हिन्दी फिल्मों के किंग ऑफ रोमांस
27 सितंबर- यश चोपड़ा की जयंती पर विशेष - आलेख- भारती मनीष तिवारी, दुर्ग
फिल्म निर्माता, निर्देशक यश चोपड़ा हिन्दी फिल्मों के किंग ऑफ रोमांस कहे जाते हैं। आज उनकी जयंती है। दीवार, कभी कभी, डर, चांदनी, सिलसिला, दिल तो पागल है, वीर जारा जैसी अनेक बेहतरीन और रोमांटिक फि़ल्में बनाने वाले यश चोपड़ा ने पर्दे पर रोमांस और प्यार को नए मायने दिए हैं।
अपनी फिल्मों में गाने के फिल्मांकन में यश चोपड़ा काफी खर्च किया करते थे। स्विटजरलैंड तो कभी कश्मीर की खूबसूरत वादियां, शिफान की साड़ी में नायिका की खूबसूरती और सुपरहिट संगीत, उनकी फिल्मों का अहम हिस्सा हुआ करते थे। यश चोपड़ा ने अपनी हर नायिका को बड़ी ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत उनके कॅरिअर को नई ऊंचाइयां दीं। यही उनकी फिल्मों की खासियत भी थी। वे संगीत पर भी काफी जोर देते थे। उनकी फिल्मों की एक और खास बात थी कि वे अपने मूल स्थान पंजाब और वहां के संगीत को भी जरूर स्थान दिया करते थे।
यश चोपड़ा का जन्म 27 सितंबर, 1932 को लाहौर में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। स्वतंत्रता के बाद वह भारत आ गए। उनके बड़े भाई बी. आर. चोपड़ा बॉलीवुड के जाने-माने निर्माता निर्देशक थे। बड़े भाई की प्रेरणा पर ही उन्होंने भी फि़ल्मों में हाथ आजमाया और आज यश चोपड़ा का परिवार बॉलीवुड के प्रतिष्ठित बैनरों में से एक है। उनके बेटे आदित्य चोपड़ा और उदय चोपड़ा भी फि़ल्मों से ही जुड़े हुए हैं। यश चोपड़ा ने अपने भाई के साथ सह निर्देशक के तौर पर काम करना शुरू किया। अपने भाई बी. आर चोपड़ा के बैनर तले उन्होंने लगातार पांच फि़ल्में निर्देशित की। इन फि़ल्मों में एक ही रास्ता, साधना और नया दौर शामिल हैं। वर्ष 1965 में आई फि़ल्म वक्त यश चोपड़ा की पहली हिट फि़ल्म साबित हुई। इस फि़ल्म का गीत ऐ मेरी जोहरा जबीं तुझे मालूम नहीं दर्शकों को आज भी याद है। फि़ल्म इत्तेफाक उनकी उन चुनिंदा फि़ल्मों में से है जिसमें उन्होंने कॉमेडी और रोमांस के अलावा थ्रिलर पर भी काम किया था।
1973 में उन्होंने फि़ल्म निर्माण में कदम रखा और यश राज बैनर की स्थापना की। इसकी शुरूआत राजेश खन्ना अभिनीत दाग जैसी सुपरहिट फि़ल्म से की। इस फि़ल्म की कामयाबी ने उन्हें बॉलीवुड में नया नाम दिया। इसके बाद आई 1975 की फि़ल्म दीवार जिसमें अमिताभ बच्चन ने अभिनय किया था। इस फि़ल्म की सफलता ने यश चोपड़ा को कामयाब निर्देशकों की श्रेणी में ला खड़ा किया। जहां उनकी फि़ल्मों में काम करने के लिए अभिनेता उनके घर के चक्कर लगाने लगे। इसके बाद तो यश चोपड़ा ने सिलसिला,'कभी-कभी जैसी फि़ल्मों में अमिताभ के साथ ही काम किया। हालांकि 80 के दशक की शुरूआत में यश चोपड़ा को असफलता का कड़वा स्वाद भी चखना पड़ा पर 1989 में आई चांदनी ने उन्हें दुबारा एक सफल और हिट निर्देशक बना डाला। 1991 में आई लम्हे भी इसी दौर की एक सुपरहिट फि़ल्म साबित हुई। इसके बाद उन्होंने 1995 में बतौर निर्माता फि़ल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में दांव लगाया। शाहरुख खान और काजोल के अभिनय से सजी यह फि़ल्म बॉलीवुड में नया इतिहास रच गई। इसके बाद 1997 में उन्होंने फि़ल्म दिल तो पागल है का निर्देशन किया। कुछ सालों तक वह निर्देशन से दूर रहे और फिर लौटे 2004 की सुपरहिट फि़ल्म वीर जारा का निर्देशन किया।
बॉलीवुड में रोमांस के अलग-अलग स्वरूप को परदे पर ढालने वाले यश चोपड़ा ने रोमांस को जितने रंगों में दिखाया उतना बॉलीवुड का कोई निर्देशक नहीं दिखा सका, इसीलिए यश चोपड़ा को बॉलीवुड का रोमांस किंग यानी 'किंग ऑफ़ रोमांसÓ कहा जाता है। यश चोपड़ा ने सिल्वर स्क्रीन पर प्यार और रोमांस की नई परिभाषा गढ़ी।
यश चोपड़ा को अब तक 11 बार फि़ल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें 1964 में प्रदर्शित फि़ल्म वक्त के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के लिए फि़ल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद वह 1969 में फि़ल्म इत्तेफाक सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1973 में दाग सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1975 में दीवार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, 1991 में लम्हे सर्वश्रेष्ठ निर्माता, 1995 में दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे सर्वश्रेष्ठ निर्माता, 2001 में वह फि़ल्म जगह के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फालके पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया। फि़ल्म निर्माता यश चोपड़ा को भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए फ्रांस का सर्वोच्च ऑफिसियर डी ला लेजन पुरस्कार भी प्रदान किया गया। स्विस सरकार ने उन्हें स्विस एंबेसडरर्स अवार्ड 2010 से सम्मानित किया है।
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