...और मो. रफी की बात सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं
और मो. रफी की बात सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं
जयंती पर विशेष- आलेख-मंजूषा शर्मा
मोहम्मद रफी, संगीत की दुनिया का वो नाम है, जिनके गाए गाने आज भी हर पीढ़ी की पसंद बने हुए हैं। वे न केवल एक अच्छे गायक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे। दरअसल वे महज़ एक आवाज़ नहीं;गायकी की पूरी रिवायत थे। पिछले करीब कई दशक से लोग उनकी आवाज सुन रहे हैं। आज उनकी जयंती पर कुछ उनकी बातें.....
पंजाब के एक छोटे से क़स्बे से निकल कर मोहम्मद रफ़ी नाम का एक किशोर बरसो पहले मुंबई आता है। साथ में न कोई जमींदारी जैसी रईसी या पैसों की बरसात, न कोई गॉड फ़ादर सिर्फ एक प्यारी सी आवाज, जो हर तरह के गीत गाने की हिम्मत रखता था। फिर वह चाहे किसी भी स्केल का हो। सा से लेकर सा तक यानी सात स्वरों के हर स्वर में । कोई ख़ास पहचान नहीं ,सिफऱ् संगीतकार नौशाद साहब के नाम का एक सिफ़ारिशी पत्र और । किस्मत ने पलटा खाया और अपनी आवाज, इंसानी संजीदगी के बूते पर यह सीधा सादा युवक मोहम्मद रफ़ी पूरी दुनिया में छा गया। संघर्ष का दौर काफी लंबा था और मुफलिसी भी साथ चल रही थी। संगीत का यह साधक किसी भी परिस्थिति में रुकना नहीं चाहता था। उस दौर का एक वाकया सुनने में आया जिसका जिक्र आज यहां कर रहे हैं।
मोहम्मद रफी साहब मुंबई में संघर्ष के दिनों में मायूस भी हो गए थे, लेकिन दिल में कुछ कर दिखाने का जज्बा उन्हें पंजाब लौटने नहीं दे रहा था। संगीतकार नौशाद साहब ने उन्हें कोरस में गाने का मौका दिया। मुंबई में रिकॉर्डिंग हुई और रफी साहब ने सबको प्रभावित किया। काम खत्म हो चुका था, तो सभी लोग स्टुडियो से बाहर निकल गए। लेकिन रफ़ी साहब स्टुडियो के बाहर देर तक खड़े रहे। तकऱीबन दो घंटे बाद तमाम साजि़ंदों का हिसाब-किताब करने के बाद नौशाद साहब स्टुडियो के बाहर आकर रफ़ी साहब को देख कर चौंक गए । पूछा तो बताते हैं कि घर जाने के लिये लोकल ट्रेन के किराये के पैसे नहीं है। नौशाद साहब अवाक रह गए और बोले- अरे भाई भीतर आकर मांग लेते ...रफ़ी साहब का जवाब -अभी काम पूरा हुआ नहीं और अंदर आकर पैसे मांगूं ? हिम्मत नहीं हुई नौशाद साहब। सीधा- सरल जवाब सुनकर नौशाद साहब की आंखें छलछला उठीं। रफी साहब ने कहा- उन्हें लगा था रिकॉर्डिंग हो जाएगी तो उसके मेहताने से वो घर पहुंच जाएंगे। नौशाद ने तब रफी को 1 रुपये का सिक्का दिया था ताकि वो घर पहुंच जाएं। रफी ने नौशाद से वो सिक्का लिया और पैदल ही चल पड़े। इसके कई सालों बाद रफी शहंशाह-ए-तरन्नुम बन गए। उनके पास खूब दौलत और शोहरत हो गई। तब एक दिन नौशाद साहब मोहम्मद रफी के घर आए। उन्होंने देखा कि मोहम्मद रफी ने 1 रुपये का सिक्का फ्रेम कराकर दीवार पर टांग रखा है। नौशाद ने इसका कारण जानना चाहा। तब रफी साहब ने बताया कि सालों पहले नौशाद ने जिस लड़के को घर जाने के लिए 1 रुपये का सिक्का दिया था वो और कोई नहीं, बल्कि खुद रफी ही थे। रफी ने कहा, 'मैं उस दिन पैदल ही गया था। ये सिक्का मुझे मेरी सच्चाई याद दिलाता है और ये कि उन दिनों किस नेक इंसान ने मेरी मदद की थी।' मो. रफी साहब की बातें सुनकर एक बार फिर नौशाद की आंखें नम हो गई थीं।
