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दूसर पारी

-  (कहिनी)
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे,  दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)

संझौती के बेरा चिरई-चिरगुन मन चिचियात एके संघरा अपन-अपन खोन्दरा डहर लहुटत रिहिन हे । जम्मो कमइया मन घलो दिन भर के कमाई करे के बाद थके-मांदे घर पहुँचे के जल्दी करत रिहिन । जाड़ के बेरा झटकुन  मुंधियार होय के सेतिर सब्बो ल घर जाय के जल्दी लागे रिहिस । मंदिर के घंटी बाजत रहिस अउ आरती के आवाज हर चारों खूंट गूंजत रहिस । जम्मो झन कर्मचारी मन तको अपन घर कोती निकर गे रिहिन हे दास बाबू ल छोड़ के । नगर निगम के ऑफिस म हेडकलर्क दास बाबू के घरवाली मीरा ल मरे दू बछर होवत हे , फेर सुन्ना घर म जाय के अभो ले मन नई लागय । लइका मन अपन गोड़ म खड़े होगे अउ शहर ले बाहिर निकरगें । दास बाबू काम म अपन आप ल ब्यस्त राखथे , ठीक टाइम म ऑफिस आ जाथे अउ सबले पाछू घर जाथे । उहां के चपरासी हर कहिथे चलव न बाबूजी जाबो तब उठथे अपन जगह ले ।
         घर लहुटीस त दू झन लइका मन ओला अगोरत बैठे रिहिन । घर सुन्ना-सुन्ना लागथे कइके ऊपर के घर ल किराया देबर विज्ञापन देहे रहिस ओखरे सेतिर ओमन आय रिहिन ।
       घर ल देखाइस तह ले एडवांस , बिजली बिल जम्मो बात ल गोठिया के हाँ कही दिस । ओ लइका मन पढ़े बर आय रिहिन त तुरते एडवांस तको दे दिन।
      सुन्ना घर मां चिराई चिरगुन तको आ जथे त ओ घर हर बसे सही लागे लगथे फेर  उमन त जीयत जागत लइका रिहिन ।
     दास बाबू ल बोले बताय बर एक ठिन सहारा होगे। अपने घर के लइका सही ओमन के तोरा करय । रवाना खाये हव के नहीं ,बने पढाई करत हें कि नहीं,  अइ सन हे दू चार ठिन गोठ बात के सहारा होगिस। दास बाबू
 तको अब समय म घर लहूटे लागीस । परीया परे भुंया म एक ठन अंकुर के फुटे तको बड़ सुख देथे , अपन लइका बर मेहनत करना मा बाप के जुम्मेदारी समझे जाथे फेर दूसर बर उही काम करे ले ओमन जिनगी भर सुरता राखथे अउ मान  गौन तको करथें। लइका मन दास बाबू बर अब्बड़ मया करय। प्रेम अइसे जिनीस ए तैं हर एक देबे त तोला  दुगुना चौगुना होके मिलही।
          लइका मन फोन मा बाबूजी के तोरा ल लेवत रहिथें अउ कहिथें -”रिटायर होय के बाद हमरे संघरा रहे बर आ जाहु बाबूजी, हमन ल तुंहर स्वास्थ्य के चिंता लागे रहिथे ।”
ले अभी त टाइम हे कइके उमन ल भुलवार देथे फेर अब नौकरी के एक साल बाँचे म दास बाबू घलो फिकिर म परगे रिहिसे। बहू बने सेवा जतन करथे फेर थोरकिन बर आथें त बात-ब्यवहार अलग होथे अउ हरदम बर रहिबे तव अब्बड़ कन बात के धियान राखे बर परथे।
