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कानपुर में बोले CM भूपेश, यदि भारत रत्न देना ही है, तो सावरकर नहीं,

गणेश शंकर विद्यार्थी को दिया जाए, जिनका जीवन निष्कलंक रहा
कानपुर- महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि देश में आज आजादी के पहले जैसी स्थिति हैं. यहां असहमति का कोई स्थान नहीं है. आप स्वतंत्र रूप से कलम नहीं चला सकते. बोल नहीं सकते. आपको देशद्रोही समझ लिया जाएगा, जेल की सलाखों में डाल दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि यदि देश को बचाना है, तो गांधी के बताए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलना होगा. तभी देश एक रहेगा. सुरक्षित रहेगा. भूपेश बघेल ने आह्वान करते हुए कहा कि विचारधारा कभी नहीं मरती. यह किसी ना किसी माध्यम से चलती रहती है. यह हमारे हृदय में है, केवल अभिव्यक्त करने की जरूरत है. कोई जरूरत नहीं है कि मीडिया में इस अभिव्यक्ति को जगह मिलेगी. आज सोशल मीडिया है. प्रकाशन के लिए बहुत सी सामग्री है. उस दौर में भी जब सुविधाएं नहीं थी, गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे पत्रकारों ने क्रांति की मसालें जलाए रखी.मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि इस देश में दो विचारधाराएं चल रही है. एक विचारधारा वह है, जिससे आज सब लोग भयभीत है. सबसे पहले तो नेता डरे हैं. फिर पत्रकार हैं, जो भयभीत है. पत्रकार सच लिखे तो गाली गलौच शुरू हो जाती है, मारपीट हो जाता है. यह डर ही है कि आज पत्रकार सुरक्षा कानून की बात हो रही है. डाक्टर डरे हुए हैं. डाक्टर सुरक्षा कानून की मांग उठ रही है. आज हर वर्ग डरा हुआ है. हर समाज डरा हुआ है. एक जाति के लोग दूसरी जाति से डरे हैं, एक समाज दूसरे समाज से डरा हुआ है. एक धर्म दूसरे धर्म से डरा हुआ है. गांधी के देश में आज हर जगह डर है. हमारे ऋषि मुनियों ने यही कहा था कि निडर बनना है, निर्भय होना है. हमारे संतों ने कहा कि मौत से डरना नहीं है. उन्होंने कहा कि इसी सत्य को लेकर गुरूनानक, कबीर, महावीर सबने कहा कि डरना नहीं है, निर्भय होकर जीवन यापन करना है. मौत से जिसे डर नहीं वह जीवन भर निर्भय़ होकर चल सकता है. महात्मा गांधी ने भी कोई नया दर्शन नहीं दिया था. ऋषि-मुनियों की परंपराओं को, वेद-पुराणों में दर्ज अहिंसा के रास्ते को ही आगे बढ़ाया. गांधी उस रास्ते पर चले.  दुनिया भर के लोग कहते थे कि जितनी भी क्रांति हुई वह हिंसक तरीके से हुई, लेकिन अहिंसा के रास्ते चलकर देश को न केवल गांधी ने आजादी दिलाई, वह कहते थे कि हिंसक ढंग से यदि देश को आजादी मिलती है, तो ऐसी आजादी मुझे नहीं चाहिए.भूपेश बघेल ने कहा कि देश में आज राष्ट्रवादी होना फैशन हो गया है, जो असहमति जताए, उसे राष्ट्रद्रोही का सर्टिफिकेट मिल जाता है. असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है. असहमति का स्थान हमारे ऋषि मुनियों की परंपरा में रही है. यही हमारे लोकतंत्र का मजबूत आधार है. यदि असहमति को स्थान नहीं दिया जाएगा, तो देश में अराजकता होगी. उन्होंने कहा कि असहमति का सबसे बड़ा उदाहरण गणेश शंकर विद्यार्थी थे. प्रताप का संपादन किया. उनके घर भगत सिंह रहे. वह साम्यवादी विचारधारा के. गणेश शंकर विद्यार्थी कांग्रेसी विचारधारा के रहे, लेकिन एक दूसरे के विचारों को थोपने का काम नहीं किया. यह असहमति का स्थान है. यह भारत की परंपरा है. यह गांधी की परंपरा है. यह हमारे ऋषि मुनियों की परंपरा है. यह हमारा पारंपरिक राष्ट्रवाद है. दूसरी तरफ एक राष्ट्रवाद है, जहां आप असहमत हैं, तो देशद्रोही करार दे दिए जाएंगे.मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र के चुनाव में प्रचार के दौरान मैंने नागपुर जाकर भाषण दिया. मैंने कहा कि आप गांधी को अपनाना चाहते हैं, तो स्वागत है, लेकिन गोडसे की निंदा कीजिए, विचारधारा की निंदा कीजिए. यदि ये नहीं कर सकते, तो ऐसा छद्म राष्ट्रवाद नहीं चलेगा. उन्होंने कहा कि ये लोग सरदार पटेल को भी अपना रहे हैं, गांधी को भी अपना रहे हैं. ये धोखा किसे दे रहे हैं. भूपेश बघेल ने कहा कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि 1911 तक सावरकर क्रांतिकारी था. लेकिन अंग्रेजों से माफी मांगकर 1925 में छूटने के बाद वह देश के विभाजन का बीज बोने वाले के रूप में पहचाना गया. गोडसे सबसे ज्यादा किसी से प्रभावित रहा, तो वह सावरकर ही था. सावरकर अपराधी की तरह पकड़ा गया, तकनीकी कारणों से छूट भी गया, लेकिन यह तथ्य इतिहास में दर्ज है कि गांधी की हत्या के षडयंत्र में वह शामिल था. आज भारत रत्न देने की मांग उठ रही है. यदि भारत रत्न देना ही है, तो गणेश शंकर विद्यार्थी को दिया जाए. इनका जीवन निष्कलंक था. देश के लिए, देश की आजादी के लिए लिखते थे. भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस ने कभी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी. लेकिन सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी. भूपेश बघेल ने कहा कि देश में आज जो लोग राष्ट्रवाद की बातें कर रहे हैं, उनका राष्ट्रवाद हिटलर और मुसोलिनी से प्रभावित है. हमारा राष्ट्रवाद परंपरा से चली आ रही धरोहर है.
 

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