शीत के दोहे
शीत के दोहे
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
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मार्गशीर्ष सेहत भरा, मिले खूब फल शाक।
योगासन व्यायाम कर, आलस रखना ताक ।।
आतप ने झुलसा दिया, ठिठुराता हेमंत ।
बाट जोहती प्रेयसी, कब आओगे कंत ।।
पावन प्रीति पुनीत का,कर लोगे अनुभास ।
अदरक वाली चाय ज्यों, महक बुलाती पास ।।
घूँट चाय की भर रहे, पुष्पित पाटल ओष्ठ।
नैन-चषक ये भर रहे, प्रणयी हृदय-प्रकोष्ठ।।
विरही खग मन का उड़े, करने प्रिये मिलाप।
प्रीति- रजाई से मिले, शिथिल देह को ताप ।।
शीत प्रभाती भोर में, डाले धुंध पड़ाव ।
ठंड-ठिठुरते गात को, राहत सिर्फ अलाव।।
बदमिजाज मौसम हुआ,पल-पल बदले रूप।
शीत-निठुर के सामने, बेबस होती धूप ।।
माह दिसंबर दे रहा, ठंडक का अनुभास ।
ऊनी स्वेटर शॉल ने, जगह बनाई खास ।।
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