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जितने दूर हुए तुम तन से.......

 जितने दूर हुए तुम तन से

 
महकी यादों की पुरवाई ,मृदुल सुखद आभास  हुए ।
जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।
 
मन में अंकित छवि प्रियतम की , जब चाहूँ तब दरस करूँ।
प्रेम पगा है प्रिय का चितवन , नयनों को मैं सरस् करूँ ।
अधर मौन हैं मुखरित नैना , आपस में संवाद करें ।
पीड़ा सीमा पार कर गई ,मिलन-विरह अनुवाद करें ।
इत्र पवन में घुला हुआ ज्यों, वो कोमल अहसास हुए ।।
जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।
 
 मधुर झरोखों से यादों के , झोंके प्यार भरे आएँ ।
उठतीं लहरें मधुभावों की ,हृदय-पटल खिल-खिल जाएँ ।
सरसिज सा मन हो जाता है ,सुरभित सारा चमन हुआ ।
रिमझिम बारिश मधुर पलों की ,पुलकित सारा बदन हुआ ।
रातें मादक पवन बसंती , दिन प्यारे मधुमास हुए ।।
जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।
 
दीपक-बाती , चंदन-पानी , ऐसा अपना साथ रहे ।
पावन पुष्पित धरा प्रेम की ,हृदय वृहद आकाश रहे ।
शबनम सी पावन मनभावन ,प्रियता का आभास हो ।
 अंतर न रहे तुझमें मुझमें , मन में दृढ़ विश्वास हो ।
चितवन जितना सरल हुआ है , उतने ही तुम खास हुए ।।
जितने दूर हुए तुम तन से , उतने मन के पास हुए ।।
 
लेखिका -डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)

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