न कोई छलावा न कोई दिखाया और न ही ज्यादा पाने की चाहत। बस जो मिल गया उसे को मुकद्दर समझ लिया, ऐसे थे रफी साहब।
सही मायने में सहगल साहब के बाद मोहम्मद रफ़ी एकमात्र नैसर्गिक गायक थे। उन्होंने अच्छे ख़ासे रियाज़ के बाद अपनी आवाज़ को मांजा था। उन्हें देखकर लोग सहसा विश्वास ही नहीं कर पाते थे कि शम्मी कुमार साहब के लिए याहू ,.... जैसे हुडदंगी गाने वे ही गाया करते हैं।
उनके बारे में संगीतकार वसंत देसाई कहते थे -रफ़ी साहब कोई सामान्य इंसान नहीं थे...वह तो एक शापित गंधर्व थे जो किसी मामूली सी ग़लती का पश्चाताप करने इस मृत्युलोक में आ गया। कई बार उनके पैसे इसी वजह से डूब गए, क्योंकि उन्होंने संकोच की वजह से पैसे मांगे नहीं। रफी साहब कभी काम मांगने भी नहीं गए। जो मिल गया, गा लिया। मोहम्मद रफी फिल्म इंडस्ट्री में मृदु स्वभाव के कारण जाने जाते थे। मोहम्मद रफी ने लता मंगेशकर के साथ सैकड़ों गीत गाये थे, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया था जब रफी ने लता से बातचीत तक करनी बंद कर दी थी। लता मंगेशकर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रॉयल्टी की मांग नहीं की।
रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की मांगी जाए। दोनों के बीच विवाद इतना बढा कि मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर के बीच बातचीत भी बंद हो गई और दोनों ने एक साथ गीत गाने से इंकार कर दिया हालांकि चार वर्ष के बाद अभिनेत्री नरगिस के प्रयास से दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में ज्वैलथीफ का गीत...दिल पुकारे गीत गाया।
अपने कॅरिअर में रफ़ी साहब को श्यामसुंदर, नौशाद, ग़ुलाम मोहम्मद, मास्टर ग़ुलाम हैदर, खेमचंद प्रकाश, हुस्नलाल भगतराम जैसे गुणी मौसीकारों का सान्निध्य मिला जो उनके लिए फायदेमंद भी रहा। रफ़ी साहब ने क्लासिकल म्युजि़क का दामन कभी न छोड़ा। बैजूबावरा में उन्होंने राग मालकौंस (मन तरपत)और दरबारी (ओ दुनिया के रखवाले) को जिस अधिकार और ताक़त के साथ गाया , उसे गाने की हिम्मत आज भी बहुत कम लोग कर पाते हैं। उस दौर की फिल्मों में जब भी क्लासिकल म्यूजिक की बात चलती थी, तो संगीतकार रफी साहब और मन्ना डे के पास ही जाते थे। रफी साहब की आवाज नायकों के लिए ज्यादा सूट करती थी, इसीलिए उन्हें मन्ना दा की तुलना में लीड गाने ज्यादा मिले।
मो. रफी साहब के गाए 10 लोकप्रिय गाने, जो आज भी पसंद किए जाते हैं....
1. तुम मुझे यूं भुला न पाओगे - फिल्म पगला कहीं का
2. मैंने पूछा चांद से - फिल्म अब्दुल्लाह
3. चौदहवीं का चांद हो.... फिल्म चौदहवीं का चांद
4. बहारों फूल बरसाओ.... फिल्म सूरज
5. बदन पे सितारे लपेटे हुए- फिल्म प्रिंस
6. गुलाबी आंखें... फिल्म द ट्रेन
7. ये चांद सा रोशन चेहरा... फिल्म कश्मीर की कली
8. सुहानी रात ढल चुकी....फिल्म - दुलारी
9. बाबुल की दुआएं लेती जा... फिल्म नीलकमल
10. आज कल तेरे मेर प्यार के चर्चे- फिल्म ब्रह्मचारी
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