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 त्यौहारों में भी अब मिलने कोई नही आता


डॉ. दिनेश मिश्र
*दीपावली का दूसरा दिनकल सुबह से मैसेज तो बहुत आये ,लेकिन  मेहमान कोई नहीं आया.* कभी सोचता हूँ ड्राइंग रूम से सोफा हटा दूं.. या ड्राइंग रूम का कांसेप्ट बदलकर वहां स्टडी रूम बना दूं..
 दो दिन से व्हाट्स एप, और एफबी के मेसेंजर पर मेसेज खोलते, स्क्रॉल करते और फिर जवाब के लिए टाइप करते-करते दाहिने हाथ के अंगूठे में दर्द होने लगा है.
 * मेसेज पर मैसेज ,संदेशें आते जा रहे हैं.. बधाईयों का तांता  लगा हुआ है.. लेकिन मेहमान नदारद है!
ये है आज के दौर की  असली दीवाली..
मित्रों, घर के आसपास के पड़ोसियों को अगर छोड़ दें तो त्यौंहार पर मिलने-जुलने का रिवाज़ खत्म हो चला है..
कुछ दोस्त और रिश्तेदार मिठाई या गिफ्ट तो भिजवाते हैं, लेकिन घर पर बेल ड्राईवर बजाता है.. वो खुद नही आते!
दरअसल, घर अब घर नहीं रहा.. ऑफिस के वर्क स्टेशन की तरह हो चला है, घर एक स्लीप स्टेशन है.. हर दिन का एक रिटायरिंग बेस.. आराम करिए, फ्रेश हो जाईये.. घर अब सिर्फ घरवालों का है..
घर का समाज से कोई संपर्क नहीं है.. मेट्रो युग में समाज और घर के बीच तार शायद टूट चुके हैं..
हमें स्वीकार करना होगा कि ये बचपन वाला घर नहीं रहा.जब शाम होते ही घर पर त्योहारों में मिलने जुलने वालों की लाइन लग जाती थी.त्योहारों के दिन सबेरे से नए कपड़े पहिन  कर उत्साह से मेहमानों का इंतजार होने लगता था. एक दो दिन नही बल्कि सप्ताह भर लोग एक दूसरे के घर जाते मिलते थे  और एक दूसरे के ,घरों में बने व्यंजनों का रसास्वादन करते थे.पिछले कुछ वर्षों से घर में  बुजुर्ग तैयार होकर बैठते तो हैं  ,पर कुछ घण्टो के बाद नए कपड़ों को उतार कर वापस रोजमर्रा के कपड़े पहिन लेते हैं  कि अब ज्यादा  कोई मिलने नहीं आता . मिलने जुलने साथ बैठ कर गप मारने, ठहाके लगा कर त्यौहार मनाने  के दिन पता नहीं कब वापस आएंगे.
   अब घर और समाज के बीच में एक बड़ा फा़सला सा बन गया  है.किसी के पास समय नहीं है.हर आदमी आभासी दुनिया में मस्त हो चला है फेसबुक,, सोशल मीडिया में दोस्तों की कमी नहीं है ,पर घर पर मिलने जुलने आने वाला कोई नहीं  है.
अब वैसे भी शादी  घर के आंगन की बजाय मेरिज हाल में होती है., बर्थडे ,मैक डोनाल्ड या पिज़्ज़ा हट में मनाया जाता है.. बीमारी में नर्सिंग होम में उपस्थिति दर्ज करा खैरियत पूंछी जाती है.. और तो और अंतिम आयोजन के लिए  लोग सीधे श्मशान घाट ही पहुँच जाते हैं..!
और यदि न जा पाए तो इन सब कामों के लिए  व्हाट्सएप तो है ही.
 इस जमाने में  अब कैश तो जेब में नहीं है , एटीएम ,पे टी एम,गूगल पे  ,कार्ड,  है ही..होम डेलिवरी वाला भी पिज़ा के साथ डेबिट मशीन साथ लाता है. सारी बातें,व्यवहार मशीन से,मोबाइल से होने लगे हैं

इस दीवाली जरा इस सवाल पर गौर करियेगा.. कुछ नहीं तो एक दोस्त के घर हो आइयेगा.. आपस में मिलना जुलना आना जाना शुरू करिए.
अगले साल से आपके घर भी कोई आने लगेगा ,हँसी, खुशी, ठहाके गूंजने लगेंगे

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