कइसे तोला बचावव बेटी
कइसे तोला बचावव बेटी
कविता -लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
चारों कोती रावण - दुशासन , खींचत लुगरा तोर ।
कइसे तोला बचावँव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
आज सुरक्षित नइहे बेटी , अपन घर अंगना म ।
गिधवा नजर डारे बइठे , लाज बचावव किशना ।
अत्याचार अमावस कस , मुंधियार हे घनघोर ।
कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
भेस बदल के दानव घुमय , भेस बदलय शिकारी ।
फंदा डारे बइठे हे सब , दुर्जन के नइहे चिन्हारी ।
गली - गली म बइठे डाकू , घर- दुआर मा चोर ।
कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
बेटी ल कोख म मारय , नारी ला सतावय ।
इज्जत लूटत हे बेटी के , दुष्ट रूप देखावय ।
बेटी पढावव आघु बढावव , ज्ञान के करव अंजोर ।
कइसे तोला बचावंव मैं , आँसू बरसत मोर ।।
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