दीक्षा के दोहे
दीक्षा के दोहे
धुंध यह अविश्वास का , फैल रहा चहुँ ओर ।
निकले सूरज आस का , सुख की हो तब भोर ।।
पनघट यह नीला गगन, मेह-कुंभ हैं नीर ।
सखियाँ भरती चाँदनी ,झिलमिल करता चीर ।।
भोजन टटका ही करें , सेहत बने सुजान ।
दूध दही फल खाइए, नित्य योग कर ध्यान ।।
संचित कर गुल्लक सदा, सुख के पल अनमोल ।
व्याकुल हो जब मन कभी, संग्रह स्मृति के खोल।।
साध निशाना मारती , सुधियों भरी गुलेल ।
झोली में कुछ पल गिरे, खुशियों से हो मेल ।।
मिले कभी भाई-बहन, बचपन की तस्वीर ।
यादों की गठरी खुली , बातों की रसखीर।।
अम्मा लेती लाड़ से ,अजब-गजब से नाम ।
ममता के मधु में पगी , गोदी थी सुखधाम ।।
लेखिका -डॉ. दीक्षा चौबे , दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
M-9424132359
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