कन्या भोजन
-लघुकथा
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
उमा नवरात्रि का व्रत रखती है और नौ कन्याओं को आमंत्रित कर भोजन कराती है । हर बार वह अपनी कामवाली बाई को बोल देती है ,वही अपने मोहल्ले की लड़कियों को ले आती है । ये बच्चियाँ बड़े शौक से सभी व्यंजन खातीं हैं यह देखकर उमा का मन तृप्त हो जाता है वरना उसकी सहेलियों के बच्चों के तो खाने में सौ नखरे । यह सब्जी नहीं खाएँगे ,वह नहीं खाएँगे पूरी थाली भरी रह जाती और वे आधी-अधूरी चीजें खाकर उठ जातीं..कहीं और भी जाना है । उन्हें पेंसिल बॉक्स,रबर बैंड,पिन इत्यादि उपहार देकर विदा ही किया था कि कुछ दूर जाकर एक नन्हीं वापस आई और कहने लगी -" आंटी खाना बहुत अच्छा था। अब नवरात्रि कब आएगी, अगली बार भी बुलाओगी न मुझे ?" उसकी इस मनुहार ने झकझोर दिया था उसे -" जरूर बेटा " कहते हुए उमा की आँखें नम हो आईं थीं और मन ने कुछ संकल्प लिया था । अब कन्या-भोजन कराने के लिए सिर्फ नवरात्रि का इंतजार नहीं करेगी वह ।
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