   ओ दिन ऑफिस ले लहुटत खानी ओखर बचपन के मितान श्याम संग भेंट होगे त ओला लेवा के दास बाबू हर अपन घर ले आईस। श्याम ल तभे मीरा के इंतकाल के पता चलिस।”बिन घरनी भूत के डेरा “ केहे जाथे फेर ओहर इहाँ परगट रूप देखत रिहिस। दास बाबू हर रांधय-गढ़य नहीं खाना बनवइया राखे रिहिस ,ओहर अपन मर्जी ले घर के जतना जतन कर देथे दास बाबू ओमा सन्तुष्ट रहिथे। ओहर जादा खिचिर-पिचिर नई करय। श्याम ल चाय बना के पियाइस अउ बचपन के सुरता के नदी म दुनों संगवारी बोहाय लागीन । ओही बीच म किराया म रहइया लइका मन दास बाबू तीर आ के कोनो कुछु माँग के लेगे अउ कोनो दास बाबू बर साग त कोनो दवाई लेके आइन। श्याम हर अचंभा म उमन के बात ब्यवहार ल देखत रिहिस, उंखर जाय ले कहिथे -” बने ए लइका मन तोर सहारा होगे हे ,इही ल कहिथे आम के आम अउ गुठली के दाम ।”
“हव जी, इही बात ल मने मन गुनत रहिथव के रिटायर होय के बाद कइसे करव। लइका मन त अपन घर म आय बर कहत हावय फेर मैं कुछु निर्णय नई ले पावत हव। तैं हर अपन बिचार ला बता”।
“काली तैं हर रात कुन मोर घर मा तोर नेवता हे, तैं आ तब तक मेंहर सोच के बताहूँ ।”
“ले का होही “ कइके उंखर सभा खतम होइस।
.दूसर दिन रात कुन दास बाबू हर भोजन करे श्याम के घर पहुँच गे ओतका टेम श्याम हर घर म नई रिहिस, ओखर बहु हर दरवाजा ल खोलिस अउ ओला बैठक म बइठार के पानी पियाइस ,बने गोठियाइस। ओहर बताइस के श्याम हर अपन दु बछर के नतनीन ल घुमाय बर लेगे हे आवत होही। मोला ओहर खाना बनावन नई देत रिहिस कका त बाबूजी हर ओला भुलवार के लानत हव कइके लेगिस हे। थोरकिन समय बाद दुनो झन आगे, ओकर नतनीन हर चाकलेट अउ कुरकुरे धरे बड़ प्रसन्न दिखत रिहिस अउ अपन मम्मी तीर चल दिस। ऊंखर बोलत बतावत ले बेटा घलो आगे फेर जम्मो झन जुरमिल के बने खाना खाईन। खाना लाय के बाद म श्याम हर बहु ल तको बुलाइस -”आजा बेटा तहूं संगे म खा, अउ कुछु लेना होही त हमन निकाल लेबो। उहाँ सबो झन काम ल बाँट लेवत रिहिन। श्याम हर तको बहु के मदद करय नई तो लइका ल धर के बहु ल मुक्त कर दय। बेटा बहु नतनीन के संग म श्याम हर खुश दिखत रिहिस। दास बाबू समझगे के श्याम हर ओखर प्रश्न के उत्तर दे दे हवय।
       लइका मन के घलो अपन जिनगी रहिथे, अपन शौक ,दिनचर्या रहिथे । बड़े-बुजुर्ग मन ऊंखरेच ले जम्मो आस लगा के राखथे अउ अब्बड़ उम्मीद बना के राखथे अउ ओहर पूरा नई होवय त दुखी होथें के बेटा बहु बने तोरा ल नई करय। दुनो ल अपन-अपन हिस्सा के जुम्मेदारी ल निभाय बर परथे। उंखर तकलीफ ल बुजुर्ग मन ल तको समझे बर परही, अपनेच स्वारथ ल नई देख के उंखरों परिस्थिति ल समझे बर परही तभे लइका मन ल ओमन बोझ नई लागय। वैसनहे लइका मन ल तको ए सोच रखना चाही के माँ-बाप मन उंखर जिनगी के ,घर के रौनक हावय अउ उंखर उपस्थिति हर लइका मन बर वरदान ए, बड़े-बुजुर्ग के रहे ले लइका मन सुसंस्कारी बनथें, परिवार म सुनता रहिथे। लइका मन ल माता पिता के उमर अउ स्वास्थ्य के हिसाब से ब्यवहार करना चाही। दुनो के बीच म संतुलन बनाये ले घर हर चलथे अउ इही प्रेम अउ सुख के आधार ए। दास बाबू के मन के सब्बो दुविधा हर खतम होगे रिहिस अउ उहू जिनगी के दूसर पारी चालू करे बर तइयार होगे रिहिस।

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