कि तानसेन बचपन में बोल नहीं पाते थे। इसके लिए उन्हें इमली के पत्ते खिलाए गए। ऐसा कहा जाता है कि तानसेन की गायकी का राज एक इमली का पेड़ था। इसके बाद तानसेन संगीत की दुनिया का सम्राट बन गए। तानसेन संगीत का इतना रियाज करते थे कि उनकी इस साधना को देखकर उस समय के बादशाह अकबर ने उन्हें अपने नौरत्नों में शामिल किया था। उस दौर में बादशाह अकबर के नौरत्नों में शामिल होना एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।
तानसेन का निधन आगरा में हुआ था। तानसेन की अंतिम अच्छा थी कि जब उनका निधन हो तो उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरु मोहम्मद गौस के मकबरे के पास ही दफनाया जाए। इसके बाद ऐसा ही हुआ और उन्हें वहीं दफनाया गया। जिस जगह पर तानसेन को दफनाया गया था उसी जगह एक इमली का पेड़ उग आया। धीरे-धीरे ये मान्यता हो गई कि जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसका गला सुरीला हो जाएगा।
यही वजह है कि संगीत की साधना करने वाला हर इंसान यहां आता है और पेड़ की पत्तियां अपने साथ ले जाता है। माना जाता है कि ये पेड़ 600 साल पुराना है और दुनिया भर के संगीतकारों के लिए ये पेड़ किसी धरोहर से कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि इन पेड़ों की पत्तियों में मियां तानसेन की रूह बसती है जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाएगा उसकी आवाज सुरीली हो जाएगी।
कहा जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के जाने-माने कलाकार पंडित जसराज जब यहां आए तो इस पेड़ की पत्तियों को खाने से खुद को रोक नहीं पाए। जब वो जाने लगे तो कुछ पत्तियां अपने साथ भी ले गए। संगीत की समझ रखने वाले और इतिहासकार मानते हैं कि जो पेड़ की पत्तियां खाता है उसे तानसेन का आशीर्वाद मिलता है।
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