दुनिया में टीका लगाने की शुरुआत कैसे हुई?
कोरोना से बचाने के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक जल्दी-से-जल्दी टीका विकसित करने में जुटे थे। टीकों की वजह से कई बीमारियों पर नियंत्रण संभव हो सका, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का पहला टीका कब और कैसे तैयार हुआ था?
माना जाता है कि 1975 में बांग्लादेश की तीन साल की रहीमा बानो कुदरती तरीके से हुए वैरिओला वायरस संक्रमण का आखिरी केस थी। दुनिया में स्मॉलपॉक्स से हुई आखिरी ज्ञात मौत 1978 में हुई। मरने वाली मरीज का नाम जेनेट पार्कर था। वो इंग्लैंड की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल में मेडिकल फटॉग्रफर थीं।
हिंदी में इसे चेचक कहते हैं। यह अब सामान्य सी बीमारी है, लेकिन कुछ सदियों पहले यह भीषण महामारी हुआ करती थी। औसतन इससे संक्रमित लोगों में 10 में से तीन मर जाते थे। स्मॉलपॉक्स की शुरुआत कब हुई, इसकी ठोस जानकारी नहीं है। अनुमान है कि 10 हजार ईसापूर्व के आसपास उत्तरपूर्वी अफ्रीका में इसकी शुरुआत हुई. माना जाता है कि शायद वहीं से प्राचीन मिस्र के व्यापारियों के मार्फत ये बीमारी भारत पहुंची और वहां फैली। मिस्र की कुछ पुरानी ममियों के चेहरे पर भी चेचक जैसे निशान मिलते हैं। 1122 ईसा पूर्व के कुछ चीनी साहित्यों और प्राचीन संस्कृत स्रोतों में भी इस बीमारी का जिक्र मिलता है। 5वीं से 7वीं सदी के बीच ये बीमारी यूरोप पहुंची।
स्मॉलपॉक्स बेहद जानलेवा बीमारी थी। 18वीं सदी की शुरुआत में अकेले यूरोप में इसके कारण लगभग चार लाख सालाना मौतें होती थीं। 18वीं सदी आते-आते इंग्लैंड के ग्रामीण हिस्सों में लोगों ने गौर करना शुरू किया कि कुछ खास तरह के लोग स्मॉलपॉक्स के आगे ज्यादा सुरक्षित होते हैं। मसलन, ग्वाले और गाय पालने वाले लोग। हालांकि उन्हें काउपॉक्स नाम की एक बीमारी होती थी, जो स्मॉलपॉक्स जितनी गंभीर नहीं थी। इस बीमारी के कारण जैसे उनके शरीर में स्मॉलपॉक्स के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती थी।
ऐसे में 1774 में जब इंग्लैंड में चेचक महामारी फैली, तो बेंजामिन जेस्टी नाम के एक किसान ने किसी भी कीमत पर अपने परिवार को बचाने की ठानी। इसके लिए उन्होंने एक अनूठा प्रयोग किया। उन्होंने काउपॉक्स से संक्रमित एक गाय के थन के ऊपर से कुछ पस निकाला और एक छोटे चाकू की मदद से अपनी पत्नी और दो बेटों के हाथ पर हल्का चीरा लगाकर उसे वहां डाल दिया। उन तीनों को स्मॉलपॉक्स नहीं हुआ।
उन्हीं दिनों बर्कले में एक डॉक्टर हुआ करते थे, एडवर्ड जेनर। उन्होंने किसानों और ग्वालों से काउपॉक्स से जुड़ी रोगप्रतिरोधक क्षमता पर जानकारियां हासिल की। जेनर को "वैरिओलेशन" के बारे में भी पता था। ये स्मॉलपॉक्स से निपटने के शुरुआती तरीकों में से एक था। "वैरिओला" वायरस के नाम पर इस प्रक्रिया को अपना नाम मिला। इसी वायरस के कारण स्मॉलपॉक्स होता है। जेनर को लगा कि काउपॉक्स के एक्सपोजर को स्मॉलपॉक्स से सुरक्षा के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। अपनी इस थिअरी को जांचने के लिए 1796 में उन्होंने एक प्रयोग किया। उन्होंने काउपॉक्स के एक मरीज के फोड़े से पस लिया। उसे अपने माली के आठ साल के बच्चे जेम्स की त्वचा में डाला। जेम्स कुछ दिन थोड़ा बीमार रहा। जब वो ठीक हो गया, तो जेनर ने उसकी त्वचा में स्मॉलपॉक्स का पस डाला। जेनर कई बार जेम्स को वैरिओला वायरस के संपर्क में लाए, लेकिन उसे स्मॉलपॉक्स नहीं हुआ। इस सफल प्रयोग ने वैक्सीन और टीकाकरण की राह बनाई।
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